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किसानों के आंदोलन से हो रही सब्जी-दूध की किल्लत

milk_road_5930e36cee0a1इंदौर : महाराष्ट्र से शुरू हुआ किसानों का अपनी उपज का वाजिब मूल्य मिलने की मांग के लिए किया जा रहा आंदोलन धीरे-धीरे एमपी में जोर पकड़ने लगा हैं. मालवा-निमाड़ के साथ इस आंदोलन में इंदौर की प्रमुख चोइथराम सब्जी मण्डी और दूध उत्पादकों के भी जुड़ जाने से आंदोलनकारियों की ताकत बढ़ गई है. इसका असर इंदौर में शुक्रवार की सुबह देखने को मिला जब सुबह की पहली जरूरत चाय के लिए लोग दूध के लिए परेशान होते नजर आए. ऐसे में दस दिन के लिए घोषित इस आंदोलन की भयावहता की कल्पना की जा सकती है. किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रशासन को जल्द ही उपाय खोजने होंगे अन्यथा मामला और बिगड़ सकता है.

गौरतलब है कि अहमदनगर के पुंटांबा गांव से शुरू हुआ 200 किसानों का छोटा सा आंदोलन महाराष्ट्र के साथ-साथ मध्यप्रदेश और गुजरात में भी जोर पकड़ने लगा है. इन्हें अब सब्जी उत्पादक और दूध विक्रेताओं का भी साथ मिल गया है. फसलों और दूध के उचित दाम दिलाने की मांग को लेकर अंचल में गुरुवार की शाम को उनका गुस्सा फूट पड़ा. सब्जी और उपज लाने से किसानों को रोका गया. सड़कों पर दूध बहा दिया गया. शाजापुर में कुछ किसानों द्वारा होटल, ढाबे, किराना, जनरल स्टोर्स, फल-सब्जी की दुकानों पर लूटपाट किए जाने की खबर है. उत्पातियों से पुलिस का टकराव हुआ, जिसमें एसडीओपी देवेंद्रकुमार यादव, टीआई राजेंद्र वर्मा समेत 8 पुलिसकर्मियों को चोट आई.

यही हाल देवास रतलाम, मंदसौर, उज्जैन, झाबुआ, खंडवा का भी रहा जहाँ न केवल सब्जियां सड़कों पर फेंक दी बल्कि दूध भी सड़क पर उड़ेल दिया. हालांकि आंदोलनकारियों का यह तरीका किसी को पसंद नहीं आया, जबकि दूसरी ओर लगभग सभी जगह शुक्रवार को सुबह लोग दूध के लिए परेशान होते रहे. यहां तक कि सहकारी दुग्ध समिति द्वारा संचालित साँची की दुकानों पर भी दूध नहीं मिला, जबकि प्रशासन ने आश्वस्त किया था. दूध के न मिलने से बड़े से लेकर छोटे बच्चे तक परेशान होते रहे. यही हाल सब्जियों का भी हो रहा है.

जहाँ तक किसानों को वाजिब मूल्य न मिलने का सवाल है. इसके लिए उपज की पर्याप्त उपलब्धता भी एक कारण है. अर्थशास्त्र के मांग और पूर्ति के सिद्धांत के अनुसार जब मांग की तुलना में पूर्ति बढ़ जाती है तो कीमतें घट जाती हैं. यही इन दिनों हो रहा है. जहाँ तक किसानों के समर्थन मूल्य पर भी माल नहीं बिकने की शिकायत का सवाल है तो यह देखना प्रशासन की जिम्मेदारी है कि किसानों को समर्थन मूल्य से कम पर अपनी उपज न बेचनी पड़े. अनाज बिक्री के मामले में इसको लेकर ज्यादा शिकायतें हैं. इसके लिए व्यापारियों पर भी आरोप लगते रहे हैं.

इसके लिए किसान संघ के प्रतिनिधियों से चर्चा कर सरकार को तुरंत हल खोजना चाहिए, अन्यथा किसान आंदोलन की आग से राजनीतिक और सामाजिक संबंधों को तो आंच पहुंचेगी ही, प्रदेश में अराजकता की स्थिति भी निर्मित हो सकती है, जिसमें निर्दोष जनता बेवजह पिसेगी. इसलिए सरकार को बरसात से पहले ही पाले बांधने की जरूरत है .

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