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2019 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के बीच इस फॉर्मूले से होगा सीटों का बंटवारा

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जीती हुई और रनर-अप सीटें सपा-बसपा के बीच चुनावी समझौते का आधार बनेंगी। दोनों दलों के बीच प्रारंभिक तौर पर 30-30 सीटों पर बातचीत शुरू होने की संभावना है।

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा उम्मीदवारों की जीत ने दोनों दलों के बीच गठबंधन की नींव तैयार कर दी है। बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन जारी रहने की घोषणा कर चुके हैं।

दोनों दलों के बीच सीटों का बंटवारा सबसे अहम है। सूत्रों के मुताबिक सीट बंटवारे का आधार 2014 के चुनाव परिणाम बनेंगे। मोटे तौर पर जो सहमति बन रही है उसके मुताबिक 2014 में जीती हुई सीटों के अलावा जो दल जिस सीट पर दूसरे नंबर पर रहा है, वहां उसकी दावेदारी रहेगी।

ऐसी सीटों को चिह्नित भी कर लिया गया है। सपा-बसपा नेता अनौपचारिक बातचीत में रनर-अप सीटों पर चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर सहमति बनने की संभावना से इन्कार नहीं कर रहे हैं।

अखिलेश और मायावती, दोनों ने ही कांग्रेस के प्रति नरम रुख दिखाया है। यह इस बात का संकेत है कि भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने की कोशिशें हो सकती हैं। दोनों ने ही कांग्रेस से अच्छे संबंधों का दावा किया है।

अभी यह साफ नहीं है कि रालोद की इस गठबंधन में क्या भूमिका होगी। जिस तरह राज्यसभा चुनाव में वोट निरस्त करने के बाद अजित सिंह ने अपने विधायक को दल से निष्कासित किया है, उससे महागठबंधन में रालोद के शामिल रहने की उम्मीद बढ़ी है। पश्चिमी यूपी के एक-डेढ़ दर्जन जिलों में जाट मतदाताओं की भूमिका को देखते हुए रालोद भी गठबंधन का हिस्सा बन सकता है।

कैराना में होगी रालोद की परीक्षा

भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के कारण कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव होगा। रालोद चाहता है कि इस सीट पर जयंत चौधरी को लड़ाया जाए। रालोद नेताओं का कहना है कि सवाल एक सीट के चुनाव का नहीं, पश्चिमी यूपी में राजनीतिक समीकरण बनाने का है।

यूं भी 2014 की तुलना में वेस्ट यूपी के हालात काफी बदल चुके हैं। पूर्व सांसद अमीर आलम, पूर्व मंत्री कोकब हमीद, पूर्व विधायक नवाजिश आलम खान समेत कई प्रमुख मुस्लिम नेता रालोद में शामिल हो चुके हैं। हालांकि इस बाबत अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।