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जानिए शिव की त्रिशूल और काशी का संबंध, कुछ इस तरह संभाला कशी को

बारह ज्योतिलिंगो में से काशी को भगवान शिव की सबसे प्रिय नगरी कहा जाता है. इस बात का वर्णन कई पुराणों और ग्रंथों में भी किया गया हैं. मान्यताओं के अनुसार, अगर किसी मनुष्य की मृत्यु काशी में होती है या मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार की विधि काशी में की जाती है तो उसे निश्चित ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

देश ही नही बल्कि विदेशो से भी श्रद्धालुओं की अपरमपार भीड़ यहा देखी जाती है. तो चलिए हम आपको काशी से जुड़ी कुछ ऐसे रहस्य बता रहे हैं, जो इस पावन धर्म नगरी को और भी खास बनाते हैं.

शिव का त्रिशूल जिसने सम्भाला है काशी को

मान्यताओं के अनुसार प्रलय से इस नगरी को बचाने के लिए भगवान शिव ने काशी को अपने त्रिशूल की नोक पर उठा लिया था.

एक बार नष्ट हो चुका है मंदिर 

काशी के प्राचीन मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट कर दिया था. उसके बाद दोबारा इस मंदिर का निर्माण किया गया, जिसकी पूजा अर्चना आज की जाती है.

कुंए में छुपाया गया था शिवलिंग

 जब औरंगजेब मंदिर का विनाश करने आया था, तब मंदिर में मौजदा लोगो ने शिवलिंग  को पास के कुँए में छिपा दिया था.

 मंदिर का पुनः निर्माण

 मंदिर का पुनः निर्माण इंदौर  की रानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था. मान्यता है की 18 वी शताब्दी के दौरान भगवान शिव उनके सपने में आये थे और मंदिर का निर्माण करवाने के लिए कहा था.

महाराजा रणजीत ने किया था सोने का दान

 रानी अहिल्या बाई द्वारा  मंदिर निर्माण करवाने के कुछ सालो बाद महाराज रणजीत सिंह ने मंदिर के लिए सोना दान किया था, जिसका इस्तमाल मंदिर के छत्र पर किया  गया है.

क्यों काशी को कहते है वाराणसी

यहां पर वरुणा और अस्सी नदी के बहने के कारण काशी को वाराणसी नाम से जाना जाता है. ये दोनों ही नदियां आगे जाकर गंगा नदी से मिल जाती है.

छत्र के दर्शन से पूरी होती है मनोकामनाएं

 मंदिर के उपरी ओर चमत्कारी छत्र लगा हुआ है. ऐसी मान्यता है कि उस छत्र दर्शन के बाद भक्तो की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. यही वजह है की दूरदराज़ से श्रद्धालु अपनी मिन्नतें लेकर काशी नरेश भोले शिव शंकर के पास पहुंच जाते है और शिवजी अपने भक्तों को कभी दुखी होता नहीं देख पाते.