Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भाजपा ने कसी कमर, कहा- लगाएंगे जीत की मुहर

amit-shah-modi-7591 (1)20 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनावों को लेकर मंच सज चुका है और राजनीतिक दलों ने भी अपनी अपनी तरफ से मोर्चाबंदी तेज कर दी है। पूरे देश की निगाहें इस बात पर टिकी हुई हैं कि भाजपा अपने उम्‍मीदवार के तौर पर किसका नाम तय करती है क्योंकि उसी उम्‍मीदवार के नाम पर ही एनडीए के घटक दल अपनी मुहर लगाएंगे ऐसे में उसकी जीत भी तय मानी जा रही है।
 
वहीं, विपक्षी दल भी भाजपा की तरफ ही मुंह करके बैठे हैं, उन्हें भी इंतजार सत्ता पक्ष के उम्‍मीदवार का है, मनमाफिक उम्‍मीदवार न दिखने पर विपक्ष अपनी राह अलग कर सकता है। हालांकि उम्‍मीदवार को लेकर विपक्षी खेमें में भी अभी एक राय नहीं हो सकी है, बुधवार को हुई विपक्ष की बैठक भी इस मुद्दे पर बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई थी।

हालांकि इन सबसे इतर निगाहें भाजपा की तरफ ही हैं क्योंकि चुनाव का असली रुख वो ही तय करेगी। लेकिन भाजपा के सामने भी एक बड़ी बाधा जिससे पार पाना उसके लिए बड़ी चुनौती है। खास बात ये है कि पिछले तीन राष्ट्रपति चुनावों से भाजपा को इसी बाधा से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में इस बार के चुनावों में एक बार‌ फिर भाजपा के सामने वही चुनौती है।

तीन बार से भाजपा को गच्चा दे रही शिवसेना

भाजपा के लिए ये चुनौती है सहयोगी दल शिवसेना को साधने की। आमतौर पर हर चुनाव में भाजपा का समर्थन करने वाली शिवसेना का रिकार्ड राष्ट्रपति चुनाव के मामले में बिल्कुल अलग रहा है, पिछले तीन चुनावों से लगातार शिवसेना भाजपा के उम्‍मीदवार से अलग विपक्ष के उम्‍मीदवार का समर्थन करती रही है। 
अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में जब मुलायम सिंह के प्रस्ताव पर एनडीए ने अबुल कलाम आजाद का नाम तय किया तो शिवसेना ने मुस्लिम उम्‍मीदवार के तौर पर हाथ पीछे खींच लिए थे। हालांकि तब अन्य दलों के समर्थन से भाजपा अपने उम्‍मीदवार को जितवाने में सफल हो गई थी। इसके बाद अगले चुनाव में एनडीए सत्ता से बाहर हुआ तो कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए ने प्रतिभा पाटिल के रूप पर अपना उम्‍मीदवार खड़ा किया।

भाजपा ने इसके खिलाफ निवर्तमान उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत को मैदान में उतारा तो शिवसेना फिर पलटी मार गई और मराठी अस्मिता के नाम पर सत्तारूढ़ यूपीए की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल को समर्थन देने की घोषणा कर दी।

पिछले चुनाव में फिर वही कहानी दोहराई गई, यूपीए के उम्‍मीदवार प्रणब मुखर्जी के खिलाफ जब भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए ने पीए संगमा को अपना उम्‍मीदवार बनाया तो शिवसेना ने उसे समर्थन देने के बजाय प्रणब मुखर्जी को समर्थन दे दिया। हालांकि इन तमाम गतिरोधों के बावजूद भाजपा और शिवसेना का गठबंधन जारी रहा। लेकिन मौजूदा दौर में हालात बिल्कुल बदले हुए हैं।

शिवसेना फिलहाल एनडीए में तो है लेकिन हर छोटे-बड़े मुद्दे पर वह भाजपा के खिलाफ खड़ी नजर आती है। इन हालातों में भाजपा के लिए उसे साधना अब भी टेढ़ी खीर लग रहा है। ऐसे में पुराने अनुभवों से सबक लेते हुए भाजपा इस बार बिना शिवसेना के ही बहुमत का आंकड़ा जुटाने में लगी है।

ये है मौजूदा चुनाव का गणित

मौजूदा चुनाव में कुल 4120 विधायक और लोकसभा-राज्यसभा के 776 सांसद वोट डालेंगे।
-फिलहाल केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए के सांसद और विधायकों के हिसाब से कुल 532019 वोट हैं।
-जीत के लिए उसे कुल 549442 वोटों की जरूरत है यानि उसके पास 17423 वोट कम हैं।
-हालांकि मोटा मोटी ये संख्या 20 से 25 हजार तक भी हो सकती है
-एनडीए के इस आंकड़े में फिलहाल शिवसेना के सांसदों और विधायकों का वोट भी शामिल है
-अगर शिवसेना भाजपा को समर्थन नहीं करती है तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी, उस कड़ी में उसे 50 हजार तक वोटों का जुगाड़ करना होगा।
-शिवसेना के 63 विधायक हैं और महाराष्ट्र विधानसभा में एक विधायक का मत है 175, यानि शिवसेना विधायकों के कुल मतों का जोड़ हुआ 11025 वोट।
-संसद में शिवसेना के पास राज्यसभा और लोकसभा मिलाकर कुल 21 सांसद हैं, एक सांसद के वोट का मूल्य है 708, यानि कुल मतों का जोड़ हुआ 14868 वोट। कुल जमा शिवसेना के पास फिलहाल 25893 वोट सुरक्षित हैं। और भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि ये वोट उसके पाले से छिटककर विपक्ष के खेमे में जाएं।
 
 

Leave a Reply

Your email address will not be published.