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जानें, रानी पद्मावती की जौहर गाथा

एक्सक्लूसिव डेस्क:
यही वो असंख्य नमन करने वाला स्थल है, जिसमें महारानी पद्मावती ने म्लेच्छ आक्रान्ताओं से अपनी रक्षा करने के लिए धधकती ज्वाला के कुंड में छलांग लगाई थी।
 चित्तौड़गढ़ के किले में आज उस कुंड की ओर जाने वाला रास्ता बेहद अंधेरे वाला है जिस पर कोई जाने का साहस नहीं करता। उस रास्ते की दीवारों तथा कई गज दूर भवनों में आज भी कुंड की अग्नि के चिन्ह और उष्णता अनुभव किया जा सकता है। विशाल अग्निकुंड की ताप से दीवारों पर चढ़े हुए चूने के प्लास्टर जल चुके हैं। 
चित्र में कुंड के समीप जो दरवाज़ा दिख रहा है कहा जाता है की रानी पद्मावती वही से कुंड में कूद गयी थी। स्थानीय लोग आज भी विश्वास के साथ कहते हैं कि इस कुंड से चीखें यदा-कदा सुनायी पड़ती रहती है और सैंकड़ों वीरांगनाओं की आत्माएं आज भी इस कुंड में मौजूद हैं। वो चीखें आज के युग में एक सबक है, “उन हिन्दू बहनों और बेटियों के लिए जिन पर वर्तमान मलेच्छों की बुरी नज़र है। “
ये चीखें नहीं एक दहाड़ है , जो यह कहता है की ,”हे हिन्दू पुत्रियाँ हर युगों में इन मलेच्छों से सतर्क रहना। ” ये चीखें नहीं एक आत्मबल है जो यह कहता है कि,” हे हिन्दू पुत्रियाँ तुम अबला नहीं सबला हो ।” ये चीखें नहीं एक वेदना है जो यह कहती हैं की, ” हे हिन्दू वीरों और वीरंगनाओं हमें भूल न जाना। “

जौहर गाथा याद, उपेक्षा में गुम स्थल

ऐतिहासिक धरा चित्तौडग़ढ़ के गौरवशाली व स्वाभिमानी इतिहास की प्रतीक रानी पद्मिनी समेत हजारों वीरांगनाएं हैं। इनके जौहर की गाथाएं सदियों तक भुलाई नहीं जा सकती, मगर जौहर स्थलों की पहचान के लिए जिम्मेदार विभाग की उपेक्षा से गुम होने की स्थिति में हैं। 

तीन जौहर स्थलों में से दो के बारे में लोग लगभग अनजान

ऐतिहासिक धरा चित्तौडग़ढ़ के गौरवशाली व स्वाभिमानी इतिहास की प्रतीक रानी पद्मिनी समेत हजारों वीरांगनाएं हैं। इनके जौहर की गाथाएं सदियों तक भुलाई नहीं जा सकती, मगर जौहर स्थलों की पहचान के लिए जिम्मेदार विभाग की उपेक्षा से गुम होने की स्थिति में हैं। तीन जौहर स्थलों में से दो के बारे में लोग लगभग अनजान हैं। 
चित्तौड़ का गौरवशाली इतिहास तीन जौहर का साक्षी रहा है। इनमें हजारों वीरांगनाओं ने अपनी आन-बान की रक्षा के लिए धधकती ज्वाला में कूदकर प्राणों की आहुतियां दी थी। मुगलों व आक्रांताओं के आक्रमण के समय ये तीनों जौहर हुए हैं।
 
यही हाल यहां दो अन्य जौहर स्थलों में एक कुंभा महल में गौमुख कुंड के पास सुरंग तथा दूसरा पद्ममिनी महल के पास बताया जाता है। इनका भी जिक्र न जौहर स्थली के रूप में है और न यहां जौहर करने का संकेत चिन्ह लगा है। इनके बारे में आम लोगों को कोई जानकारी नहीं है।
विभाग है उदासीन,,जौहर स्थलों का विकास करना तो दूर पहचान दिलाने के प्रति भी पुरातत्व विभाग उदासीन है। दुर्ग में अन्य ऐतिहासिक धरोहरों के समीप उनका नाम लिखने के साथ ही उसके इतिहास की संक्षिप्त जानकारी लिखे बोर्ड या शिलालेख लगे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि जौहर के लिए देश में पहचान रखने वाले स्थान पुरातत्व विभाग के कारण उपेक्षित हैं।
कई बार की  मांग,,जौहर स्थलों की पहचान व विकास की मांग लेकर जौहर संस्थान समेत अन्य लोग प्रयास कर चुके हैं। संस्थान के कोषाध्यक्ष नरपतसिंह भाटी बोले, इस बारे में संस्थान ने पुरातत्व विभाग को कई पत्र लिखे मगर विभाग ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई।
 मालूम हो, प्राचीनकाल में शत्रु के हमले के दौरान राजा और सैनिक वीरगति को प्राप्त होते थे, तब संकट निकट देख रजपूती आन-बान को सुरक्षित रखने के लिए महिलाएं, बच्चे व अशक्त स्वाभिमान बचाने को चिता सजा जौहर की आग में प्राणों की आहुति दे देते थे।


ऐसे हुए तीन जौहर???

चित्तौड़ का पहला जौहर सन 1303 में हुआ, जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। रूपवान रानी पद्मिनी को देखने की लालसा में अलाउद्दीन ने यहां पड़ाव डाला। 
राणा रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी ने चतुराई से शत्रु का सामना किया। अपनी मर्यादा व रजपूती स्वाभिमान की खातिर पद्मिनी ने विजय स्तम्भ के समीप 16   हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ जौहर की अग्नि में स्नान किया था। गोरा और बादल जैसे वीरों ने भी इसी समय पराक्रम दिखाया था। 
आज भी विजय स्तंभ के पास यह जगह जौहर स्थली के रूप में पहचानी जाती है। इतिहास का सबसे पहला और चर्चित जौहर स्थल इसे माना जाता है, लेकिन  यह अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की उपेक्षा का शिकार है। पहचान के नाम पर यहां महज छोटा संकेत बोर्ड लगा है। 
इस स्थल का विकास न के बराबर है। चित्तौडग़ढ़ का दूसरा जौहर सन 1535 में हुआ, जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। उस समय रानी कर्णावती ने संकट में दिल्ली के शासक हूमायूं को राखी भेज मदद मांगी। कर्णावती ने शत्रु की अधीनता स्वीकार नहीं की और 13 हजार रानियों के साथ जौहर किया। 
तीसरा जौहर सन् 1567 में हुआ जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। तब रानी फूलकंवर ने हजारों रानियों के साथ जौहर किया। जयमल और फत्ता भी इसी युद्ध में शहीद हुए।
साभार:पंडित कृष्ण दत्त शर्मा की फेसबुक वाल