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संगम नगरी में इस वृक्ष के दर्शन के बिना अधूरा होता है ‘कुंभ’ स्नान…

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयाग में स्नान के बाद जब तक अक्षय वट का पूजन एवं दर्शन नहीं हो, तब तक लाभ नहीं मिलता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मूल अक्षयवट दर्शन का श्रीगणेश किया। मुगल सम्राट अकबर के किले के अंदर बने पातालपुरी मंदिर में स्थित अक्षय वट सबसे पुराना मंदिर बताया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक ऋषि ने भगवान नारायण से ईश्वरीय शक्ति दिखाने के लिए कहा था। तब उन्होंने क्षण भर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया था। फिर इस पानी को गायब भी कर दिया था। इस दौरान जब सारी चीजें पानी में समा गई थी, तब अक्षय वट (बरगद का पेड़) का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था।आज इस किले का इस्तेमाल भारतीय सेना द्वारा किया जा रहा है।

जमीन के नीचे बने इस मंदिर में फेमस अक्षय वट है। इस किले में एक सरस्वती कूप भी बना है। जिसके बारे में कहा जाता है कि यहीं से सरस्वती नदी जाकर गंगा-यमुना में मिलती थी। इसके बारे में कहा जाता है कि मुगलों ने इसे जला दिया था। क्योंकि पहले स्थानीय लोग इसकी पूजा करने के लिए किले में आते थे। मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे जो भी इच्छा व्यक्त की जाती थी वो पूरी होती थी।अक्षय वट वृक्ष के पास कामकूप नाम का तालाब था। मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग यहां आते थे और वृक्ष पर चढ़कर तालाब में छलांग लगा देते थे।

644 ईसा पूर्व में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था। तब कामकूप तालाब मैं इंसानी नरकंकाल देखकर दुखी हो गया था। उसने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया था। उसके जाने के बाद ही मुगल सम्राट अकबर ने यहां किला बनवाया।भगवान राम और सीता ने वन जाते समय इस वट वृक्ष के नीचे तीन रात तक निवास किया था।अकबर के किले के अंदर स्थित पातालपुरी मंदिर में अक्षय वट के अलावा 43 देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है।