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प्रीत डूबे चितवनों में क्या लिखा है जानती हो ?
और दर्पण मुग्ध तुम पर क्या बात ये तुम जानती हो ?
जो भी हो तुम इक मदालस प्रीत की अंजोरी हो
अनुपमा तुम रूप की तासीर को जानती हो..!!
मत समझना आईना तुम देखती हो
आईना खुद तुम पे आशिक हो गया है
आईने चुपचाप है और मौन भी है
रूप के सागर में तुम्हारे खो गया है
तुम छवि मैं आईना हूं.. मानती हो…!!
अबोली तुम कह रही क्या… जानता हूं..!
तुम्हारी हर अदा को पहचानता हूं..!!
प्रीत पथ पे कब चला अनभिज्ञ हूं…
बस तुम्हारे पथ को ही पहचानता हूं..!!
ओ, सुनयना.. सच बताना क्या मुझे पहचानती हो !!
-गिरीश बिल्लोरे मुकुल
Source : palpalindia
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