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नीतीश कुर्सी के लिए किसी के पास जा सकते हैं: आरजेडी

आरजेडी ने कहा है कि आखिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सच उगल ही दिया. पार्टी के प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने पटना में बयान जारी कर कहा कि नीतीश कुमार ने आखिरकार सच उगल दिया. गठबंधन की आयु डेढ़ साल बताकर उन्होंने ये बता दिया कि सब कुछ पहले से तय था. तेजस्वी भी पहले ही कह चुके हैं, हम तो बहाना हैं नीतीश जी को बीजेपी में जाना है. अब तेजस्वी की बात भी पुष्ट हो गई.

शक्ति सिंह यादव ने कहा, अगर नीतीश जी को बीजेपी के साथ ही जाना था तो लालू जी के साथ क्यों आए. बिहार की जनता के सामने आज स्पष्ट हो गया कि नीतीश जी कुर्सी के लिए किसी के पास जा सकते हैं. नीतीश जी बौखलाहट में हर सच उगलकर दम लेंगे. आने वाले दिन में यह भी बतायेंगे कि किस घोटाले में फंसने के चलते भाजपा से हाथ मिलाए हैं.

बता दें, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था, जिस दिन गठबंधन बना हमे पता था कि इसको साल-डेढ़ साल से ज्यादा नहीं चलना है. इसके बाद भी डेढ़ साल से भी ज्यादा चला दिया. 20 महीने तक गठबंधन रहा. नीतीश कुमार का कहना है कि जिस तरह से लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले में ट्रायल चला और सजा हुई. ऐसे में हम क्या प्रतिक्रिया देते. अदालत के फैसले पर हमने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. लेकिन अगर महागठबंधन की सरकार होती तो उसको चलना मुश्किल हो जाता. तनाव का माहौल रहता हम क्या जवाब देते।

आरजेडी ने आरोप लगाया है कि नीतीश कुमार ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को खुली छूट दे रखी है. लोग इस समय लालू प्रसाद यादव को याद कर रहे हैं. जिन्होंने प्रवीण तोगडिया को बिहार में घुसने नहीं दिया था. भागवत बिहार की एकता को खंडित करने की कोशिश कर रहें हैं.

आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने मोहन भागवत पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मोहन भागवत का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुशासन मिलेट्री जैसा है. उनका यह भी दावा है कि किसी आकस्मिक चुनौती का सामना करने के लिए संघ मिलेट्री से ज़्यादा फुर्ती से तैयार हो सकता है. इस दावे से भागवत जी भारतीय फौज की चुस्ती और फुर्ती पर ही सवाल खड़ा कर देते हैं. अपने संगठन का बखान करने के अति-उत्साह में अपनी फौज को कमतर बताना कम से कम देशभक्ति का परिचायक तो नहीं ही माना जा सकता है.

शिवानंद तिवारी ने आगे कहा, भागवत जी का दावा है कि संघ का अनुशासन मिलेट्री जैसा है. लेकिन ऐसा अनुशासन तो चिंता पैदा करता है. क्योंकि आंख मूंद कर आदेश का पालन करना मिलेट्री के अनुशासन का पहला पाठ है. क्या किसी विवेकशील व्यक्ति से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपने विवेक को तिलांजलि देकर किसी आदेश का आंख मूंदकर पालन करेगा. इसलिए समाज, संस्कृति या राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाला कोई संगठन जब दावा करता है कि उसके यहां मिलेट्री जैसा अनुशासन है तो यह चिंता पैदा करने वाली बात है. क्योंकि ऐसा संगठन विवेकवान से ज्यादा विवेकशून्य व्यक्ति पैदा करेगा.