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अमानगढ़ टाइगर रिजर्व में बढ़ा सारस का कुनबा

बिजनौर। अमानगढ़ टाइगर रिजर्व एरिया में चल रही दो दिवसीय ग्रीष्मकालीन सारस गणना पूरी कर ली गई। रिजर्व एरिया में कुल 44 सारस मिले हैं, जो शीतकालीन की अपेक्षा नौ अधिक हैं।

शनिवार को अमानगढ़ टाइगर रिजर्व के रेंजर राकेश कुमार शर्मा ने बताया कि सारस की ग्रीष्मकालीन गणना के लिए पर्यवेक्षक जयपाल सिंह के नेतृत्व में 12 टीमें बनाई गई थीं। शीतकालीन गणना में टीमों की संख्या 42 थी। दो दिवसीय गणना शुक्रवार शाम को पूरी हुई। जिसकी रिपोर्ट शनिवार को विभाग को भेजी जा रही है। रिजर्व एरिया में कुल 44 सारस पाए गए, जिसमें 31 वयस्क व 13 बच्चे शामिल हैं। सबसे ज्यादा 31 सारस पीलीबांध जलाशय में देखे गए।

रेंजर ने बताया कि सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। भारत में सारस की संख्या 8 से 10 हजार तक है। वैश्विक स्तर पर इनकी संख्या तेजी से घट रही है, इसको देखते हुए आईयूसीएन ने इसे संकट ग्रस्त प्रजाति घोषित कर दिया है।

प्रेम और समर्पण का प्रतीक है सारस

सारस एक बार जोड़ा बनाने के बाद जीवन भर साथ रहता है और एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पित रहते हैं। जोड़े में एक सारस की मौत हो जाने के बाद दूसरा सारस जीवनपर्यंत अकेला रहता है। मादा एक बार में दो से तीन अंडे देती है। इन अंडों को नर और मादा बारी बारी से सेते हैं। इस दौरान नर सारस सुरक्षा की भूमिका निभाता है। एक माह बाद अंडों से बच्चे बाहर आते हैं जो लगभग चार-पांच सप्ताह बाद अपनी पहली उड़ान भरते हैं। नर व मादा में कोई विभेदी चिह्न नहीं होता है। नर और मादा की पहचान उनके आकार से की जाती है। सारस की अधिकतम आयु 18 वर्ष, भार सात किलो और ऊंचाई 6 फीट तक होती है।

सारस का संरक्षण

भारत में पाये जाने वाले सारस प्रवासी नहीं होते हैं। ये मुख्यतः स्थायी और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं। इनका मुख्य निवास दलदली भूमि, बाढ़ वाले स्थान, तालाब, झील, परती भूमि और धान के खेत हैं। इनकी घटती संख्या के अनेक कारण हैं। खेती की कम होती जमीन, सिमटते जंगल, कीटनाशक का ज्यादा इस्तेमाल, बढ़ती आबादी, बढ़ता प्रदूषण आदि इसके लिए जिम्मेदार हैं। इसके अतिरिक्त बिजली की अति उच्च धारा वाले तारों से भी इनको खतरा हैं। कुछ स्थानों पर इनका शिकार शिकारियों, जंगली बिल्ली, लोमड़ी व कुत्तों द्वारा भी किया जाता है।

जीवों को भा रही अमानगढ़ की आबोहवा

प्राकृतिक विविधताओं से भरा अमानगढ़ का जंगल वन्यजीवों व पशु-पक्षियों के लिए सुरक्षित और अनुकूलित सिद्ध हो रहा है। प्रतिवर्ष होने वाली वन्यजीव गणना में हाथी, बाघ, तेंदुआ, गिद्ध, सारस व साइबेरियन पक्षियों की संख्या में लगातार इजाफा देखा जा रहा है। जीवों के कुनबे मे हो रही बढ़ोतरी से वन विभाग और प्रकृति प्रेमी भी बेहद खुश हैं।