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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुस्लिम संगठनों की मिली-जुली प्रतिक्रिया

 

नई दिल्ली। अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम संगठनों ने स्वागत किया है। हालांकि कुछ संगठनों ने फैसले पर असंतोष भी जताया है। उन्होंने कोर्ट के निर्णय को विपरीत फैसला बताया। साथ ही सभी मुस्लिम संगठनों ने देशवासियों से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील भी की है।

मुस्लिम पक्षकारों में से एक जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देश के मुसलमानों और दूसरे देशवासियों से ये अपील की है वो इस निर्णय को हार-जीत की दृष्टि से ना देखें और देश में अमन एवं भाईचारे के वातावरण को बनाए रखें। मदनी ने कहा कि यह निर्णय हमारी अपेक्षा के अनुकूल नहीं हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च संस्था है। उन्होंने यह भी कहा कि देश के संविधान ने हमें जो शक्तियां दी हैं, उस पर निर्भर करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने आखिरी हद तक न्याय के लिए लड़ाई लड़ी। देश के सुप्रसिद्ध अधिवक्ताओं की सेवाएं प्राप्त की। अपने पक्ष में तमाम सबूत इकट्ठा किए गए और अदालत के सामने रखे गए। उन्होंने कहा कि अपने दावे को शक्ति प्रदान करने हेतु हम जो कर सकते थे, वह किया और हम इसी बुनियाद पर आशावान थे कि निर्णय हमारे पक्ष में आएगा।

जमात-ए-इस्लामी हिंद के अमीर इंजीनियर सआदतुल्लाह हुसैनी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहां है कि हमें इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कहा कि फिर भी जो फैसला आया है, हम उसका सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि फैसले से देश में अमन व आमन बनाए रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आपसी मेलजोल और सौहार्द को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।

ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह फैसला टाइटल सूट के बजाय आपस में सुलह कराने वाला लगता है। काउंसिल के महासचिव डॉक्टर मोहम्मद मंजूर आलम ने कहा है कि ऐसा लगता है कि यह फैसला दोनों पक्षों को संतुष्ट करने के लिए दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से हालांकि देश का सांप्रदायिक माहौल नहीं बिगड़ेगा लेकिन मुसलमानों को इस फैसले से मायूसी हुई है।

बरेली स्थित विश्व प्रसिद्ध आला हजरत की दरगाह के नायब सज्जादा नशीन मौलाना तौसीफ रजा खान ने अदालत के इस फैसले को सही ठहराते हुए कहा है कि देश में इससे आपसी मेलजोल और सौहार्द की भावना पैदा होगी। उन्होंने कहा कि अदालत ने सरकार से सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में पांच एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए दिए जाने के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने इस बात पर शंका जाहिर की है कि शरीयत सरकार के जरिए उपलब्ध कराई गई जमीन पर मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं देती है। इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि वह इस जमीन का जो भी मुआवजा बनता है, उसको सरकार के खजाने में जमा कराएं।

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए इसे मुसलमानों के हित में बताया है लेकिन उन्होंने अदालत के जरिए मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दिए जाने के फैसले पर अपनी राय का इजहार करते हुए कहा है कि वहां पर मस्जिद बनाने के बजाय स्कूल या अस्पताल बनाया जाना चाहिए क्योंकि सरकार के जरिए उपलब्ध कराई गई जमीन पर मस्जिद बनाने के लिए शरीयत इजाजत नहीं देती है।