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बिना शर्त हो बोलने की आजादी

27_04_2017-26tufail_ahmadउच्चतम न्यायालय ने 22 अप्रैल को आदेश दिया कि ‘धर्म के निरादर’ से जुड़े सभी मामले आपराधिक नहीं हैं। इस फैसले से भारत में सोच एवं अभिव्यक्ति को बढ़ावा मिलेगा। फिलहाल भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए के तहत लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के अपराध में तीन साल तक की सजा हो सकती है। अदालत का यह आदेश क्रिकेटर एमएस धौनी की उस याचिका पर आया जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को चुनौती दी थी। यह मामला 2013 में एक पत्रिका के आवरण पर धौनी को भगवान विष्णु के रूप में चित्रित करने से जुड़ा था। आदेश के अनुसार धारा 295ए तभी लागू होगी जब कोई व्यक्ति ‘जानबूझकर या दुर्भावना के साथ’ धर्म के निरादर का दोषी पाया जाए। अदालती आदेश के बावजूद मेरा मानना है कि नाट्यकर्मी, फिल्मकार, कलाकार, लेखकों और नागरिकों को धार्मिक मान्यताओं का निरादर करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
समाज की प्रगति के लिए यह आवश्यक है। कोई किसी धर्म की आलोचना तभी करेगा जब उसे ऐसा करना सार्थक लगेगा। ऐसे में बोलने की आजादी बिना किसी शर्त के मिलनी ही चाहिए। दुनिया के 22 मुस्लिम देश तीन तलाक की कुप्रथा को तिलांजलि दे चुके हैं, लेकिन हमारे मौलवियों को लगता है कि भारत में तीन तलाक खत्म होने से धर्म की तौहीन हो जाएगी। ऐसे मौलवियों की धार्मिक भावनाएं आहत करना जरूरी है ताकि उनकी रूढ़िवादी मानसिकता को झकझोर कर तीन तलाक के खात्मे से मुस्लिम महिलाओं के समानता के अधिकार की सुरक्षा की जा सके। धार्मिक मान्यताओं की आलोचना, चुनौती और निरादर के बिना समाज में नए विचारों का सूत्रपात नहीं किया जा सकता।
पैगंबर अब्राहम यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों में पूजनीय हैं। वह बचपन से ही जिज्ञासु थे। एक बार उनके गांव के सभी लोग त्योहार मनाने निकले। अब्राहम मंदिर में घुसे और उन्होंने मूर्तियों का सिर धड़ से अलग कर दिया और अपनी कुल्हाड़ी सबसे बड़ी मूर्ति की गर्दन पर रख दी। जब लोगों ने अब्राहम से इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि अपनी सबसे बड़ी मूर्ति से ही पूछिए। अब्राहम की ही तरह लेखकों और कार्यकर्ताओं को भी अपने समाज की मान्यताओं को चुनौती देनी चाहिए। अगर अब्राहम ने अपने लोगों की मान्यताओं का निरादर न किया होता तो यहूदी, ईसाई और मुस्लिम जैसे एकेश्वरवादी धर्मों का जन्म नहीं हुआ होता।
अब्राहम की तरह हजरत मोहम्मद ने भी मक्का के लोगों की धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाने के लिए बोलने की आजादी का इस्तेमाल किया जो मुशरिकीन यानी हिंदुओं की तरह कई देवी-देवताओं की पूजा करते थे। असल में कुरान की तमाम आयतों में मुशरिकीन, मुनाफिकीन और काफिरों यानी मूर्तिपूजकों और अधर्मियों के प्रति द्वेष भरी बातें है। इन्हें गैरकानूनी बना दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये गैर-मुस्लिमों के प्रति नफरत के बीज बोती हैं। हजरत मोहम्मद को भी तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ा और मक्का छोड़ना पड़ा। अगर वह मक्कावासियों की धार्मिक मान्यताओं को चुनौती नहीं देते तो इस्लाम का जन्म ही नहीं होता। अभी हाल में ट्विटर पर मैंने लिखा कि स्वामी विवेकानंद शाकाहारी नहीं थे। इस पर खुद को हिंदुत्व का पैरोकार बताने वाले कुछ हिंदू मुझ पर बिफर पड़े। उन्होंने गालियां देनी शुरू कर दीं। किसी ने सत्यता जांचने की कोशिश नहीं की। जब मैंने उत्तर प्रदेश में एंटी रोमियो दस्ते द्वारा बेकसूर युवाओं को प्रताड़ित करने को लेकर ट्वीट किया तो खुद को योगी का समर्थक बताने वाले हिंदू युवाओं ने मेरे खिलाफ नफरत भड़का दी। वे योगी के अंधभक्त हैं। जब मैंने पूछा कि क्या वैदिक काल में हिंदू गायों की बलि दिया करते थे तो उन्होंने मेरे खिलाफ घृणित अभियान शुरू कर दिया जबकि मैंने एक धार्मिक लेखक के हवाले से ही लिखा था जिनके मुताबिक यज्ञ आदि आयोजनों में गायों की बलि दी जाती थी।
