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जब पत्नी से मिलने के लिए सूर्य देव ने किया था ऐसा काम….

आप सभी ने कई कथाए और कहानियाँ सुनी होंगी. ऐसे में शनि देव अति जागृत देवता हैं और इनकी कहानी भी काफी रोचक है. जी हाँ, पौराणिक कथा के अनुसार श्री शनि भगवान के पिता जी सूर्य देव तथा माता संज्ञा हैं. ब्रह्मदेव के पुत्र दक्ष की कन्या, संज्ञा अत्यंत रूपवती थी. 

दक्ष ने अपनी कन्या संज्ञा की शादी सूर्यदेव के साथ कर दी. संज्ञा ने सूर्यदेव से दो पुत्र 1. दक्षिणाधिपति यम और 2. श्री शनिश्चर तथा 1. ताप्ती, 2. भद्रा, 3. कालिंदी, 4. सावित्री इन चार कन्याओं को जन्म दिया. एक दिन संज्ञा सूर्यदेव का तेज सहन न कर सकीं इसलिए उन्होंने एक अपनी प्रतिरूप स्त्री का निर्माण किया और उसका नाम संवर्णा रख दिया. 

सूर्य देव की कथा

संज्ञा ने संवर्णा से कहा कि तू सूर्य के साथ पत्नी कर्तव्य का व्यवहार करके पूरी तरह सुख का उपभोग कर लेकिन एक बात ध्यान में रख कि यह सब किसी को भी मालूम न हो. यहां तक कि सूर्यदेव को भी नहीं. संकटकाल में मेरा स्मरण करने पर मैं तेरी मदद करूंगी, ऐसा कह कर संज्ञा अपने मायके लौट गई. 

दक्ष ने संज्ञा को समझाया कि विवाहिता को अपने पति के साथ ही रहना चाहिए. भले-बुरे दिनों में भी अपने पति का साथ नहीं छोडऩा चाहिए. यदि ब्याही पुत्री को उसके माता-पिता अपने पास रखें तो माता-पिता को दोष लगता है इसलिए यहां न रहकर अपने पति के घर रहना ही उचित है.

पिता दक्ष का यह विचार सुनकर संज्ञा को दुख हुआ, वह क्रोधित हुई और स्त्री जन्म को दोष देने लगी, तुरन्त ही संज्ञा ने अपने आपको घोड़ी के रूप में बदल लिया और निराहार तपस्या के लिए हिमालय पर्वत पर चली गई. संज्ञा के मायके चले जाने पर संवर्णा सूर्यदेव की घर गृहस्थी ठीक से चला रही थी. 

यथावकाश संवर्णा ने सूर्यदेव से 5 पुत्र और 2 कन्याओं को जन्म दिया. पुत्रियां 1. भद्रा, 2. वैधती और पुत्र 1 श्राद्धदेव, 2. मनु, 3. व्यतिपात, 4. कुलिका, 5. अर्थधाम. इस प्रकार संतति प्राप्ति तक सूर्यदेव को थोड़ा सा भी संदेह नहीं हुआ लेकिन एक दिन शनि भगवान को बहुत भूख लगी तो उसने अपनी माता संवर्णा से खाने के लिए मांगा.

संवर्णा ने श्री शनि भगवान से कहा कि भगवान की पूजा होने दो, उन्हें नेवैद्य चढ़ाने के बाद तुम्हें खाने को दूंगी लेकिन शनि महाराज ने मुझे अभी खाना चाहिए ऐसा कह कर संवर्णा को लात दिखाई. 

उस वक्त संवर्णा ने शनि भगवान को शापित किया कि तेरा पैर टूट जाएगा. यह सुनकर डर के मारे शनि भगवान ने पूरी घटना अपने पिता सूर्यदेव से बता दी. सूर्यदेव ने विचार किया कि माता अपने पुत्र को कभी भी शाप नहीं देती.