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सुधार और बदलाव के तीन साल

21_05_2017-20sanjay_guptaअब जब मोदी सरकार के कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे होने जा रहे हैं तब कम लोग ही इससे असहमत होंगे कि इस सरकार ने शासन में सुधार और बदलाव के जितने कार्य किए उतने इसके पहले शायद ही किसी सरकार ने किए। मोदी ने जब सत्ता संभाली थी तो उन्हें विरासत में लगभग खाली खजाना और घपले-घोटाले के साथ अकर्मण्यता से ग्रस्त नौकरशाही मिली थी। देश में हताशा और निराशा का माहौल था। शायद इसी कारण 2014 के आम चुनाव में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को अभूतपूर्व जनादेश मिला। हालांकि मोदी ने यह कहा था कि वह दिल्ली के लिए नए हैं, लेकिन उन्होंने दिल्ली की संस्कृति को बहुत जल्दी समझा और फिर तमाम ऐसे निर्णय लिए जिनका संदेश यह था कि वह एक नए माहौल का निर्माण करना चाहते हैं। उनकी रीति-नीति ने जल्द ही यह साबित किया कि विपक्ष ने मोदी को कम आंककर बहुत बड़ी गलती की। उसी गलती की वजह से कांग्रेस हाशिये पर है और अन्य विपक्षी दल भी दिशाहीन से दिख रहे हैं। कांग्रेस के पतन का एक बड़ा कारण उसके नेतृत्व की कमजोरी भी है। जो राजनीतिक कौशल मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने दिखाया उसका विपक्षी दलों के पास कोई जवाब नहीं है। इस स्थिति के लिए मोदी के मंत्रियों को भी श्रेय देना होगा, क्योंकि उन्होंने दिखाया कि वे अपनी सरकार के एजेंडे को पूरा करने के लिए समर्पित हैं।
मोदी के शुरुआती कार्यकाल के बड़े फैसलों में योजना आयोग की जगह नीति आयोग की स्थापना और मंत्री समूहों को खत्म कर नौकरशाही को प्रेरित करना था। कई बुनियादी बदलाव के साथ मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, स्वच्छता अभियान, कौशल विकास योजना आदि शुरू करके एक नए भारत के निर्माण को दिशा दी। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और ऐसी ही अन्य योजनाओं ने बताया कि उसके एजेंडे में विकास के साथ सामाजिक परिवर्तन भी है। यदि मोदी को सुशासन को अपने शासन की पहचान बनाने के लिए जाना जाएगा तो अमित शाह को इसके लिए कि वह अपने राजनीतिक कौशल से कुछ राज्यों तक सीमित रही भाजपा का लगभग पूरे देश में विस्तार करने में सफल रहे। उन्होंने बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने का जो काम किया उसी कारण भाजपा अन्य राज्यों के साथ पूर्वोत्तर में अपनी जड़ें जमाने के बाद ओडिशा और बंगाल में भी अपनी पहुंच बढ़ा रही है। एक के बाद एक राज्यों में भाजपा की जीत के शिल्पकार अमित शाह ने साबित किया कि वह मोदी के सपनों को पूरा करने में समर्थ हैं। हाल में उत्तर प्रदेश में मिली प्रबल जीत भाजपा की सफलता का शानदार परिचायक है।
मोदी सरकार ने प्रारंभ से ही सबका साथ सबका विकास को अपना जो ध्येय वाक्य बनाया वह उसकी योजनाओं से भी स्पष्ट हुआ। यह भी स्पष्ट है कि यह सरकार समाज के हर वर्ग तक अपनी पहुंच बनाना चाहती है। तीन तलाक के मसले पर अपने हक के लिए आगे आईं मुस्लिम महिलाओं को मोदी सरकार ने अपने रुख से जिस तरह सहारा दिया वह उसकी स्पष्ट सोच के साथ उसकी राजनीतिक इच्छाशक्ति को भी दर्शाता है। यदि मुस्लिम महिलाओं की सुप्रीम कोर्ट में जीत होती है तो इसका श्रेय मोदी सरकार और भाजपा को भी जाएगा। मोदी सरकार ने इस धारणा को भी तोड़ने का काम किया है कि भाजपा केवल जाति विशेष के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। भाजपा ने दलितों-पिछड़ों के कल्याण और उन्हें खुद से जोड़ने के लिए जिस तरह प्रयास किए उससे पिछड़े समुदायों की राजनीति करने वाले तमाम दल खुद को मुश्किल में पा रहे हैं।
