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पांचवीं बेटी होने पर मां-बाप ने 10 हजार रुपये में बेचा

 

गाजियाबाद। एक ओर जहां केन्द्र सरकार बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे देकर व बच्चियों के संरक्षण के लिए कई योजनाएं चला रही है, वहीं विजयनगर में मां-बाप को पांचवीं बेटी पैदा होने पर गरीबी के चलते दस हजार रुपये में एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को बेचना पड़ा।

इसके बाद जागरूक महिला आकांक्षा पाण्डेय के ट्वीट से बच्ची को बरामद कर लिया गया। इतना ही नहीं आकांक्षा ने बच्ची के मां-बाप के खिलाफ विजयनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है। बच्ची को बाल कल्याण समिति को सौंपने के बाद शेल्टर होम भेजा गया है।

क्रॉसिंग रिपब्लिक निवासी आकांक्षा पाण्डेय ने बताया कि कुछ समय पूर्व ही उसके घर काम करने वाली नौकरानी ने उसे बताया कि उसके पड़ोस में किराए पर एक परिवार रहता है, जिसके घर पांचवीं बेटी पैदा हुई है। महिला के पहले से ही चार लड़कियां और एक लड़का है। पांचवीं बेटी होने के बाद उसका पति उसके साथ मारपीट करता है और पैसे की तंगी के चलते बच्ची को बेचने की बात करता है। अभी तीन दिन पूर्व नौकरानी ने बताया कि बच्ची को उसके पिता किसी को दस हजार रुपये में बेच दिया है। आकांक्षा ने बताया कि यह सुनकर वह सकते में आ गई और फिर बाल कल्याण समिति, चाइल्ड लाइन को ट्वीट के जरिए दो दिन पहले इस मामले की जानकारी दी।

जानकारी मिलते ही चाइल्ड लाइन और बाल कल्याण समिति हरकत में आई और पति-पत्नी को पकड़ लिया गया। बाल संरक्षण अधिकारी जितेन्द्र कुमार ने बताया कि जिस आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को बच्ची बेची गई थी, फिलहाल उसके खिलाफ जांच चल रही है। दोनों पक्षों ने बाल कल्याण समिति को जानकारी दिए बगैर सब रजिस्ट्रार प्रथम के यहां से हिन्दू लॉ एक्ट के तहत गोद लेने-देने की प्रक्रिया भी पूरी कर ली थी। ऐसे में अब इस मामले में जांच शुरू कर दी गई है, क्योंकि बच्ची को हिन्दू लॉ एक्ट के तहत समिति की जानकारी के बिना गोद दिया गया है।

अब इस मामले के खुलासे से विभाग में हड़कम्प मचा हुआ है। जागरूक महिला आकांक्षा पाण्डेय ने मां-बाप के खिलाफ विजयनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है। विजय नगर थाना प्रभारी श्याम वीर का कहना है कि इस मामले में रिपोर्ट दर्ज कर विवेचना की जा रही है।

इस मामले से सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया में पैसों का लेन-देन होता है? या फिर नियमों को ताक पर रखकर बच्ची का सौदा किया गया? अमूमन किसी संस्था से बच्चे को गोद लेने के लिए भावी मां-बाप को कई तरह की प्रक्रियाओं से गुज़रना होता है। केन्द्र सरकार ने इसके लिए सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) गठित की है। यह संस्था महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है। बच्चे को गोद लेना एक लंबी क़ानूनी प्रक्रिया ज़रूर है, लेकिन इसमें कहीं भी पैसे के लेन-देन का ज़िक्र नहीं है। यहां तक कि गोद लेने वाले माता-पिता से नियमानुसार ये भी नहीं कहा जा सकता कि वे बच्चे के नाम पर कोई बॉन्ड लें या इनवेस्टमेंट करें।