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अमेरिका, जापान और ऑस्‍ट्रेलिया दक्षिण चीन सागर में ताइवान पर चीन के किसी हमले को रोकने के लिए नाटो की तरह से एक संयुक्‍त मोर्चा बनाना चाहते हैं: नाटो

जापान की राजधानी टोक्‍यो में पिछले महीने हुई क्‍वाड बैठक के बाद जारी संयुक्‍त बयान में कहीं भी रूस और चीन का जिक्र नहीं किया गया। क्‍वाड के इस बयान को दुनिया में बहुत हैरत के साथ देखा गया। दरअसल, सोची समझी रणनीति के तहत क्‍वाड के बयान में रूस और चीन का खुलकर जिक्र नहीं किया गया। अमेरिका, जापान और ऑस्‍ट्रेलिया दक्षिण चीन सागर में ताइवान पर चीन के किसी हमले को रोकने के लिए नाटो की तरह से एक संयुक्‍त मोर्चा बनाना चाहते हैं। उनकी कोशिश है कि भारत ताइवान के पक्ष में बन रही मोर्चेबंदी में शामिल हो। यही वजह है कि क्‍वाड को भारत को बनाए रखने के लिए नई दिल्‍ली के दोस्‍त रूस का नाम बयान में नहीं डाला गया। वहीं आसियान देशों की भावनाओं का ख्‍याल रखते हुए चीन के नाम का उल्‍लेख नहीं किया गया। जापानी मीडिया निक्‍केई की रिपोर्ट के मुताबिक रूस के नाम का परहेज तब किया गया जब उसने यूक्रेन में जंग छेड़ रखी है। अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडन खुलकर रूसी हमलों की आलोचना की थी लेकिन संयुक्‍त बयान में इसका कोई ज‍िक्र नहीं हुआ जापानी अधिकारियों ने चीन और रूस का नाम नहीं आने पर कहा कि उन्‍हें क्‍वाड से वह मिला है इसकी वजह यह है कि ताइवान पर हमला करते समय चीन को भौगोलिक फायदा होगा। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के विशेषज्ञों के मुताबिक चीन यूक्रेन की तरह से साल 2027 तक ताइवान पर हमला करने की रणनीति बना रहा है। अमेरिका का एशिया में 5 देशों के साथ द्विपक्षीय समझौता है लेकिन अब बाइडन प्रशासन की योजना इन सभी को एक साथ काम करने के लिए एकजुट करने की है। यह कुछ उसी तरह से होगा जैसे यूक्रेन युद्ध में नाटो ने किया है। हालांकि अमेरिका की यह योजना अभी तक दूर की कौड़ी नजर आ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि टोक्‍यो क्‍वाड शिखर सम्‍मेलन 2022 अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए वह मौका है जब भारत को चीन के खिलाफ गेम प्‍लान में शामिल किया जाए।

भारत से यह अपेक्षा नहीं है क‍ि वह ताइवान के खिलाफ किसी जंग में शामिल हो लेकिन वह अपनी तरह से इसमें अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की बड़ी मदद कर सकता है। उन्‍होंने कहा कि जरूरत इस बात की है कि अमेरिका और जापान दक्षिण एशिया में भारत को उतना सशक्‍त बनाएं जितना ज्‍यादा वे कर सकते हैं। इससे चीन अपने दूसरे मोर्चे की समस्‍या यानि हिमालय पर फोकस करने के लिए बाध्‍य हो जाएगा। भारत क्‍वाड के प्रति प्रतिबद्ध बना हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल ताइवान पर मोर्चेबंदी में ही भारत फायदेमंद नहीं है, बल्कि पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन की दिशा में यह मददगार साबित हो सकता है। भारत के बारे में लंबे समय से माना जाता रहा है कि वह एशिया- प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ा निर्णायक देश है और चीन के खिलाफ सबसे बड़ा जवाब है। विश्‍व प्रसिद्ध रणनीतिकार और 8 अमेरिकी राष्‍ट्रपतियों के साथ काम कर चुके एंड्रीव मार्शल ने साल 2000 के दशक में जापानी कूटनीतिज्ञों से कहा था कि चीन की इस पूरी घेरेबंदी में भारत को भी शामिल किया जाए। जापानी राजनयिक मसाफूमी इशी ने कहा, ‘मार्शल हमेशा 20 साल आगे की सोचते थे। इसलिए हमने जी- 3 अमेरिका, चीन और भारत वाली दुनिया की तैयारी शुरू कर दी थी जहां ये तीनों ही बड़ी शक्तियां होगी।’ यही वजह है कि जापानी प्रधानमंत्री किश‍िदा ने बाइडन के टोक्‍यो से जाने के बाद भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी के लिए अकासाका महल में डिनर का आयोजन किया। इसमें ऑस्‍ट्रेलियाई प्रधानमंत्री को नहीं बुलाया गया जबकि वह उस समय तक टोक्‍यो में मौजूद थे। अमेरिकी थिंक टैंक का मानना है कि ताइवान की रक्षा के लिए अमेरिकी गठबंधन अब लगातार मजबूत होता जा रहा है क्‍योंकि कई नए सहयोगी देश जुड़ते जा रहे हैं।