कुम्भ स्पेशल |
वास्तव में ये पंडे हिन्दुत्व के प्रहरी हैं. उन्होंने हमारे इतिहास और परंपरा को सहेज कर रखा है. बहुत से लोग मनुवाद के नाम पर इनका विरोध करते हैं, लेकिन अंत समय में उन्हीं की शरण में आते हैं. इसलिए तो कहते हैं- बिन पंडा सब सून.
- यजमान की जय हो, यशस्वी भव:, दीघार्यू भव: तीर्थराज प्रयाग में डुबकी लगाकर निकलने, संकल्प
देने और दान करने के बाद आशीर्वाद के स्वरूप में इस तरह के शब्द आपको सुनने को मिलते हैं.
आखिर आशीर्वाद देने वाले कौन लोग हैं? उन्हें आम भाषा में ‘पंडा’ कहते हैं. - पंडा हर तीर्थ स्थान पर मिल जाएंगे. वह तीर्थ स्थल चाहे छोटा हो या बड़ा वे हर जगह हैं। वह काशी हो, गया हो या फिर कामाख्या, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र सहित चारो धाम व अन्य सभी तीर्थस्थल हों, उन सभी स्थलों पर पंडे मिलते हैं. लेकिन प्रयागराज के पंडों का अपना अलग ही महत्व है.
- जिस तरह पार्टियों के झंडे और चुनाव चिन्ह होते हैं, उसी तरह यहां के पंडों के भी होते हैं. हर पंडा का अपना झंडा होता है. उनके अपने निशान हैं.
- वही उनकी पहचान है. हाथी वाला पंडा, गाय वाला पंडा, घोड़ा वाला पंडा, बन्दर वाला पंडा, हरा झंडा वाला पंडा, तीन लोटा वाला पंडा, लाल झंडेवाला पंडा, त्रिपुण्ड वाला, त्रिशुल वाला, ढोलक वाला, चिमटे वाला, तराजू वाला ऐसे हजारों नाम हैं.
- सभी की अलग-अगल पहचान है. वैसे तो यहां पंडे बारहो महीने होते हैं, लेकिन माघ मास और कुंभ, अर्द्धकुंभ में वे ज्यादा सक्रिय रहते हैं. कई जगह के पंडा के बारे में लोगों की धारणा गलत बन जाती है। वे इन पंडों के बारे में अलग राय बना लेते हैं.
- जिस तरह पार्टियों के झंडे और चुनाव चिन्ह होते हैं, उसी तरह यहां के पंडों के भी होते हैं. हर पंडा का अपना झंडा होता है. उनके अपने निशान हैं.
- वही उनकी पहचान है. हाथी वाला पंडा, गाय वाला पंडा, घोड़ा वाला पंडा, बन्दर वाला पंडा, हरा झंडा वाला पंडा, तीन लोटा वाला पंडा, लाल झंडेवाला पंडा, त्रिपुण्ड वाला, त्रिशुल वाला, ढोलक वाला, चिमटे वाला, तराजू वाला ऐसे हजारों नाम हैं.
- सभी की अलग-अगल पहचान है. वैसे तो यहां पंडे बारहो महीने होते हैं, लेकिन माघ मास और कुंभ, अर्द्धकुंभ में वे ज्यादा सक्रिय रहते हैं. कई जगह के पंडा के बारे में लोगों की धारणा गलत बन जाती है। वे इन पंडों के बारे में अलग राय बना लेते हैं.
- लेकिन प्रयागराज के पंडे यजमान की सेवा के लिए पहचाने जाते हैं. यजमान प्रसन्न होकर जो कुछ देता है, उसे वे हर्ष के साथ स्वीकार करते हैं. यदि तत्काल यजमान के पास कुछ धन-साधन न हो, तब भी वे अपने यजमान के पूजा- पाठ का पूरा प्रबंध करते हैं.