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दुनिया में प्रदूषित वायु से हर साल हो रहीं 42 लाख मौतें : डॉ. इग्नेशियो

 

लखनऊ। विश्व एलर्जी संगठन के अध्यक्ष और स्पेन के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. इग्नेशियो जे. अंसोतेगुई ने शुक्रवार को यहां बताया कि प्रदूषित वायु के कारण दुनिया में हर साल करीब 42 लाख लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। उन्होंने बताया कि आने वाले समय में यूरोप की आधी जनसंख्या वायु प्रदूषण से होने वाले एलर्जिक बीमारियों की चपेट में होगी।

डॉ. इग्नेशियो आज राजधानी में वायु प्रदूषण एवं एलर्जी पर आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि प्रदूषण दुनिया भर में मृत्यु और बीमारी का सबसे बड़ा पर्यावरणीय कारण है। उन्होंने बताया कि दहनशील ईंधन के जलने और बायोमास ईंधन के कारण लगभग 85 प्रतिशत वायु प्रदूषण फैलता है। चिकित्सा विज्ञान के अध्ययनों ने वायु प्रदूषकों और एलर्जी व श्वसन लक्षणों में वृद्धि के बीच संबंध दिखाया है।

उन्होंने बताया कि बढ़ते प्रदूषण से हवा में पराग कणों की संख्या बढ़ेगी, जिसके परिणामस्वरूप एलर्जी पैदा हो सकती है। भारतीय उप-महाद्वीप में विभिन्न जलवायु क्षेत्र हैं, जिसका अर्थ है कि उनके पास अलग-अलग एलर्जी है। एलर्जी को भड़काने में आर्द्रता प्रमुख भूमिका निभाती है। जैसे-जैसे आर्द्रता बढ़ती जाती है, नए नए फफूंद और धूल के कण अधिक हानिकारक होते जाते हैं। बढ़ता प्रदूषण भी पराग के एलर्जेनिक गुणों को बढ़ा देता है। उन्होंने यह भी बताया कि दुनिया भर में लगभग 38 लाख लोग चूल्हे पर खाना बनाने के कारण मौत के शिकार हो रहे हैं।

डॉ. इग्नेशियो ने कहा कि बाहरी वायु प्रदूषण के अलावा, आंतरिक वायु प्रदूषण में वृद्धि भी बढ़ती हुयी एलर्जी केलिए जिम्मेदार है। घरेलू सफाई में इस्तेमाल होने वाले रसायनिक पदार्थ, स्प्रे और मच्छर निरोधी कॉइल्सके अंधा-धुंध उपयोग से भी एलर्जी पैदा होती है। जलवायु परिवर्तन से भी एलर्जी रोगों की वृद्धि होती है।

एलर्जी के वैश्विक परिप्रेक्ष्य पर बोलते हुए विश्व एलर्जी संगठन के अध्यक्ष ने वायु प्रदूषण की वजह से मानव स्वास्थ पर होने वाले दुष्प्रभाव एवं एलर्जी के रोगों और कारकों पर इस दौरान अपने शोध भी प्रस्तुत किये। उन्होंने एलर्जी रोगों को प्रभावित करने वाले एलर्जी के विभिन्न कारणों, प्रेरक पदार्थो तथा पर्यावरणीय परिवर्तनों की विस्तृत चर्चा की।

इस विषय में भारतीय परिप्रेक्ष्य पर प्रकाश डालते हुये इंडियन काॅलेज ऑफ एलर्जी अस्थमा एवं एप्लाइड इम्यूनोलाॅजी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिये बड़ा खतरा है। उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से नौ शहर कानपुर, फरीदाबाद, गया, वाराणसी, पटना, दिल्ली, लखनऊ, आगरा और गुड़गांव भारत के हैं। इनमें कानपुर सबसे प्रदूषित शहर है।

डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि वायु प्रदूषण के कारण सूर्य के प्रकाश की मात्रा कम हो जाती है जो पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया को प्रभावित करती है। घटता हुआ वन आवरण वायु प्रदूषण के इस प्रभाव को और भी बढा़ता है। पिछले 50 वर्षों में भारत में 50 प्रतिशत वन आवरण नष्ट हो गया है। ग्रामीण वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान चूल्हे पर भोजन पकाने द्वारा उत्पन्न उत्सर्जनों का होता है। इनकी सान्द्रता कोयला जलने से उत्पन्न सान्द्रता से पांच गुना अधिक होती है। ग्रामीण स्त्रियों में चूल्हे पर खाना बनाने से श्वास सम्बन्धी अत्यन्त गम्भीर रोग से ग्रसित होने का खतरा ज्यादा होता है। विश्व में लगभग 3 अरब लोग अभी भी खाना पकाने के लिए खुले में ठोस ईंधन जैसे कोयला, लकड़ी आदि का उपयोग करते हैं। तंबाकू का धुआं भी एक बड़ी पर्यावरणीय चिंता बन रहा है।

