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कुंभ में आई महिला नागा साधुओं के बारे में ये खास बातें शायद नहीं जानते होंगे आप…

मकर संक्रांति के शाही स्नान के साथ ही प्रयागराज में अर्ध कुंभ का आगाज हो चुका है। ये महापर्व 14 जनवरी से शुरू होगा और 4 मार्च तक चलेगा। इस महापर्व में शाही स्नाना करने के लिए नागा साधुओं के साथ-साथ महिला नागा साधु भी आती हैं। जो अपने रहन सहन के लिए काफी फेमस हैं।

महिला नागा साधुओं के रहन सहन के बारे में जानने की हर किसी के मन में उत्सुक्ता रहती है। मगर इनके बारे में काफी कम ही जानकारी मिल पाती है।ऐसे में आज हम महिला नागा साधुओं के जीवन की कुछ रहस्मयी बात बताने वाले हैं जिन्हें सुनकर आप काफी हैरान हो जाएंगे।

महिला नागा साधु बनना को आम बात नहीं है।इस श्रेणी की सन्यासी बनने के लिए कम से कम 15 साल तक ब्रम्हचर्य का पालन करना पड़ता है। जो भी महिला नागा साधु बनना चाहती है उसे पहले अपने गुरु को विस्वास दिलाना पड़ता है कि वह इस श्रेणी की साधु बनने के लायक है।

महिला नागा साधु बनने से पहले महिला जिस अखाड़े से जुड़ना चाहती है वो अखाड़ा पहले उस महिला के जन्म से जुड़ी सभी चीजों की जांच करता है। जब महिला अपने गुरू से दीक्षा लेने जाती है उससे पहले उस महिला को यह साबित करना होता है कि उसे अपने परिवार और समाज से किसी तरह का मोह नहीं है। अगर महिला इस परीक्षा में पास हो जाती है तभी उसे दीक्षा मिलती है।

महिला नागा साधु बनने से पहले महिला को अपने पूरे परिवार का पिंड दान करना पड़ता है उसेक बाद उसे अपना मुंडन भी करवाना पड़ता है। मुंडन होने के बाद महिला को शाही स्नान और पवित्र होने के लिए नदी पर भेजा जाता है।

ये सवाल हर किसी के मन में होता है कि पुरुष और महिला नागा साधुओं में आखिर क्या अंतर होता है। चलिए तो हम आपको बता दें कि महिला साधुओं को एक पीले कलर का कपड़ा पहनकर रखना होता है। वहीं पुरुष नागा साधुओं पूरी तरह से निर्वस्त्र होते है। इतना ही नही महिला नागा साधुओं को पुरुष नागा साधुओं के साथ ही रहना पड़त है। जब महिला साधु इन सभी पड़ाव को पार कर लेती है उसके बाद उन्हें माता कहा जाता है।