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सिर्फ सियासी शिगूफा बनकर रह गई दूसरी राजधानी, मंत्री बैठते हैं न अफसर

धर्मशाला को हिमाचल की दूसरी राजधानी बनाने की घोषणा जनता के साथ मजाक बनकर रह गई। वोट बैंक की सियासत में धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने के लिए निचले हिमाचल के लोगों को कई बार सब्जबाग दिखाए, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ।
चुनावी साल में मौजूदा सरकार ने भी धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने का एलान किया, लेकिन बात घोषणा से आगे नहीं बढ़ सकी। 3 मार्च 2017 को वीरभद्र सरकार ने इस बारे अधिसूचना भी जारी कर दी, पर आठ महीने बाद भी धर्मशाला के मिनी सचिवालय में कोई बदलाव नहीं हुआ।

न कोई कार्यालय धर्मशाला शिफ्ट हुआ और न ही यहां कोई मंत्री या बड़ा अधिकारी बैठ रहा है। चंबा, हमीरपुर, ऊना, कांगड़ा व मंडी के लोगों को अभी सरकारी काम के लिए शिमला के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। राजधानी के नाम पर यहां एक बाबू और एक चपरासी बिठाए गए हैं। यहां भू-व्यवस्था अधिकारी को सीएम के विशेष सचिव अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।

धर्मशाला को प्रदेश की दूसरी राजधानी बनाने पर सियासत लंबे समय से हो रही है। कांग्रेस व भाजपा दोनों सरकारों के कार्यकाल में ऐसा होता रहा है। दो मार्च 2017 को कैबिनेट की बैठक में वीरभद्र सरकार ने धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने पर मुहर लगाई। तीन मार्च को इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी गई

फैसला हुआ था कि अब सभी मंत्री एवं प्रशासनिक अधिकारी जनता की समस्याएं सुनने के लिए धर्मशाला में भी बैठेंगे। लेकिन, करीब आठ महीने के बाद भी ऐसा कुछ नहीं हो सका। दूसरे मंत्री तो क्या, कांगड़ा जिला से ताल्लुक रखने वाले तीनों मंत्री जीएस बाली, सुधीर

शर्मा और सुजान सिंह पठानिया भी मिनी सचिवालय में जनता की समस्याएं सुनने के लिए नहीं बैठे। शिमला से धर्मशाला निदेशालय तो दूर कोई छोटा दफ्तर भी शिफ्ट नहीं हो सका, जिससे निचले हिमाचल के लोगों को लाभ पहुंचता।

घोषणा से पहले और अब कोई बदलाव नहीं

धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा देने से पहले मिनी सचिवालय तीन मंजिला भवन की सिर्फ एक मंजिल में आठ कमरों में चल रहा था। इसमें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, सीएम के निजी सचिव, मुख्य सचिव, अधिकारी कक्ष, बैठक हाल, परिवहन मंत्री जीएस बाली, शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा के कक्ष थे।

इनमें से रोजाना काम सिर्फ क्लर्क के एक कमरे में होता था। इसके अलावा सभी कमरों के बाहर ताला लगा रहता था। मिनी सचिवालय का काम सीएम के विशेष निजी सचिव का अतिरिक्त कार्यभार देखने वाले भूव्यवस्था अधिकारीे, एक क्लर्क और एक चपरासी देखता था।

दूसरी राजधानी की अधिसूचना के बाद भी इस व्यवस्था में कोई अंतर नहीं आया है। पुराने तीन अधिकारी और कर्मचारी ही आज भी मिनी सचिवालय का कामकाज देख रहे हैं। आज भी क्लर्क का ही कमरा खुला रहता है। कोई मंत्री और अफसर जनसमस्याएं सुनने के लिए कमरों में नहीं बैठता है। 

कर्मचारी बोले, भूत बंगला लगता है मिनी सचिवालय

नाम न छापने की शर्त पर मिनी सचिवालय में कुछ कर्मचारियों ने बताया कि मिनी सचिवालय भूत बंगला से कम नहीं है। पिछले पांच साल में यहां पर कोई मंत्री एवं बड़ा अफसर नहीं आया। मंत्री जीएस बाली जरूर प्रेस वार्ता करने आते हैं। सीएम शीत प्रवास में एकाध बार आ जाएं तो गनीमत हो जाती है।

ऊर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया पांच साल में एक बार मिनी सचिवालय में आए। सुधीर शर्मा कभी नहीं आते लेकिन उनका ओएसडी जरूर उनके कमरे में होता है। मंत्रियों और अफसरों के न आने की वजह से बंद कमरों में सीलन और बदबू आ गई है।

कांग्रेस ने जनता को ठगा: सत्ती 
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने कहा कि कांग्रेस सरकार हमेशा झूठी घोषणाएं करती हैं। धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने के नाम पर कांग्रेस ने जनता को ठगा है।

कैबिनेट में फैसले के बावजूद आखिर कांग्रेस ने क्यों नहीं मिनी सचिवालय में सरकार के सभी मंत्री और अफसर बिठाए। हिमाचल की जनता कांग्रेस की ठगी का चुनाव में जवाब देगी। आम आदमी हमेशा झूठी घोषणाओं का विरोध करता है।

दर्जा मिलना बड़ी बात, भवन बनने में लगता है वक्त: सुधीर

शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा ने कहा कि धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा मिलना बड़ी बात है। इससे धर्मशाला का कद ऊंचा हुआ है। निदेशालय और अन्य सरकारी दफ्तरों के भवन बनने में वक्त लगता है।

धूमल ने किया था शिलान्यास और उद्घाटन
मिनी सचिवालय धर्मशाला का शिलान्यास पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल ने 10 फरवरी 1999 को किया था। महज चार वर्ष में तीन मंजिला भवन बनकर तैयार हुआ। इसके बाद धूमल ने ही 3 दिसंबर 2002 को मिनी सचिवालय का उद्घाटन किया था।

वीरभद्र ने 2003 में बिठाया था स्टाफ
वर्ष 2003 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला के मिनी सचिवालय में विशेष सचिव की नियुक्ति की थी। इसी दौरान वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला को अघोषित राजधानी का दर्जा दिया था।