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अब भूखे नहीं रहेंगे लखनऊ के बुजुर्ग, मुफ्त में मिलेगा दो वक्त का खाना

 

लखनऊ। आधुनिक भारतीय समाज में भी विकास की अंधी दौड़ में बुजुर्ग माता-पिता उपेक्षित और असहाय होते जा रहे हैं। एक तरफ हमारा देश माता-पिता की आजीवन सेवा करने के संस्कारों के लिए जाना जाता है, वहीं बच्चे बुढ़ापे में उन्हें बेसहारा छोड़ दें तो उसे क्या कहेंगे?

वाकई यह बात दिल दहला देने वाली है कि जो मां-बाप बच्चों को अपना पेट काटकर पालते हैं, उनके बुढ़ापे में बच्चे उन्हें दो वक़्त की रोटी भी नहीं देते। ऐसे हजारों बुजुर्ग हैं, जिन्हें दो वक्त का भोजन नसीब नहीं हो रहा है। ऐसे बेसहारा बुजुर्गों के लिए ‘दिव्य सेवा फाउंडेशन’ एक बड़ी शुरुआत करने जा रहा है। संस्था ने भोजन बनाने में असक्षम अकेले रह रहे बुजुर्गों के लिए ‘और एक कोशिश ऐसी भी’ के जरिए निशुल्क टिफिन सर्विस शुरु करने का बीड़ा उठाया है। इसकी शुरुआत अभी केवल राजधानी लखनऊ से की जाएगा।

संस्था के अध्यक्ष दीपक महाजन शुक्रवार को ‘प्रदेश जागरण’ से बातचीत में कहा कि समाज में सबसे बुरी दशा बुजुर्गों की है। जहां बहुत से लोग बड़े-बूढ़ों को सिर्फ़ उनकी पेंशन के लिए अपने साथ रखते हैं, तो वहीं बहुत से बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनके पास आय का कोई साधन नहीं होने के कारण उनके बच्चे उन्हें दो वक़्त का खाना भी नहीं देते हैं। नौबत यहां तक आ जाती है, जब अपनी पूरे जीवन भर की मेहनत से बनाए घर से भी उन्हें निकाल कर बेसहारा छोड़ दिया जात है। संस्था लखनऊ में ऐसे बेहसहारा बुजुर्गों को दो समय का भोजन उपलब्ध कराने की शुरुआत करने जा रही है।

उन्होंने बताया कि संस्था के संपर्क कर ऐसे बुजुर्गों के बारे में जानकारी दे सकते हैं। 9450111567 और संस्था की चेयरपर्सन वर्षा वर्मा के मोबोइन नंबर 8318193805 पर कॉल करके बेसहारा बुजुर्गों के बारे में बता सकते हैं। इसके अलावा इस नेक काम में भागीदार बन सकते हैं। टिफिन सर्विस में सहयोग करने, राशन और अन्य सामग्री देने के साथ ही अपने क्षेत्र में बुजुर्गों को टिफिन पहुंचाने में इच्छुक लोग संस्था से संपर्क कर सकते हैं।

14 सालों से गरीब बच्चों और लावारिस लोगों की कर रहें मदद

दीपक महाजन राजधानी के रुरल डिपार्टमेंट में प्रशासनिक अधिकारी के पद तैनात है। सरकारी नौकरी में होने के बाद भी वे पिछले 14 सालों से गरीब बच्चों और लावारिस लोगों की मदद करने का काम कर रहे है। मां की मौत ने उन्हें दूसरों के जीवन का रखवाला बना दिया है। वे अब तक 40 बार रक्तदान कर चुके हैं। जिन लोगों के घरवाले किसी बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती हैं, ऐसे परिवारों को सप्ताह में एक दिन शुक्रवार को निःशुल्क राशन भी मुहैया कराते हैं।

उप मुख्यमंत्री कर चुके सम्मानित

समाजिक कार्यों में उनके योगदान को देखते हुए यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।
ऐसे बीता था बचपन
दीपक महाजन का जन्म 27 मार्च 1960 को वाराणसी में हुआ था। पिता सुशील महाजन रेलवे में ऑफिसर और मां राज दुलारी ग्रहणी थीं। दोनों का निधन हो चुका है। घर में चार भाई-बहन हैं। दीपक महाजन उसमें दूसरे नम्बर का हैं।

मां से मिली सेवाभाव की प्रेरणा

दीपक ने बताया कि जरूरतमंद लोगों की सेवा करने की प्रेरणा मुझे मेरी मां से बचपन से ही मिली थी। बचपन में ही ठान लिया था कि मैं बड़ा होकर जरूरतमंद लोगों की सेवा करूंगा।

बाबा रामदेव से मुलाकात के बाद जिन्दगी में आया बदलाव

मेरे जन्म के बाद ही मेरा पूरा परिवार लखनऊ में आकर बस गया था। मेरी पढ़ाई लखनऊ में ही पूरी हुई। 1980 में केकेसी कालेज से बीकॉम करने के बाद गवर्नमेंट जॉब के लिए अप्लाई किया। मुझें उसी साल रुरल डिपार्टमेंट में जॉब मिली गई। 1992 में मेरी शादी हो गई। उसके बाद भी समाजिक कार्यों में मेरी रूचि कम नहीं हुई। 2004 में एक प्रोग्राम के दौरान बाबा रामदेव से मुलाक़ात करने के बाद मेरी लाइफ में बहुत ज्यादा चेंज आ गया। मैं पहले से योग सीख रखा था। रामदेव ने मुझसें कहा कि मैं लोगों को निःशुल्क योग की ट्रेनिंग दूं। उनकी बातों को मानकर मैं लखनऊ के इंदिरा नगर में बने पार्क में लोगों को योग सिखाना शुरू कर दिया। पांच लोगों से मैंने योग सिखाना शुरू किया। धीरे-धीरे मेरे इसमें बढ़ोतरी होती चली गई। मुझें स्कूल -कॉलेज और कुछ संस्थानों से भी लोगों को योग सिखाने के लिए बुलाया जाने लगा। लखनऊ के अलावा , गुजरात, उतराखंड, देहरादून, पंजाब समेत कई अन्य शहरों में जाकर लोगों को निःशुल्क योग की ट्रेनिंग देने लगा।

लोगों की मदद के लिए बनाई खुद की ये संस्था

मैंने कुछ समाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर लखनऊ में काम करना शुरू किया। लेकिन कुछ दिन में मैंने पाया कि अधिकांश संस्थाएं समाज सेवा के नाम पर लोगों से गलत तरह से पैसा वसूल रही हैं और उसका दुरपयोग कर रही है। मैंने 2016 में दिव्य सेवा फाउंडेशन के नाम से अपना एक संगठन बनाया। इसका मकसद जरुरतमंदों की मदद करना था।