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बुजुर्गो के बारे में भी सोचिए

25_02_2017-op2हाल में ब्रिटेन और अमेरिका में कई ऐसी रिपोर्टे आई हैं जिनमें कहा गया है कि संसार के प्राय: सभी देशों में बुजुर्गो की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इन रिपोर्टो के अनुसार 2050 में संसार के संपन्न देशों में ऐसे बुजुर्गो की संख्या जिनकी उम्र 80 वर्ष से अधिक होगी, दोगुनी हो जाएगी। आज संसार की जनसंख्या में उनका हिस्सा चार प्रतिशत है, परंतु 2050 में यह बढ़कर दस प्रतिशत हो जाएगा। इसका एक मुख्य कारण यह है कि आज औसत आयु पहले से बढ़ गई है और स्वास्थ्य सेवाएं भी बेहतर हुई हैं। प्राय: सभी देशों में ऐसे बुजुर्गो की संख्या भी बढ़ रही है जो गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। इन बीमारियों में एक प्रमुख बीमारी ‘अल्जाइमर्स’ है। इस बीमारी के शिकार व्यक्ति का शरीर का कोई एक अंग 24 घंटे कांपता रहता है।

दुनिया में अभी तक इस बीमारी का कारगर इलाज नहीं मिल पाया है। अन्य दूसरे बुजुर्ग हृदय रोग और हड्डियों की गंभीर बीमारियों से पीड़ित होते हैं। उन्हें हर तरह की सहायता की दिन-रात जरूरत होती है, पर सभी देशों में इतनी सुविधा नहीं कि वे इन बुजुर्गो को लंबी अवधि तक अस्पतालों में रख सकें। इस के समाधान के लिए पश्चिम के कुछ देशों के साथ जापान ने एक रास्ता ‘केयर होम’ के तौर पर निकाला है।1यह पाया गया है कि संपन्न देशों में जो बुजुर्ग अस्पताल में भर्ती होते हैं वे जल्दी वहां से हटने का नाम नहीं लेते। इन बुजुर्ग मरीजों के रिश्तेदार भी यही चाहते हैं कि उनका जितनी लंबी अवधि तक अस्पताल में इलाज हो सके, किया जाए। एक तो अस्पतालों के लिए ऐसा करना संभव नहीं और दूसरे, इसमें खर्च भी बहुत अधिक आता है। यही सोचकर ‘केयर होम’ की सुविधा संपन्न देशों में शुरू की गई। बुजुर्ग मरीजों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अस्पताल के बजाय ‘केयर होम’ में रहें।

प्रतिदिन ‘वीडियो कांफ्रेंसिंग’ के माध्यम से अस्पतालों के डॉक्टर या नर्स उनसे दिन में दो-तीन बार पूछती रहती हैं कि उन्होंने अमुक दवाई ली या नहीं? दरअसल तकनीक इतनी बढ़ गई है कि रिमोट कंट्रोल द्वारा आदमी फ्रिज खोल सकता है या कमरे का तापमान एडजस्ट कर सकता है। यदि कोई किसी बुजुर्ग मरीज की दिन में एक-दो बार खोज-खबर ले ले तो उन्हें बहुत सुकून मिलता है। इसके बावजूद इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बुजुर्ग मरीजों की यह इच्छा रहती है कि उनके परिवार के सदस्य ही बुढ़ापे में उनकी देखभाल करें। ब्राजील, भारत और अन्य एशियाई देशों में ऐसी ही लालसा रहती है, परंतु यह हमेशा संभव नहीं हो पाता। आर्थिक कठिनाइयों के कारण परिवार के युवा सदस्यों को गांव देहात से निकलकर शहरों में जाना पड़ता है जहां पति-पत्नी, दोनों कोई न कोई नौकरी करते हैं।

उन्हें इतना समय नहीं मिलता है और न इतनी सुविधा होती है कि वे बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल कर सकें। इस कारण भी अब बूढ़े माता-पिता को लोग ‘ओल्डएज होम’ में छोड़ देते हैं और समय-समय पर उनसे मिलने जाते रहते हैं, लेकिन इन ओल्डएज होम में ये बुजुर्ग अपने को असहाय महसूस करते हैं। यह भी देखा गया है कि अमेरिका जैसे देश में भी नस्लभेद के कारण एशियाई मूल के बुजुर्गो के साथ ओल्डएज होम में भलीभांति देखरेख नहीं होती। परिणामस्वरूप समुचित देखभाल के अभाव में वे जल्दी ही दम तोड़ देते हैं। अब तो ओल्डएज होम की प्रथा भारत में भी चल पड़ी है। 1बुजुर्गो की सबसे बुरी हालत चीन में है। जब वहां ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ अपनाई गई तो परिणाम यह हुआ कि बुजुर्गो की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई। आज चीन में छह में से एक व्यक्ति 60 वर्ष से अधिक उम्र का है। 2025 में हर चार में से एक चीनी बुजुर्ग होगा। चीन में तमाम बुजुर्ग ‘डिमेंसिया’ नामक बीमारी से पीड़ित हैं। इस रोग से पीड़ित व्यक्तिहर पुरानी बात को याद करता है, परंतु चंद क्षणों पहले किए गए काम को भूल जाता है। दुर्भाग्यवश चीन का समाज और वहां की सरकार बुजुर्गो का समुचित ध्यान नहीं रख पा रही है। भारत में भी बुजुर्ग लंबी उम्र होने के कारण अपने को असहाय महसूस करते हैं।

सरकार चाहकर भी स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दे पाती है। अपने यहां गांव-देहात में स्वास्थ्य सेवाएं नहीं के बराबर हैं। यह एक गंभीर समस्या है जिस पर केंद्र और राज्य सरकारों के साथ समाज को भी गंभीरता से सोचना होगा। हर व्यक्तिको यह ध्यान रखना होगा कि वह भी बूढ़ा अवश्य होगा। यदि आज बूढ़ों की स्वास्थ्य समस्याओं के साथ-साथ उनकी देखभाल पर ध्यान नहीं दिया गया तो जब वे बूढ़े होंगे तब उनका कौन ख्याल रखेगा? डर है कि कहीं चीन की तरह भारत में भी बुजुर्ग उपेक्षा का शिकार न हों? यह ठीक है कि आज हम युवा देश हैं, लेकिन समझदारी इसी में है कि अभी से इसकी चिंता करें कि अपने बुजुर्गो की सही तरह से देख-रेख कैसे हो? ऐसा इसलिए और आवश्यक है, क्योंकि समय के साथ पारिवारिक मूल्य भी छीज रहे हैं।

 

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