यूपी में सीएम पद के नाम को लेकर चल रही माथापच्ची के बीच बेशक किसी नाम की घोषणा की जाए लेकिन एक बात तो साफ है कि इस कुर्सी पर बैठेगा वही जिस पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का वरदहस्त होगा। केंद्रीय नेतृत्व ने भी इसके लिए शाह को ही अधिकृत कर दिया है। इससे पहले उत्तराखंड में भी यह बात साबित हुई जब तमाम बड़े नामों को छोड़कर भाजपा अध्यक्ष के करीबी त्रिवेन्द्र सिंह रावत को ही इस पहाड़ी राज्य की कमान सौंप दी गई।
जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज, पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, बीसी खंडुरी और रमेश पोखरियाल निशंक जैसे बड़े नेताओं का नाम चर्चाओं में था, लेकिन शाह से नजदीकियों के चलते बाजी मार ले गए डोईवाला से विधायक त्रिवेन्द्र सिंह रावत। ऐसे में बड़ा सवाल यही खड़ा हो जाता है कि क्या सीएम के पद पर अन्य काबिलियतों के साथ शाह का करीबी होना भी जरूरी है।
शाह से नजदीकियों के चलते ही अंजान से खट्टर बन गए थे सीएम
दो साल पहले जब हरियाणा में भाजपा ने सबको चौंकाते हुए विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल किया था तब सबसे बड़ा सवाल यही था कि पार्टी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसे बिठाएगी। उस दौरान कैप्टन अभिमन्यु जैसे कई बड़े नाम रेस में थे लेकिन अचानक उभर कर सामने आए एक नाम ने सबको चौंका दिया।
सीएम की कुर्सी मिली अनजान से चेहरे और पहली बार विधायक बने मनोहर लाल खट्टर को। खट्टर का नाम इसलिए भी चौंकाने वाला था क्योंकि वो उस जाट समुदाय से नहीं आते थे जिसका हरियाणा की राजनीति में एकछत्र राज रहा है। खट्टर के पास कोई बड़ा प्रशासनिक या राजनीतिक अनुभव भी नहीं था लेकिन एक वो बात जिसने उनकी राह आसान कर दी वो थी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से नजदीकी।
सरल स्वभाव के खट्टर को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह चुनावों से पहले ही काफी पसंद करते थे। झारखंड में पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा जब बहुमत से आई तो सीएम पद के लिए जारी खींचतान के बीच अचानक अमित शाह के करीबी रघुबर दास का नाम उभरकर सामने आया। जल्द ही उनकी इस पद पर ताजपोशी भी कर दी गई।
फडणवीस के भी काम आई थी शाह से नजदीकियां
इसके अलावा महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले जब भाजपा ने सबको चौंकाते हुए अपनी पुरानी सहयोगी शिवसेना से अलग होकर अकेले दम चुनाव लड़ने का जोखिम लिया तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के इस फैसले को सही ठहराने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उस समय प्रदेश अध्यक्ष रहे देवेन्द्र फडणवीस पर ही थी।
फडणवीस इस चुनौती पर खरे भी उतरे और पार्टी को विधानसभा में सबसे ज्यादा सीटें दिलवाई। इसका इनाम भी उन्हें मिला और अमित शाह ने इस गैर मराठा नेता को राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने में जरा भी देरी नहीं लगाई। जबकि उस समय रेस में पूर्व भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी सबसे मजबूत दावेदार थे, वहीं भाजपा के शीर्ष नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे और विजय तावड़े जैसे कद्दावर नेता भी ताल ठोंक रहे थे।
लेकिन फडणवीस का शाह से नजदीकी होना सब पर भारी पड़ गया। ऐसे में साफ है कि जिस राज्य में पार्टी सत्ता में आती है वहां मुख्यमंत्री भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पसंद का ही होगा, खासकर वो जो उनका नजदीकी रहा हो।
हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते यह उनके अधिकार क्षेत्र में भी आता है लेकिन उनसे नजदीकी सब पर भारी पड़ जाती है। ऐसे में देखना रोचक होगा कि यूपी में सीएम की कुर्सी पर भी यह दावा बरकरार रहता है या इस बार परिपाटी बदल जाएगी।