इस पर गृह मंत्रालय ने जवाब दिया कि उसके पास ऐसी कोई सूची नहीं है, जिसमें लोगों को ‘देशभक्तों’, ‘शहीदों’ या राष्ट्रविरोधियों के रूप में वर्गीकृत किया गया हो। मंत्रालय ने कहा था कि उसने निश्चित पैमाने एवं मानक के आधार पर किसी व्यक्ति को ‘देशभक्त’, ‘देशद्रोही’ या ‘शहीद’ के तौर पर वर्गीकृत नही किया अथवा ऐसे लोगों की तरह की श्रेणी का कोई आंकड़ा नहीं रखा।
सूचना के अधिकार के तहत की मांगसूचना आयुक्त सुधीर भार्गव ने आदेश में कहा कि प्रतिवादी ने कहा कि आरटीआई अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण आवेदक को केवल वह सूचना मुहैया कराने के लिए उत्तरदायी है, जिसका कोई रिकॉर्ड है। जो प्राधिकरण के पास मौजूद है या उसके नियंत्रण में है। अग्रवाल ने भार्गव के समक्ष सुनवाई के दौरान दावा किया कि कई लोगों के खिलाफ देशद्रोह के मामले दायर किए गए हैं।
पवन का कहना है कि गृह मंत्रालय के पास ऐसे लोगों का ब्यौरा होना चाहिए, जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। इसी तरह, मंत्रालय के स्वतंत्रता सेनानियों से संबंधित विभाग के पास भी स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों से संबंधित जानकारी होनी चाहिए। भार्गव ने कहा कि दोनों पक्षों के दावे को सुनने और रिकार्ड पर ध्यान देने के बाद आयोग का मानना है कि राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो अनुसंधान (एनसीआरबी) के अनुरूप 2014 में देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किए गए थे। इसलिए राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों की जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर गृह मंत्रालय के पास सूचना उपलब्ध नहीं थी, तो आरटीआई आवेदन उस सार्वजनिक प्राधिकरण के पास भेजा जाना चाहिए था जिसके पास इस तरह की सूचना होती है।