न कोई कार्यालय धर्मशाला शिफ्ट हुआ और न ही यहां कोई मंत्री या बड़ा अधिकारी बैठ रहा है। चंबा, हमीरपुर, ऊना, कांगड़ा व मंडी के लोगों को अभी सरकारी काम के लिए शिमला के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। राजधानी के नाम पर यहां एक बाबू और एक चपरासी बिठाए गए हैं। यहां भू-व्यवस्था अधिकारी को सीएम के विशेष सचिव अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।
शर्मा और सुजान सिंह पठानिया भी मिनी सचिवालय में जनता की समस्याएं सुनने के लिए नहीं बैठे। शिमला से धर्मशाला निदेशालय तो दूर कोई छोटा दफ्तर भी शिफ्ट नहीं हो सका, जिससे निचले हिमाचल के लोगों को लाभ पहुंचता।
इनमें से रोजाना काम सिर्फ क्लर्क के एक कमरे में होता था। इसके अलावा सभी कमरों के बाहर ताला लगा रहता था। मिनी सचिवालय का काम सीएम के विशेष निजी सचिव का अतिरिक्त कार्यभार देखने वाले भूव्यवस्था अधिकारीे, एक क्लर्क और एक चपरासी देखता था।
दूसरी राजधानी की अधिसूचना के बाद भी इस व्यवस्था में कोई अंतर नहीं आया है। पुराने तीन अधिकारी और कर्मचारी ही आज भी मिनी सचिवालय का कामकाज देख रहे हैं। आज भी क्लर्क का ही कमरा खुला रहता है। कोई मंत्री और अफसर जनसमस्याएं सुनने के लिए कमरों में नहीं बैठता है।
ऊर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया पांच साल में एक बार मिनी सचिवालय में आए। सुधीर शर्मा कभी नहीं आते लेकिन उनका ओएसडी जरूर उनके कमरे में होता है। मंत्रियों और अफसरों के न आने की वजह से बंद कमरों में सीलन और बदबू आ गई है।
कांग्रेस ने जनता को ठगा: सत्ती
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने कहा कि कांग्रेस सरकार हमेशा झूठी घोषणाएं करती हैं। धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने के नाम पर कांग्रेस ने जनता को ठगा है।
कैबिनेट में फैसले के बावजूद आखिर कांग्रेस ने क्यों नहीं मिनी सचिवालय में सरकार के सभी मंत्री और अफसर बिठाए। हिमाचल की जनता कांग्रेस की ठगी का चुनाव में जवाब देगी। आम आदमी हमेशा झूठी घोषणाओं का विरोध करता है।
धूमल ने किया था शिलान्यास और उद्घाटन
मिनी सचिवालय धर्मशाला का शिलान्यास पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल ने 10 फरवरी 1999 को किया था। महज चार वर्ष में तीन मंजिला भवन बनकर तैयार हुआ। इसके बाद धूमल ने ही 3 दिसंबर 2002 को मिनी सचिवालय का उद्घाटन किया था।
वीरभद्र ने 2003 में बिठाया था स्टाफ
वर्ष 2003 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला के मिनी सचिवालय में विशेष सचिव की नियुक्ति की थी। इसी दौरान वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला को अघोषित राजधानी का दर्जा दिया था।