मोदी की यह सफलता भी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय की साख और गरिमा को बहाल करने में सफल रहे। मनमोहन सिंह के समय पीएमओ की साख तार-तार हो गई थी तो इसका सबसे बड़ा कारण सत्ता के दो केंद्र होना था। आज ऐसी कोई समस्या नहीं है। मोदी सरकार ने रक्षा खरीद से लेकर बुनियादी ढांचे की योजनाओं को मंजूरी देने तक तमाम बड़े फैसले किए, लेकिन भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया। इसके अलावा बिजली की बचत के लिए एलईडी बल्ब के प्रयोग को प्रोत्साहन देना, गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस की उज्ज्वला योजना, फसल बीमा योजना, जन-धन योजना को सफलता से लागू करना ऐसे काम हैं जो इस सरकार को पहले की सरकारों से अलग करते हैं। डिजिटल अभियान ने भी नौकरशाही की अकर्मण्यता तोड़ने के साथ प्रशासनिक तंत्र का कामकाज पारदर्शी बनाया है। इसी तरह आधार कार्ड का दायरा बढ़ाकर सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी एक बड़ी कामयाबी है। इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि रही नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला। नोटबंदी के बाद आयकर दाताओं की संख्या करीब 90 लाख बढ़ी है। नोटबंदी के उपरांत जीएसटी पर आम सहमति बनाना और तमाम चुनौती के बाद भी उसके अमल का आधार तैयार करना एक ऐसा काम है जिसके सकारात्मक नतीजे आना तय हैं।
शासन के स्तर में आए सुधार और भ्रष्टाचार में कमी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि भी बेहतर हुई है। मोदी सरकार विदेश नीति के मोर्चे पर काफी सफल मानी जा रही है, लेकिन पाकिस्तान अपने भारत विरोधी स्वभाव के कारण अभी भी एक कांटा बना हुआ है। हालांकि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत ने उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर काफी कुछ नियंत्रित करने की कोशिश की है, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आ रहा है। हाल में नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुंह की खानी पड़ी, लेकिन उसकी पैंतरेबाजी अभी भी खत्म नहीं हुई है। कश्मीर मामला भी अभी उलझा हुआ है। हालांकि मोदी ने जोखिम लेकर पाकिस्तान से संबंध सुधार की पहल की और कश्मीर में धुर विरोधी पीडीपी से मिलकर सरकार भी बनाई, लेकिन अभी अपेक्षित नतीजे आना शेष हैं।
मोदी सरकार की नीतियों और योजनाओं को कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भले ही जुमलेबाजी करार देकर हंसी में उड़ाते रहे हों, लेकिन अब संभवत: उन्हें भी यह अहसास हो रहा है कि देश बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और सूट-बूट की सरकार के उसके आरोप की हवा निकल चुकी है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि मोदी सरकार की सभी योजनाएं सफल हैं, लेकिन कई योजनाओं ने बेहतर नतीजे दिए हैं तो कई ने बेहतरी की उम्मीद जगाई है। भले ही स्वच्छ भारत अभियान से अभी पूरा देश साफ-सुथरा नहीं हुआ हो, लेकिन स्वच्छता के प्रति सरकार के बार-बार आग्रह के कारण साफ-सफाई के प्रति एक चेतना का संचार हुआ है। ऐसे कई बदलाव इस सरकार की देन हैं। लोगों को बदलाव की प्रेरणा रेडियो पर मोदी के मासिक कार्यक्रम मन की बात से भी मिल रही है। कोई भी प्रधानमंत्री इस तरह देश को तभी प्रेरित-प्रोत्साहित कर सकता है जब उसका व्यक्तित्व करिश्माई हो और जनता उसके प्रति भरोसा रखती हो। इसके विपरीत विपक्ष जनता की उम्मीदों के अनुरूप व्यवहार करने में नाकाम रहा है। उनके पास किस तरह मुद्दों का अभाव है, यह ईवीएम पर उसके रवैये से स्पष्ट होता है।

 

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