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क्या महात्मा गांधी भगत सिंह को फाँसी की सजा से बचा सकते थे?

महात्मा गांधी ने तो ख़ुद का भी कभी बचाव नहीं किया। हमेशा कहा कि अगर मैंने जुर्म किया है तो मैं उसकी सजा भुगतने के लिए तैयार हूं। चौरी-चौरा कांड की भी पूरी जिम्मेदारी ख़ुद पर लेकर उन्होंने कहा था कि मुझे सजा दे दो। अगर कुछ लोग यह सवाल उठाते हैं कि गांधी ने भगतसिंह को बचाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किया, तो इसके जवाब में यही कहा जा सकता है कि उन्होंने तो ख़ुद को भी बचाने का कभी प्रयास नहीं किया।

वह हमेशा सोचते थे कि जो भी हम काम करें, उसकी क़ीमत चुकाने के लिए हमें सहज तैयार रहना चाहिए। गांधीजी जब जेल में थे, तभी भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी थी। 26 जनवरी 1931 को गांधीजी रिहा हुए। उसके बाद मार्च में गांधी-इरविन समझौता हुआ। इसके बारे में कहा गया कि गांधीजी को यह समझौता तोड़ देना चाहिए था। भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी की सजा को रुकवाने को पूर्व शर्त बना देनी चाहिए थी, लेकिन यह स्पष्ट रूप से गांधी-इरविन समझौते में था कि हिंसक क्रांतिकारी गतिविधियों में जो लोग शामिल हैं, उन्हें नहीं छोड़ा जाएगा। जो अहिंसक सत्याग्रही थे, गांधी-इरविन समझौते के तहत ऐसे करीब 90 हज़ार राजनीतिक कैदियों की रिहाई हुई।

गांधीजी क्या भगत सिंह को बचा सकते थे? यह पूछने के साथ ही यह भी पूछना पड़ेगा कि गांधीजी उस वक़्त थे कौन। गांधीजी न तो वह भारत के वायसराय थे, न ही राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री जैसे किसी संवैधानिक पद पर थे। गांधीजी तो अंग्रेज़ों की सरकार से ख़ुद ही लड़ने वाले एक स्वाधीनता सेनानी थे। यह ज़रूर है कि उस पूरे आंदोलन के वह सर्वोच्च नेता थे और उनकी बातों का सरकार और समाज के ऊपर व्यापक प्रभाव पड़ता था। लेकिन अंग्रेज़ सरकार किसी भी तरह चाहती थी कि स्वाधीनता संग्राम की विभिन्न धाराओं के बीच मतभेद बढ़े। यह एक-दूसरे के विरुद्ध हो जाएं। अंग्रेज़ सरकार चाहती थी कि किसी न किसी तरह गांधीजी की भूमिका को संदिग्ध बनाकर उनकी लोकप्रियता को भी कम किया जा सके। सुभाष चंद्र बोस ने ‘इंडियन स्ट्रगल’ में बहुत साफ़ शब्दों में लिखा है कि गांधीजी अपनी ओर से जितना प्रयास भगत सिंह को बचाने के लिए कर सकते थे उन्होंने किया। जब तक इरविन ने फांसी के ऑर्डर पर दस्तख्त नहीं किए थे, उससे पहले गांधीजी ने तीन चिट्ठियां लिखी थीं। उसमें उन्होंने इरविन को कहा कि फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दीजिए। 18 फरवरी, 19 मार्च और 23 मार्च 1931 को ये चिट्ठियां लिखीं। इरविन ने यह नहीं माना। वह चाहते थे कि क्रांतिकारियों को फांसी हो जाए। सारा आरोप गांधी और अन्य लोगों पर लगे और युवा असंतुष्ट हो जाएं।

*रंजीत सिंह*