हाल में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी की भारी जीत के बाद कई विपक्षी दलों ने एकसाथ खड़े होने का फैसला लिया है। बीजेपी और मोदी सरकार से मुकाबले के लिए 9 पार्टियों ने एक साथ मिलकर लड़ने का फैसला किया है। स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी नेता दिवंगत मधु लिमये की जयंती के मौके पर सभी राजनैतिक दलों ने आपसी दूरियों को भुलाकर बीजेपी और आरएसएस से लड़ने का फैसला किया। सभी पार्टियों के नेताओं ने एक स्वर में कहा कि सांप्रदायिक ताकतों से देश के विभाजन का खतरा पैदा हो गया है और भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष ताकतों के लामबंद होने की जरूरत है। कई नेताओं ने बिहार की तर्ज पर भाजपा विरोधी दलों का महागठबंधन बनाने की जरूरत बताई। अधिकतर नेताओं का मानना है कि आगामी राष्ट्रपति चुनाव विपक्ष की एकता का पहला चरण माना जाए।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक समारोह में मौजूद कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे कांग्रेस, समाजवादी और कम्युनिस्ट राजनीतिक धराएं अलग-अलग होने के बावजूद भी संघ और भाजपा के विभाजनकारी और सांप्रदायिक दृष्टिकोण से भिन्न हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक लड़ाई को व्यक्तित्वों के संघर्ष में परिवर्तित न किया जाए, जैसा की बीजेपी और एनडीए सरकार अपनी नीतियों की विफलता को छुपाने की कोशिश के तौर पर कर रही हैं। वहीं, जेडीयू नेता शरद यादव ने कहा कि बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता संसद में शुरू हो गई है। अब इसे जमीन पर लाना है। यादव ने आरोप लगाया कि एनडीए सरकार के कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर से लेकर नॉर्थ-ईस्ट और साउथ में स्थितियां तनावपूर्ण और नाजुक हो गई हैं, क्योंकि भाजपा-आरएसएस हर जगह अपनी वैचारिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि को लागू करने पर जोर दे रही है।
कांग्रेस के अलावा जनता दल यू, सीपीएम, सीपीआई, एनसीपी, बहुजन समाजवादी पार्टी, जनता दल एस, सोशलिस्ट पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के नेता इस सम्मेलन में शामिल हुए। सम्मेलन को कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, जनता दल यू के शरद यादव, सीपीएम के सीताराम येचुरी, सीपीआई के अतुल कुमार अनजान, एनसीपी के देवीप्रसाद त्रिपाठी, राष्ट्रीय लोकदल के अजित सिंह आदि ने संबोधित किया। गौरतलब है कि इससे पहले भी कई बार राजनीतिक दल बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए महागठबंधन की बात कर चुके हैं। हालांकि यह गठबंधन कितना सफल हो पाता है, इसे लेकर हमेशा संशय के बादल घहराते रहे हैं।