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100 साल पहले खुदाई में मिला था पाताली शिवलिंग, आज तक नहीं बन सका गुंबद

 

 

 

हमीरपुर। मानेश्वर बाबा शिव मंदिर में विराजमान शिवलिंग का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। ये शिवलिंग खुदाई के दौरान कारीमाटी व सौखर गांव के बीच घने जंगल में सौ साल पहले दिखा था लेकिन शिव लिंग का अंतिम छोर आज तक कोई नहीं देख पाया। एक गाय ने इस स्थान पर शिवलिंग होने का आभास कराया था, क्योंकि वह अपना सारा दूध इसी पवित्र स्थान पर निचोड़ देती थी। इस शिव मंदिर में सावन मास की धूम मची है, जहां दूरदराज से श्रद्धालु बड़ी संख्या में पूजा करने आते हैं। इस मंदिर में सच्चे मन से जलाभिषेक करने पर मुरादें पूरी होती हैं।

मंदिर के पुजारी द्वारिका प्रसाद ने बताया कि सौ साल पहले सुमेरपुर कस्बे के छाछें प्रसाद सेठ की गाय को चरवाने के लिए सिमनौड़ी गांव का चरवाहा ले जाता था। वह एक स्थान पर अपना सारा दूध निचोड़ देती थी। घर पहुंचने पर जब गाय दूध नहीं देती थी तो मालिक बहुत डांटता था। आखिर चरवाहा ने गाय पर नजर रखने का फैसला किया। घने जंगल में सीधे एक स्थान पर पहुंचकर वह अपना सारा दूध निचोड़ दिया। ये अद्भुत नजारा देख चरवाहा हैरत में पड़ गया। उसने इस बारे में सारी जानकारी सेठ को दी। सेठ के मन में उस स्थान को देखने की जिज्ञासा हुई। उसी रात उसे स्वप्न दिखा कि वहां पताली शिवलिंग है। स्वप्न के बाद सेठ सुबह होते ही चरवाहे के साथ वहां पहुंच गया और उस पवित्र स्थान की खुदवाई शुरू कराई।

सिमनौड़ी गांव निवासी रामलाल आरख ने घने जंगल में झाड़ियों के आसपास खुदाई की तो कुछ ही दिन में शिवलिंग नजर आया। सेठ ने शिव को घर में स्थापित करने का फैसला किया। शिवलिंग को बाहर निकालने के लिए तीस फीट तक खुदाई कराई गई लेकिन शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं दिखा। फिर सेठ को स्वप्न आया कि इस अंतिम छोर पाताल में है। इसके बाद वहां एक चबूतरा बनवाया गया और शुरू में लोग चबूतरे में शिव लिंग की पूजा अर्चना करने लगे।

सौ साल से नहीं बन सका शिवमंदिर का गुंबद

छंगा प्रसाद सेठ के परिजन छाछे प्रसाद ने सौ साल पहले इस स्थान पर मंदिर का निर्माण शुरू कराया था। उसने फैसला भी किया था कि मंदिर का गुंबद (सुराही) ऊंचा बनवाकर घर की छत से रोजाना सुबह मंदिर के दर्शन किए जाएंगे। कुछ दिनों में ही गुंबद गिर गया। इसके बाद हर बार बनाने का प्रयास नाकाम रहा। रात में सेठ को फिर स्वप्न आया कि यदि गुंबद बनवाये तो तेरा घर बर्बाद हो जाएगा। इसके बाद गुंबद बनाने का कार्य स्थगित हो गया।

मंदिर की जमीन बेचने पर महंत नहीं रहा सुखी

सेठ के परिजन पंसारी नन्ना ने बताया कि यह मंदिर मौजूदा में बालकृष्ण पंसारी के आधीन है। मंदिर के निर्माण के दौरान बिरखेरा निवासी लल्ला शर्मा को यहां का महंत बनाया गया था। मंदिर की भव्यता के लिए 360 बीघा जमीन खरीदी गई थी। महंत ने सारी जमीन सिमनौड़ी गांव के लोगों को बेच दी। इसके बाद वे कभी सुखी नहीं रहे।