2. ‘जग्गा जासूस’ बच्चों को भी पसंद नहीं आएगी। मगर उससे पहले जरूरी है कि फिल्म समझ आए। कविता-गीतनुमा संवादों का प्रयोग अपनी जगह है परंतु फिल्म की कहानी झोल-झाल से भरी है, जिसमें जीरो एंटरटेनमेंट है।
3. यह ‘गलती से मिस्टेक’ टाइप फिल्म नहीं है, जिसमें आप मेहतन का पैसा डुबाएं और मनोरंजन न मिलने पर नजरअंदाज कर दें। यह बड़ी गलती है, जिसे ब्लंडर कहते हैं।
4. फिल्म में शुरू से अंत तक प्रयोग के नाम पर हास्यास्पद अंदाज-ए-बयां है जिसमें कैटरीना कैफ नन्हें-मुन्ने बच्चों को एक मेले में लगे मंडप में ‘जग्गा जासूस’ की कॉमिक बुक्स पढ़ा रही हैं।
5. कॉमिक्स में जग्गा के किस्से हैं। परंतु जग्गा कहां है, क्यों ये कॉमिक्स हैं और कहानियों से क्या बताने की कोशिश है…
6. दर्शक शुरू से अंत तक पहेलियां बूझता है। कुछ जवाब हैं परंतु तर्कहीन हैं। पुरुलिया में विदेशियों द्वारा आसमान से हथियार गिराने की घटना (1994) से फिल्म शुरू होती है और पूरी दुनिया में हथियार सप्लाई का विषय सामने आकर रायते की तरह फैल जाता है। जिसे अनुराग और रणबीर समेट नहीं पाते।
7. फिल्म में न रोमांस है और न कॉमेडी। ऐक्शन और रहस्य सामने आने पर हंसी छूटती है। 161 मिनट की फिल्म भरपूर बोर करती है। आप बीच में इसे छोड़कर निकल लें तो वह वक्त गंवाने से अच्छा सौदा मालूम पड़ता है।
8. रणबीर कपूर और कैटरीना ऐक्टिंग के नाम पर क्या करते रहे, वह खुद फिल्म देख कर नहीं समझ सकते। रणबीर पूरी फिल्म में कैटरीना को ‘बैड लकी’ बताते हुए साथ रखते हैं। दोनों के लिए फिल्म बदकिस्मती से कम नहीं।
9. लेखक-निर्देशक अनुराग बसु पूरी तरह दिशाहीन हैं। अनुराग बसु ने कॉमिकल फिल्म बनाने के लिए अच्छी कॉमिक्स ही पढ़ ली होती तो उबर जाते।
10. फिल्म पहले सीन से उनके हाथ से फिसलती है और अंत में बड़े शून्य में बदल जाती है। यह शून्य दर्शक को सिरदर्द देता है। फिल्म की एकमात्र अच्छी बात कैमरा और आर्ट वर्क है। लोकेशन खूबसूरत हैं। मगर वह इसे देखने की वजह नहीं हो सकते।