हालांकि इन सबसे इतर निगाहें भाजपा की तरफ ही हैं क्योंकि चुनाव का असली रुख वो ही तय करेगी। लेकिन भाजपा के सामने भी एक बड़ी बाधा जिससे पार पाना उसके लिए बड़ी चुनौती है। खास बात ये है कि पिछले तीन राष्ट्रपति चुनावों से भाजपा को इसी बाधा से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में इस बार के चुनावों में एक बार फिर भाजपा के सामने वही चुनौती है।
भाजपा ने इसके खिलाफ निवर्तमान उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत को मैदान में उतारा तो शिवसेना फिर पलटी मार गई और मराठी अस्मिता के नाम पर सत्तारूढ़ यूपीए की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल को समर्थन देने की घोषणा कर दी।
पिछले चुनाव में फिर वही कहानी दोहराई गई, यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के खिलाफ जब भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए ने पीए संगमा को अपना उम्मीदवार बनाया तो शिवसेना ने उसे समर्थन देने के बजाय प्रणब मुखर्जी को समर्थन दे दिया। हालांकि इन तमाम गतिरोधों के बावजूद भाजपा और शिवसेना का गठबंधन जारी रहा। लेकिन मौजूदा दौर में हालात बिल्कुल बदले हुए हैं।
शिवसेना फिलहाल एनडीए में तो है लेकिन हर छोटे-बड़े मुद्दे पर वह भाजपा के खिलाफ खड़ी नजर आती है। इन हालातों में भाजपा के लिए उसे साधना अब भी टेढ़ी खीर लग रहा है। ऐसे में पुराने अनुभवों से सबक लेते हुए भाजपा इस बार बिना शिवसेना के ही बहुमत का आंकड़ा जुटाने में लगी है।
-जीत के लिए उसे कुल 549442 वोटों की जरूरत है यानि उसके पास 17423 वोट कम हैं।
-हालांकि मोटा मोटी ये संख्या 20 से 25 हजार तक भी हो सकती है
-एनडीए के इस आंकड़े में फिलहाल शिवसेना के सांसदों और विधायकों का वोट भी शामिल है
-अगर शिवसेना भाजपा को समर्थन नहीं करती है तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी, उस कड़ी में उसे 50 हजार तक वोटों का जुगाड़ करना होगा।
-शिवसेना के 63 विधायक हैं और महाराष्ट्र विधानसभा में एक विधायक का मत है 175, यानि शिवसेना विधायकों के कुल मतों का जोड़ हुआ 11025 वोट।
-संसद में शिवसेना के पास राज्यसभा और लोकसभा मिलाकर कुल 21 सांसद हैं, एक सांसद के वोट का मूल्य है 708, यानि कुल मतों का जोड़ हुआ 14868 वोट। कुल जमा शिवसेना के पास फिलहाल 25893 वोट सुरक्षित हैं। और भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि ये वोट उसके पाले से छिटककर विपक्ष के खेमे में जाएं।