लखनऊ में शनिवार को शुरू हुए प्रदेश स्तरीय न्यायिक अधिकारी सम्मेलन में उत्तर प्रदेश की निचली अदालतों के करीब 1200 जजों के समक्ष उन्होंने यह प्रश्न उठाया। दो दिवसीय इस सम्मेलन में प्रदेश के 75 जिलों के जिला जज व अपर जिला जज भाग ले रहे हैं।
अभिभाषण में जस्टिस चेलमेश्वर ने ‘उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राजनारायण केस 1975’ का सीधे नाम लिए बिना कहा ‘करीब चार दशक पहले इस देश के आधुनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया था। उसका मंच भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ही था। एक जज की निर्भीकता कैसी होती है, देश के सबसे शक्तिशाली पद पर आसीन व्यक्ति के चुनाव विवाद में देखने को मिली। उस जज के जज्बे को सलाम करने की जरूरत है। उसके बाद जो हुआ वह नया इतिहास बना।’
जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि इस मामले का उल्लेख करने का उद्देश्य यह है कि इसके बाद भारत सरकार ने सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उस राज्य के बाहर से नियुक्त करने की नीति बना दी। ‘हर नीति की मजबूती और कमजोरियां होती हैं। इस नीति से क्या हम कुछ अच्छा उद्देश्य हासिल कर सके? क्या दोष सामने आए। इस पर बहस होनी चाहिए।
संविधान में नहीं, लेकिन राजनीतिक दल एकमत
जस्टिस चेलमेश्वर ने किसी राजनीतिक दल का नाम लिए बिना कहा कि एक प्रमुख राजनीतिक संगठन ने यह नीति बनाई और बाकी सब इस पर सहमत हो गए। जबकि इसका प्रावधान हमारे संविधान में नहीं था। ‘मैं यह नहीं कह रहा कि इस नीति को खत्म कर दिया जाए, लेकिन इस पर बहस शुरू होनी चाहिए।’
– आंध्रप्रदेश के मछलीपट्टनम शहर से वकालत शुरू करने और इसी राज्य की हाईकोर्ट में में 1997 में अपर जज बने जस्टिस चेलमेश्वर को 2007 में गुवाहाटी हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया।
– बाद में वे केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 2011 में सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में पदोन्नत हुए।