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समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं, SC ने खत्म की धारा- 377

नई दिल्ली। भारत में दो व्यस्क लोगों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने दो व्यस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने से इनकार किया। पीठ ने IPC की धारा 377 को अतार्किक और मनमान करार देते हुए निरस्त कर दिया।  पीठ ने कहा, ”LGBTQ समुदाय को भी समान अधिकार है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने जुलाई माह में इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया था और स्पष्ट किया था कि ऐसे लोगों के विवाह करने के मुद्दे पर कोई व्यवस्था नहीं देगा।

धारा 377 का पहली बार मुद्दा गैर सरकारी संगठन ‘नाज फाउंडेशन’ ने उठाया था। इस संगठन ने 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और अदालत ने समान लिंग के दो वयस्कों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाले प्रावधान को ‘‘गैरकानूनी’’ बताया था।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध माना था। 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था। इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और फिलहाल पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित है।