यह कहानी है देश की तेज-तर्रार महिला IAS अधिकारी Kinjal Singh के बारे में। साल 1982 में गोंडा मुठभेर में किंजल के पिता व गोंडा जिला के पुलिस उपाधीक्षक केपी सिंह को उनके ही अंगरक्षक ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
उस वक़्त किंजल सिर्फ छह माह की थी और उनकी छोटी बहन मां के गर्भ में ही थी। अकेली विधवा मां विभा सिंह ने ही किंजल और बहन प्रांजल सिंह की परवरिश की।
किंजल की मां वाराणसी के कोषालय में कर्मचारी की नौकरी करती लेकिन तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा मुकदमा लडऩे में चला जाता था। तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया और अपने पति के आईएएस बनने के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए भी प्रोत्साहित करती रही। दरअसल किंजल के पिता डीएसपी सिंह आईएएस बनना चाहते थे और उनकी हत्या के कुछ दिन बाद आए परिणाम में पता चला कि उन्होंने आइएएस मुख्य परीक्षा पास कर ली थी।
किंजल और उनकी छोटी बहन प्रांजल दोनों ने दिन-रात एक कर अपनी पढ़ाई को जारी रखा। बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहने वाली किंजल को दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी श्रीराम कॉलेज में प्रवेश मिल गया। ग्रेजुएशन के पहले ही सेमेस्टर के दौरान पता चला कि उनकी मां कैंसर से पीड़ित है और चंद दिनों की मेहमान हैं। पहले से ही पिता को खो चुकी किंजल का इस दुनिया में एक ही सहारा था और वो उनकी माँ थी। कीमोथैरेपी के कई राउंड से गुजर कर उनकी माँ की हालत बेहद खराब हो गई थी लेकिन बेटियों को दुनिया में अकेला छोड़ देने के डर से वे अपने शरीर से लगातार लड़ रही थीं।
मां को बेहद तकलीफ से गुजरते देख किंजल को रहा नहीं गया और फिर उसने माँ से वादा किया कि हम दोनों बहनें आईएएस बन कर पिता के हत्यारे को सजा दिलायेंगें। बेटी की इस आत्मविश्वास से माँ को सुकून मिला और फिर कुछ दिनों बाद उनकी माँ का भी देहांत हो गया। मां की मौत के दो दिन बाद ही किंजल को दिल्ली लौटना पड़ा क्योंकि उनकी परीक्षा थी। तमाम मुसीबतों का डटकर मुकाबला करते हुए किंजल दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप करते हुए गोल्ड मेडलिस्ट बनीं।
वो वक़्त अब आ गया था, मां से किए वादों को पूरा करने का। ग्रेजुएशन ख़त्म करने के बाद किंजल ने अपनी छोटी बहन प्रांजल को भी दिल्ली बुला लिया और मुखर्जी नगर में फ्लैट किराए पर लेकर दोनों बहनें आईएएस की तैयारी में लग गईं। इस दौरान किंजल के मौसा-मौसी ने हमेशा दोनों बहनों का ख्याल रखा।
हॉस्टल में त्याहारों के समय सारी लड़कियां अपने-अपने गांव निकल जाया करती थी लेकिन इन दोनों बहनों ने बिना वक़्त जाया किये दिन-रात एकजुट होकर आइएएस की तैयारी करती रही। दोनों बहनें एक दूसरे की शक्ति बनकर एक-दूसरे को प्रेरित करती रहीं। फिर जो हुआ उसका गवाह सारा देश बना, 2008 में जब परिणाम घोषित हुआ तो संघर्ष की जीत हुई और दोनों बहनों ने आईएएस की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर अपनी मां का सपना साकार किया। किंजल जहां आईएएस की मेरिट सूची में 25वें स्थान पर रही तो प्रांजल ने 252वें रैंक लाकर यह उपलब्धि हासिल की।
पिता को न्याय दिलाने की मां की अधूरी लड़ाई का दामन अपने हाथों में लेते हुए दोनों बहनों ने अपनी गूंज से न्यायपालिका को हिला दिया। उत्तर प्रदेश में एक विशेष अदालत ने केपी सिंह की हत्या करने के आरोप में तीन पुलिसवालों को फांसी की सजा सुनाई तभी से शुरु हुआ न्याय के लिए लंबा संघर्ष। किंजल सिंह को देर से ही सही लेकिन न्याय मिला। 31 साल तक जद्दोजहद के बाद 5 जून, 2013 को लखनऊ में सीबीआइ की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए केपी सिंह की हत्या के आरोप में 18 पुलिसवालों को दोषी ठहराया।
आज किंजल सिंह देश की एक ईमानदार और सख्त आईएएस अफसर के रूप में जानी जाती हैं लेकिन इस मुकाम तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। महज छह माह में पिता को खो देने के बावजूद किंजल ने परिस्थितियों से लड़ना सीखा और खुद की बदौलत आईएएस बनीं तथा अपनी बहन को भी आईएएस बना अपने माँ के सपने को साकार किया। पिता के हत्याओं को सजा दिलाते हुए किंजल ने सिद्ध कर दिया कि बेटियाँ किसी मामले में बेटों से कम नहीं है।
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