धार्मिक भावनाओं को लेकर आग्रही लोगों के लिए सच मायने नहीं रखता, मगर सच्चाई के लिए वाक स्वतंत्रता बेहद जरूरी है। अगर आप कमरे में अकेले हैं और किसी के बारे में भला-बुरा कहते हैं तो किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। सोच एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में तभी खलल पड़ता है जब कोई उसका विरोध करे। सामाजिक स्थितियों में बोलने की आजादी प्रासंगिक है, लेकिन दूसरों को नुकसान पहुंचाने की मंशा से की गई बातें बोलने की आजादी में नहीं आतीं। बोलने की आजादी में यही एक सीमा है। हत्या का प्रलोभन देना वाक स्वतंत्रता में नहीं आएगा जैसे 1989 में खुमैनी द्वारा सलमान रुश्दी की हत्या के लिए फतवा जारी करना बोलने की आजादी में नहीं गिना जाएगा।
ब्रिटिश दार्शनिक नाइजेल वारबर्टन ने लिखा है, ‘आलोचना की आजादी के बिना लोकतांत्रिक व्यवस्था के निरंकुश तंत्र में बदलने की आशंका है।’ भारत जैसे खुले समाज में बोलने की आजादी बिना शर्त मिलनी चाहिए जहां सिर्फ अपवाद यही हो कि इससे किसी को नुकसान न पहुंचे। वाक स्वतंत्रता समाज की प्रगति में ईंधन का काम करती है। 1633 में गैलीलियो ने कहा कि धरती सूर्य की परिक्रमा करती है। इस तर्क के लिए उन्हें सजा दी गई। गैलीलियो सही थे और पूरा समाज गलत था। जब राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ मुहिम छेड़ी तो उनकी कड़ी आलोचना की गई। ऐसा करने वालों में उनकी मां भी थीं। समुदायों में बच्चों, महिलाओं, पुरुषों, पशुओं के प्रति विरोध भाव होता है। स्वभाव से हम मनुष्य नहीं, बल्कि एक दूसरे के विरोधी हैं। ऐसे में लेखकों के लिए जरूरी है कि वे अपने सामाजिक परिवेश का आलोचनात्मक आकलन करें। चूंकि लेखक अपने समाज की आलोचना करता है तो वह अपने समाज के लोगों के बीच ही बाहरी बन जाता है। लोग उसे प्रताड़ित करते हैं और कई बार उनके अपने ही नफरत के चलते उनकी हत्या तक कर देते हैं। अपने वक्त के लिहाज से अब्राहम, मोहम्मद, गैलीलियो और राजा राममोहन राय, इन सभी ने वर्जनाओं को तोड़ा। वे अपने ही लोगों के निशाने पर आ गए। आज यह जरूरी है कि धारा 295ए जैसे वाक स्वतंत्रता विरोधी कानून खत्म हों। अब अखबारों से लेकर फेसबुक और ट्विटर तक तमाम आलोचक मौजूद हैं, लेकिन क्या इन्होंने अपने समुदाय की धार्मिक मान्यताओं की आलोचना की? अगर आपका विरोध केवल दूसरे समुदायों तक ही सीमित है तो आप कट्टरपंथी हैं जो दूसरे के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। अगर आप शिया हैं तो सुन्नी मुसलमानों की आलोचना करने से पहले आपको शिया मुसलमानों की खामियों पर नजर डालनी चाहिए। अगर ब्राह्म्मण या तमिल हैं तो दूसरों पर अंगुली उठाने से पहले अपनी परंपराओं पर सवाल करें। अगर मुसलमान हैं तो हिंदुओं में नुक्स निकालने से पहले अपनी कमियों पर गौर करें। प्रचलित मान्यताओं पर प्रश्न करने पर ही नए समाजों का सृजन होता है।
अतीत में कई जनजातियों में उसे ही कबीले का सरदार बनाया जाता था जो विरोधियों के सबसे ज्यादा सिर कलम करके लाता था। आधुनिक सभ्य समाज में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। समाज को निश्चित रूप से आगे बढ़ना चाहिए। अगर किसी समाज में प्रगति के संकेत नहीं दिखते तो इसका अर्थ यही है कि उसके लोग उसकी परंपराओं पर सवाल नहीं उठाते। यह आपकी जिम्मेदारी है कि अपने समुदाय के पुरातनपंथी विचारों और परंपराओं के खिलाफ बिगुल बजाएं। आधुनिक दौर में ऐसे कई मुद्दे हैं, मसलन महिला समानता, दल गठित करने के व्यक्तिगत अधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता, सोचने और अभिव्यक्ति की आजादी और तमाम व्यक्तिगत अधिकार। मेरे लिखने की वजह यही है।

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