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राम मंदिर बनने तक क्या रामलला टेंट में ही रहेंगे?-अविमुक्तेश्वरानंद

 

 

वाराणसी। रामजन्मभूमि अयोध्या में विराजमान रामलला का भव्य और दिव्य मंदिर बने सभी चाहते हैं लेकिन सवाल है कि राम मंदिर बनने में देर लगेगी, तब तक क्या रामलला टेंट में ही रहेंगे।  यह सवाल द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य और अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि रामालय न्यास के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के हैं। वह सोमवार को केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में मीडिया से रूबरू थे।

उन्होंने कहा कि रामलला के भव्य दिव्य मन्दिर के लिये किसी उचित ट्रस्ट को भूमि सौंपने, ले आउट तैयार करने और फिर निर्माण आरम्भ करने में तो समय लगेगा। मान ले कि निर्माण आरम्भ भी हो जाये तो उसे पूरा होने में पांच से दस वर्ष लगने की संभावना विशेषज्ञ बता रहे हैं। ऐसे में यह बड़ा प्रश्न है कि क्या रामलला तब तक तिरपाल में ही रहेंगे ?

उन्होंने कहा कि ढांचा गिरने के बाद से उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आने के बाद तक तो न्यायालय के यथास्थिति के आदेश के कारण तिरपाल को हटाना संभव नहीं था। उसे बनाये रखना हमारी ‘मजबूरी’ थी। पर अब तो रामलला की विजय हुई है। कोई यथास्थिति का आदेश भी नहीं है। ऐसे में भी रामलला तिरपाल में रहें यह हृदय को कचोटने वाली बात है। इसलिये भी मजबूरी के तिरपाल को जितनी जल्दी हटा दिया जाये उतना ही अच्छा है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का मानना है कि उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार को नियमावली बनाकर उचित ट्रस्ट को जमीन सौंपने के लिए तीन माह का समय दिया है। न कि नया ट्रस्ट बनाने को। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि 1993 के अधिग्रहण की शर्तों को पूरा करने वाले ट्रस्ट को यह भूमि दी जा सकेगी। इसी सन्दर्भ में चारों शंकराचार्यों, पांचों वैष्णवाचार्यों और तेरहों अखाड़ों के रामालय न्यास ने केन्द्र सरकार के समक्ष मन्दिर निर्माण की अपनी प्रतिबद्धता रख दी है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज ने विगत मकर संक्रांति को सूर्य देवता के उत्तरायण होते ही अस्थायी मन्दिर निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अयोध्या में नये मन्दिर का निर्माण नहीं, अपितु पुराने का ही जीर्णोद्धार होगा। शास्त्रों के अनुसार नया मन्दिर वहां बनाया जाता है जहां पहले से कोई मन्दिर न हो। जहां पहले से ही कोई मन्दिर हो और वह जीर्ण-शीर्ण या भग्न हो गया हो तो उसे पुनर्निर्मित किया जाता है जिसे जीर्णोद्धार कहा जाता है। इस तरह अयोध्या में निर्मित होने वाला मन्दिर नवनिर्माण नहीं अपितु जीर्णोद्धार की श्रेणी में आयेगा।

किसी मन्दिर का जीर्णोद्धार करना आरम्भ करने के पूर्व एक छोटे अस्थायी मन्दिर बाल मन्दिर का निर्माण किया जाता है। मन्दिर निर्मित होकर पुनः प्रतिष्ठा कर दिये जाने तक देवविग्रहों को उसी बाल मन्दिर में विराजमान किया जाता है जहां उनकी यथा विधि नियमित पूजा-अर्चना होती रहती है।

उन्होंने बताया कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज ने इसी अस्थायी बालमन्दिर के निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया है।  बालमन्दिर चन्दन की लकड़ी से निर्मित किया जायेगा जिसका आकार 12×12×21 फुट का होगा। इसके मध्य रामलला विराजमान का 6×6×9 फीट का सिंहासन होगा जो कि स्वर्णमण्डित होगा। इसके लिये देश के हर गांव से सोना एकत्र किया जायेगा।