अग्निवीर योजना, आठवें वेतन आयोग के गठन से इनकार जैसे कारण से सवाल उठ रहे हैं कि क्या केंद्र सरकार की आर्थिक हालत ठीक नहीं है? उन्होंने पूछा कि केंद्र सरकार का सारा पैसा गया कहां? फिर खुद ही इसका जवाब देते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने अपने दोस्तों और अरपबतियों का 10 लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया गया। उन्होंने यह भी दावा किया कि 5 लाख करोड़ रुपए का टैक्स भी माफ किया गया है। अरविंद केजरीवाल ने कहा, ”पिछले कुछ दिनों से जिस तरह जनता को फ्री में मिलने वाली सुविधाओं का विरोध किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सरकारें कंगाल हो जाएंगी, देश के लिए आफत पैदा हो जाएगी। इन सुविधाओं को बंद किया जाए। इससे मन में शक पैदा होता है कि क्या केंद्र सरकार की आर्थिक हालात बहुत ज्यादा खराब तो नहीं हो गई है। इतना ज्यादा विरोध क्यों किया जा रहा है। 70-75 सालों से बच्चों को फ्री शिक्षा, सरकारी अस्पतालों में इलाजा और गरीबों को राशन दिया जा रहा है। अचानक इनका इतना विरोध क्यों किया जा रहा है? अरविंद केजरीवाल ने अग्निवीर योजना को भी इस शक की वजह बताते हुए कहा, थोड़े दिन पहले ये अग्निवीर योजना लेकर आए। कहा गया कि इसकी जरूरत इसलिए पड़ी कि सैनिकों की पेंशन का खर्च सरकार वहन नहीं कर पा रही है। पहली बार कोई सरकार कह रही है कि सैनिकों की पेंशन का खर्च नहीं उठा सकती। आज तक किसी सरकार ने नहीं कहा था कि हम पेंशन नहीं दे पा रहे हैं। ऐसा क्या हो गया केंद्र सरकार सैनिकों को पेंशन देने के हालत में भी नहीं है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा, “हर पांच-पांच साल (बाद में सुधार करते हुए 10-10 साल) में केंद्र सरकार केंद्रीय कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग बनाती है। अभी आठवां वेतन आयोग बनने वाला था। अब केंद्र सरकार ने कहा है कि हम नहीं बनाएंगे क्योंकि हमारे पर पैसा नहीं है। केंद्र सरकार के पास अपने कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने के लिए पैसा नहीं बचा। कहां गया केंद्र सरकार का पैसा? केंद्र सरकार की इतनी क्या बुरी हालत हो गई है कि वेतन आयोग नहीं बैठा रहे हैं? गौरतलब है कि देश में पहला वेतन आयोग वर्ष 1946 में, दूसरा 1957 में, तीसरा 1970 में, चौथा 1983 में, पांचवां 1994 में और छठा 2006 में बना था। आम चुनाव से ठीक पहले 4 फरवरी 2014 में सातवें वेतन आयोग का गठन किया गया था और 29 जून 2016 को इसकी सिफारिशें मंजूर की गई थीं। औसतन दस साल के अंतराल पर वेतन आयोग का गठन होता रहा है।