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आनरेरी नायब सूबेदार को मिलेगी नायब सूबेदार की पेंशन : सेना कोर्ट

लखनऊ |

सेवानिवृत्त सैनिक को उच्च-अधिकारी अदालत आने को मजबूर न करें; निराशा की भावना पनपती है: विजय कुमार पाण्डेय

सेना से है देश

किसी देश की सीमा और उसके भौगोलिक क्षेत्र की सुरक्षा का उत्तरदायित्व सैन्य-शक्ति पर होता है ऐसे में देश को अपनी सेना के जवानों को अदालती कार्यवाइयों से बचाने का उत्तरदायित्व हमारी सरकारों का बनता है लेकिन प्रायः देखने में आता है कि अधिकारी और सरकारें इस पर ध्यान नहीं देतीं और हमारा सैनिक पेंशन जैसे मामलों में अदालतों के चक्कर लगाता है यही वाकिया उत्तर-प्रदेश के गाजीपुर जनपद, ग्राम-डिंगरी निवासी आनरेरी नायब सूबेदार बसावन सिंह के साथ घटित हुआ l

निराशा ही लगी हाथ: 

नौकरशाह और सैन्य-अधिकारी बेलगाम: भूतपूर्व सैनिक बसावन सिंह 30 सितम्बर 1965 को सेना की मेडिकल कोर में भर्ती हुए और 24 वर्ष की देश सेवा के उपरांत 1 अक्टूबर 1989 को सेवानिवृत्त हुए, उनकी उत्कृष्ट सेवाओं को देखते हुए राष्ट्रपति ने आनरेरी नायब सूबेदार का पद दिया और वर्ष 2009 में भारत सरकार को आदेशित किया कि सभी आनरेरी नायब सूबेदार को नायब सूबेदार के बराबर पेंशन एवं अन्य लाभ 1 जनवरी 2006 से प्रदान किया जाय लेकिन सरकार ने स्वतः संज्ञान लेकर अदा नहीं किया बसावन सिंह लगातार प्रयास करते रहे लेकिन उनको निराशा हाथ लगी क्योंकि सरकारी-तंत्र में नौकरशाही का प्रभाव और मनमानी इतनी अधिक है कि बगैर अदालती आदेश के कोई सुनवाई नहीं होती जिसमें हमारे सैनिकों के धन,समय और श्रम की अनावश्यक बर्बादी होती है l

अदालत ही एकमात्र विकल्प: 

बसावन सिंह के मामले की सुनवाई करते हुए सेना कोर्ट ने कहा कि यह विवाद वीरेंदर सिंह बनाम भारत सरकार में वर्ष 2010 में ही तय किया जा चुका है जिसके विरूद्ध अपील में भारत सरकार को हार का सामना करना पड़ा है और सेना कोर्ट चण्डीगढ़ ने होशियार सिंह बनाम भारत सरकार में भी यही कहा गया है लेकिन सरकार ने नहीं दिया जो गलत है सरकार के आदेश को सेना कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया और 1 जनवरी 2006 से नायब सूबेदार के लाभ चार माह के अन्दर देने को कहा आगे यह भी कहा कि चार महीने के बाद भुगतान किए जाने की स्थिति में 9% ब्याज भी देना होगा l

क्या कहना है ए ऍफ़ टी बार का:   

मीडिया के पूंछे जाने पर ए ऍफ़ टी बार के महामंत्री विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि यह बेहद निराशाजनक है कि जिन मामलों में उच्चतम-न्यायलय या भारत सरकार द्वारा स्वत विवादों को निर्णीत कर दिया है उसमें भी यदि अदालती कार्यवाही करने के लिए बाध्य होना पड़े तो इससे यह प्रतीत होता है कि उच्च-अधिकारी और नौकरशाह सेवानिवृत्त सैनिकों को जानबूझकर परेशान करना चाहते है जिससे सेना के एक वर्ग में निराशा की भावना जन्म लेती है जो किसी भी रूप में उचित नहीं है सरकार को इस बिंदु पर गम्भीरता से कदम उठाने चाहिए l