उन्होंने बताया कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण हर साल लगभग 12 लाख व्यक्तियों की मौतें होती हैं। दिल्ली में प्रतिवर्ष करीब 35000 लोग वायु प्रदूषण जनित रोगों की वजह से असमय काल के गाल में समा जाते हैं। उन्होंने बताया कि देश की राजधानी दिल्ली की हवा इतनी प्रदूषित हो गई है कि वहां 24 घण्टे सांस लेने से व्यक्ति एक दिन में 50 सिगरेट के बराबर धुआं का सेवन करता है।

डॉ सूर्यकान्त ने बताया कि वायु प्रदूषण से अस्थमा, सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया,अधिक रक्तचाप का खतरा, कैंसर, मानसिक मंदता, चिंता, बालों का झड़ना, बांझपन, गर्भपात, ओजोन परत की कमी तथा भूमि की उर्वरता भी कम हो जाती है। शहरी क्षेत्रों में रहने वाले हर तीन भारतीयों में से एक एलर्जी से पीड़ित है। वे बस इसे आम सर्दी या खांसी का रूप समझते हैं।

उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण वायुमंडल की प्राकृतिक विशेषताओं को संशोधित करता है। वायुमंडल में प्रमुख वायु प्रदूषक कण पदार्थ नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, कार्बन डाईआक्साइड और हाइड्रोकार्बन कणों के रूप में मौजूद हैं। वाह्य प्रदूषण के दो मुख्य स्रोत परिवहन और उद्योग जनित प्रदूषक हैं। वायु प्रदूषण फैलाने में आधे से अधिक योगदान परिवहन तन्त्र का है जबकि 10 प्रतिशत से अधिक योगदान उद्योग उत्सर्जन का है। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए, भारत सरकार ने प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम -1981 को अधिक प्रभावी बनाया है। भारत सरकार वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए जंगलों की कटाई पर प्रतिबंध और अधिक से अधिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहन, शहरीकरण प्रक्रिया को कम करना, शहरी क्षेत्रों से कारखानों काविस्थापन करके, उच्च प्रौद्योगिकी का उपयोग, वाहनों कान्यूनतम उपयोग और सीएनजी वाहनों को बढ़ावा देना, सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना, ग्रामीण क्षेत्रों में एलपीजी गैस को बढ़ावा देना, जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहित कर रही है।

डॉ. सूर्यकान्त ने आगे बताया कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश के 20 शहरों में पर्यावरण जोखिम से जुड़े स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए एकराष्ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य प्रोफाइल अध्ययन की शुरूआत 2019 में की है। इस अध्ययन का उद्देश्य वायु प्रदूषण की वजह से मानव स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन करना है। इसमें से कानपुर शहर में होने वाला अध्ययन उनके नेतृत्व में चल रहा है।

उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने देश में बढ़ती वायु प्रदूषण की समस्या को देखते हुए एक पंचवर्षीय कार्य योजना राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) देश के 102 शहरों में 10 जनवरी 2019 को शुरू किया। इस कार्यक्रम का लक्ष्य 2024 तक पीएम 2.5 और पीएम 10 के वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय स्तर पर 20ः-30ः तक घटाना है। वर्ष 2017 को इस योजना के लिए आधार वर्ष के रूप में प्रस्तावित किया गया है।

वायु प्रदूषण की समस्या को नियन्त्रित करने के लिए डॉ. सूर्यकान्त ने समाज को व्यक्तिगत रूप से सार्वजनिक परिवहन के उपयोग में वृद्धि, फूलों के गुलदस्ते के बजाय पौधों को भेंट स्वरूप देना, पैदल चलने और साइकिल का उपयोग करना तथा धूम्रपान के उन्मूलन का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए देश के डाक्टरों ने समाजिक संगठन ‘डॉक्टर्स फाॅर क्लीन एयर’ की शुरूआत की है।

लखनऊ चेस्ट क्लब एवं उप्र चेप्टर, इण्डियन चेस्ट सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस संगोष्ठी में जाने माने फिजिशियन, बाल रोग विशेषज्ञ, नाक कान गला रोग विशेषज्ञ, चेस्ट रोग विशेषज्ञ एवं पर्यावरण वैज्ञानिक उपस्थित रहे।