नासा की अोर से आयोजित सिने स्पेस शॉर्ट फिल्म कंपीटिशन में इस बार बांसवाड़ा के एक प्रतिभागी ने भाग लिया है। जिसने 10 मिनट की इस शॉर्ट फिल्म में जिंदगी से हताश नहीं होने और जीरो- शून्य के महत्व के बारे में बताया।
शहर के सृजेश मेहता ने एक माह की अपनी मेहनत और सोच के साथ फिल्म का निर्माण किया और आवेदन की अंतिम तारीख 31 जुलाई को ऑनलाइन सबमिट किया।
इस कंपीटिशन में विश्व के कई देशों के प्रतिभागियों ने अपनी अपनी फिल्म तैयार की है। जिसके परिणाम नवंबर माह में सामने आएंगे।
एडिटिंग का पूरा कार्य सृजेश मेहता ने किया है
यह कंपीटिशन नासा ह्यूस्टन सिनेमा आर्ट्स सोसायटी के तत्वावधान में किया जा रहा है। सृजेश ने बताया कि नासा द्वारा हर बार यह कंपीटिशन कराया जाता है। जब इसकी जानकारी मिली तो इसके लिए फार्म भर कर आवेदन किया। कुछ दिनों बाद वहां से निर्देश मिले की इस फिल्म में नासा के द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे वीडियो को भी उपयोग में लिया जा सकता हैं। लेकिन थीम प्रतिभागी की स्वयं की होनी चाहिए। इस फिल्म में स्क्रिप्टिंग, शूटिंग, वीजुअल इफेक्ट्स और फिल्म एडिटिंग का पूरा कार्य सृजेश मेहता ने किया है। वहीं वॉइस प्रोफेसर डॉ. महीपाल सिंह राव ने दी है।
माइकल कॉलिंस को बनाया थीम का आधार
20 से अधिक विषयों पर फिल्म के कॉन्सेंप्ट रिजेक्ट करने के बाद सृजेश ने अंतरिक्ष यात्री माइकल काेलिंस को आधार बनाया। जो 1966 में चंद्रमा पर भेजे गए अपोलो 11 मिशन के सदस्य थे। वे नील आर्मस्ट्रोंग और ऑल्ड्रीन के साथ चंद्रमा पर गए थे। कोलिंस काम में सीनियर और कमांड मॉड्यूल पायलट होने के बाद भी मिशन से लौटने के बाद उन्हें नील आर्मस्ट्रोंग और ऑल्ड्रीन जितनी ख्याति नहीं मिली थी।
इसे लेकर जब उनसे यह सवाल पूछा तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा- मैं सिर्फ ये जानता हूं कि मेरी वजह से स्पेस ने उड़ान भरी और वापस लौटे। इसी थीम को सृजेश ने चुना और उस पर काम किया। जिसमें एक पिता अपनी बेटी को पत्र लिखता हैं और उसे कोलिंस के उदहारण से यह समझाता है कि अपने काम और उसके श्रेय से कभी हताश नहीं होना चाहिए।
बस काम करते रहता चाहिए। स्वयं को शून्य समझना चाहिए, जो शून्य किसी के साथ जुड़ता है तो उसकी उपयोगिता और वेल्यू बढ़ जाती है। शून्य की अकेले कोई महत्ता नहीं होती। काम टीम वर्क से ही होता हैं।