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होमगार्ड से डाक्टर ज्ञानेंद्र बना किसान का बेटा

                                                            “एसपी ने किया सम्मानित”

देव श्रीवास्तव
लखीमपुर-खीरी।
कौन कहता है कि आसमां में छेद नही होता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों यह कहावत होमगार्ड ज्ञानेंद्र कुमार पर सौ टका सही बैठती है। होमगार्ड जैसी छोटी नौकरी में रहते हुए पीएचडी करना आसमान में छेद करने जैसा ही है। अपनी काबिलियत के दम पर अपने नाम के आगे डाक्टर लिखने का सौभाग्य तो ज्ञानेंद्र को मिल गया, लेकिन इसके पीछे उनके त्याग और बलिदान की कहानी भी जाननी जरूरी है।
 

ज्ञानेंद्र  ऐसे हुए डॉ. ज्ञानेंद्र

हम रूबरू कराएंगे ज्ञानेंद्र के त्याग की कहानी से, आप को यह बताना भी जरूरी है कि अब तक ज्ञानेंद्र या सही शब्दों में डा. ज्ञानेंद्र जिस नौकरी में थे, वह सरकारी नही थी। दैनिक वेतनभोगी ज्ञानेंद्र ने परिवार के भरण-पोषण के लिए सन 2004 में होमगार्ड की नौकरी कर ली। बुलंदिया छूने के हौंसले ने उन्हें अपनी पढ़ाई लगातार जारी रखने की प्रेरणा दी। 1995 में किसान उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नीमगांव से हाईस्कूल, 1997 में जीआईसी लखीमपुर से इण्टर करने के बाद सन 2000 में वाईडी से बीएम की परीक्षा उत्तीर्ण की। 2002 में एमए किया। जिसके बाद नौकरी के दौरान ही 2004 में एम.फिल. की परीक्षा पास की, हिन्दी साहित्य से एमए व एम फिल करने वाले ज्ञानेंद्र को आसमान की जिन ऊचाईयों को छूना था, अब वह चंद कदमों की दूरी पर थीं। बुलंद हौंसला ज्ञानेंद्र ने लखनऊ विश्वविद्यालय में फरवरी 2008 में दाखिला लिया। आखिरकार उनका सपना साकार हुआ और 2014 में उन्हें डाक्टर कहा जाने लगा। महकमा में यह बात लम्बे समय तक दबी रही, आखिर तीन वर्ष बाद उनकी इस डिग्री की बात उच्चाधिकारियों तक पहुंच ही गई और एसपी डा. एसएस चन्नप्पा द्वारा उन्हें  शुक्रवार को सम्मानित किया गया। अपने सपनों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रोफेसर बनना उनका सपना है। अपने परिवार के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि पिता श्रीराम विलास व माता राजपति ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। पांच वर्ष पहले उनकी जिंदगी में धर्मपत्नी बनकर आई अंकिता ने भी उनका पूरा साथ दिया है। अपनी दोनों बेटियों अनामिका व आराधना के बारे में उन्होंने बताया कि दोनों बेटियां उनकी प्रेरणा स्त्रोत है। छोटो भाई धीरेन्द्र कुमार दिल्ली में साफ्टवेयर इंजीनियर है। दो बहनें है, जिनका स्नेह जीवन में सदा रहा है। कुल मिलाकर ज्ञानेंद्र से डाक्टर ज्ञानेंद्र बनने तक के पथरीले रास्ते जिस तरह से ज्ञानेंद्र ने पार किए, उससे एक बात तो साफ है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती। 

बढ़ना चाहिए होमगार्डों का दैनिक वेतन

डीएम, सीओ व सदर कोतवाली में बतौर होमगार्ड अपनी सेवा दे चुके ज्ञानेंद्र से जब होमगार्डों के वेतन पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि आर्थिक स्थिति को देखते हुए सरकार को होमगार्डों के दैनिक मानदेय को बढ़ाना चाहिए। अभी मात्र 375 रूपए प्रतिदिन ही मिलता है। उन्होंने आशा जताई कि सरकार जल्द ही होमगार्डों की समस्या पर भी ध्यान देगी।