वहीं बीजेपी इस मामले पर फूंक-फूंककर कदम रख रही है. क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव है. ऐसे में पार्टी यह नहीं चाहेगी कि दलित वर्ग उनसे नाराज हों. साथ ही वह अगड़े समाज को भी नाराज नहीं करना चाहती है, जो अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए प्रोमशन में आरक्षण पर सरकार का रुख साफ होने के बावजूद भाजपा के साथ बना हुआ है।
हालांकि इस मुद्दे पर भाजाप के अपने सहयोगी भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं. कुछ पार्टी के लोग इसे रणनीति भी बता रहे हैं. पार्टी के कई सांसदों का कहना है कि अगड़ी जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उनके पारंपरिक वोटरों ने प्रमोशन में दलितों को कोटा पर विरोध के बावजूद अब तक पार्टी का साथ दिया है.
आरक्षण और एससी/एसटी कानून सहित अन्य मसलों को लेकर एनडीए के घटक दल भी मोदी सरकार को घेर रहे हैं. इन मुद्दों पर एनडीए में शामिल एलजेपी के नेता राम विलास पासवान सहित अन्य दलित सांसद इस मुद्दे पर सरकार से जवाब मांग चुके हैं.
लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख राम विलास पासवान ने कहा है कि गोयल की नियुक्ति से गलत संदेश गया है. वहीं पासवान के बेटे और लोकसभा सदस्य चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गोयल को एनजीटी अध्यक्ष के पद से हटाने की मांग की है. भाजपा के उदित राज जैसे दलित सांसदों ने भी इस मांग का समर्थन किया है.
दरअसल, ये सभी सांसद एनजीटी के अध्यक्ष एके गोयल को हटाने की मांग कर रहे हैं. क्योंकि जस्टिस गोयल सुप्रीम कोर्ट के उन दो जजों में शामिल थे जिन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के संबंध में आदेश दिया था.
बता दें कि इसी साल 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल 2018 को दलित संगठन सड़कों पर उतरे थे. दलित समुदाय ने दो अप्रैल को ‘भारत बंद’ किया था. केंद्र सरकार को विरोध की आंच में झुलसना पड़ा. देशभर में हुए दलित आंदोलन में कई इलाकों में हिंसा हुई थी, जिसमें एक दर्जन लोगों की मौत हो गई थी.