नोटबंदी के बाद उपजी कैश की कमी ने रियल एस्टेट सेक्टर को बुरी तरह झकझोर दिया है। वहीं अब सरकार ने व्यक्तिगत स्तर पर सोना रखने की सीमा तय कर दी है। इन हालात के बीच सवाल उठता है कि क्या अब भारतीयों का सोने और जमीन से मोहभंग हो जाएगा?
अब तक ये फिजिकल एसेट्स हमारी पहली पसंद रही हैं, क्योंकि इनसे तगड़ा रिटर्न मिला है। इसी साल जारी क्रेडिट स्विस ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट में भी यही निष्कर्ष निकला है। लेकिन नोटबंदी के बाद भी यह लगाव बना रहेगा, इस पर आशंका जताई जा रही है।
परंपरागततौर भारत में सोना और जमीन खरीदना फायदेमंद माना गया है। लोगों ने ऐसा करके कई गुना फायदा भीकमाया है। हालांकि बीते 5-6 साल में हालात बदले हैं। प्रॉपर्टी के दाम गिरे हैं। वैश्विक स्तर पर सोने के दाम भी बीते पांच साल में 6.5% फीसदी गिरे हैं।
सेक्ट्रम वेल्थ मैनेजमेंट के प्रॉडक्ट हेड प्रतीक पंत के मुताबिक, नोटबंदी से पहले तक स्टॉक और बॉन्ड मार्केट्स को लेकर भारतीय निवेशकों में ज्यादा ज्ञान नहीं था। अब सरकार सोने के हर गहने का हिसाब पूछ रही है, हर प्रॉपर्टी का लेखा-जोखा रख रही है, तो निवेशकों का रुझान फायनेंशियल एसेट्स की ओर होगा। क्रेडिट स्विस वेल्थ मैनेजमेंट (इंडिया) के इक्विटी रिसर्च हेड तोहा मुंशी का भी यही मानना है।
500 और 1,000 रुपए की नोटबंदी के बाद लोग ये नोट बैंक में जमा कर रहे हैं। अब वे इसे बैंकिंग प्रॉडक्ट में ही निवेश करना पसंद करेंगे।
फायनेंशियल एसेट्स यानी बैंकिंग डिपॉजिट, बॉन्ड और स्टॉक्स में किया गया निवेश, वहीं फिजिकल एसेट्स से तात्पर्य है, सोना और जमीनों में पैसा लगाना। विकसित देशों और विकासशील देशों में इसके अलग-अलग ट्रेंड देखने को मिले हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में कुल संपत्ति का 72% हिस्सा फायनेंशियल एसेट्स में है। जापान में यह आंकड़ा 53% तो यूके में 51% है। इसके उलट, भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे रूस में फायनेंशियल एसेट्स का आंकड़ा महज 10% है।