Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

बीजेपी में तेज हो रहे है विरोध के स्वर

उत्तरप्रदेश में राजनीतिक हलचल कभी बंद नहीं होती और लोकसभा उपचुनावों के पहले सूबे में हुई हार से बीजेपी परेशान हो गई है और ऊपर से पार्टी के दलित और ओबीसी नेताओं ने संगठन और सरकार के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया है. पहले बहराइच की सांसद सावित्री बाई फूले ने प्रदेश नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व को चेतावनी देते हुए लखनऊ में रैली की. अब इसी क्रम में रॉबर्टसगंज से बीजेपी सांसद छोटेलाल ने सीधे सीएम योगी और पार्टी प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. मामला गरमा गया है. मामले में बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता चंद्रमोहन कहते हैं कि सांसद को पार्टी फोरम पर बात रखनी चाहिए थी. उनकी सरकार सबका साथ सबका विकास के नारे से चल रही है. लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं है. मामला गंभीर है. ऐसा विरोध कोई पहली बार नहीं हो रहा है.

अब तक 

विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल ,बलिया विधायक सुरेंद्र सिंह, बाँदा से विधायक राजकरन कबीर, प्रतापगढ़ में कैबिनेट मंत्री राजेन्द्र प्रताप सिंह, इलाहाबाद की मेजा से बीजेपी विधायक नीलम करवरिया, अमेठी में विधायक मयंकेश्वर सिंह, मंत्री सुरेश पासी, बाराबंकी से सांसद प्रियंका रावत, सोनभद्र के सांसद छोटेलाल खरवार, बांदा के सांसद भैरव प्रसाद मिश्र, मंत्री ओम प्रकाश राजभर, लखनऊ के मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर, सांसद हरीश द्विवेदी, फतेहपुर सीकरी से सांसद चौधरी बाबूलाल आदि बीजेपी के खिलाफ खड़े हो चुके है. 

समीकरणों को समझे तो लोकसभा में 121 में से 67 दलित सांसद बीजेपी के ही हैं. इनमें उत्तर प्रदेश की सभी सुरक्षित 17 लोकसभा सीटें भी शामिल हैं. वहीं यूपी की विधानसभा में 87 दलित विधायक बीजेपी के टिकट पर चुन कर आए हैं. इस लिहाज से देखें तो 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावोंं में दलित वोट का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ गया. लेकिन गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में बदले समीकरणों में राजनीति का मिजाज़ गड़बड़ाया है. ऐसे में मिशन 2019 की कामयाबी के जरूरी है कि बीजेपी पहले अपना घर संभाले और फिर विरोधियों के पलटवार का राजनैतिक जवाब दे.