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जीएसटी को सही से समझने का वक्त

08_05_2017-7hasmukh_adhiaवस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लेकर देश भर में उत्सुकता का भाव है। लोग समझना चाहते हैं कि जीएसटी को आजादी के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार क्यों माना जा रहा है? ऐसे में जीएसटी के स्वरूप, उसके फायदों से लेकर टैक्स की वसूली और रिटर्न भरने की प्रक्रिया को समझना खासा उपयोगी होगा। फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा कई अलग-अलग वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त सीमा शुल्क, विशेष अतिरिक्त शुल्क जैसे कई अलग-अलग टैक्स लगाए जाते हैं और सेवाओं पर सेवा कर यानी सर्विस टैक्स की व्यवस्था है। वहीं राज्य सरकारों द्वारा वैट, केंद्रीय बिक्री कर, खरीद कर, मनोरंजन कर, लॉटरी टैक्स, चुंगी कर, प्रवेश कर जैसे अलग-अलग टैक्स लगाए जाते हैं। इनके अलावा केंद्र और राज्य द्वारा अलग-अलग प्रकार के उपकर यानी सेस और सरचार्ज यानी अधिभार भी लगाए जाते हैं। जीएसटी में अब ये सभी टैक्स खत्म होकर एक ही टैक्स के रूप में रह जाएंगे जो सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होगा। इसके तहत एक वस्तु पर देश भर में टैक्स की दर एकसमान होगी। केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले तमाम अलग-अलग करों को मिलाकर एक कर बनाने के तमाम फायदे होंगे। इससे दोहरे कराधान की समस्या हल हो जाएगी और एकीकृत राष्ट्रीय बाजार के निर्माण की राह खुलेगी। उपभोक्ताओं के नजरिये से देखें तो उन्हें सबसे बड़ा लाभ यही होगा कि वस्तुओं पर लगने वाले कर के बोझ में कमी आएगी। वर्तमान में कर का यह बोझ 25 से 30 प्रतिशत के दायरे में है। जीएसटी लागू होने से भारतीय उत्पादक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार की प्रतिस्पर्धा में मजबूती से टिक सकेंगे। तमाम अध्ययनों से भी संकेत मिलते हैं कि इससे आर्थिक विकास पर भी बहुत उत्साहजनक प्रभाव पडे़गा।
जीएसटी की दर सहित सभी महत्वपूर्ण मसले तय करने का अधिकार जीएसटी परिषद को दिया गया है। परिषद की बैठक में कुछ अहम फैसले भी हुए हैं। इसमें सभी वस्तुओं के लिए टैक्स की चार दरें तय की गई हैं। इसके तहत 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की दरें प्रभावी होंगी। यह भी तय किया गया है कि कुछ वस्तुओं और सेवाओं के ऊपर कोई टैक्स नहीं लगाया जाएगा। ये वस्तुएं और सेवाएं रियायत वाली श्रेणी में आएंगी। सोना-चांदी और उससे बने आभूषणों के लिए एक विशेष दर होगी जो अभी तय नहीं हुई है। निर्यात वस्तुओं पर देश के भीतर चुकाए टैक्स का पूरा रिफंड मिलेगा। आयात की गई वस्तु पर कस्टम ड्यूटी के अलावा उतना ही जीएसटी लगेगा जितना देश में जीएसटी के तहत उस वस्तु पर लागू है। जीएसटी लागू करने के बाद व्यापारियों और उत्पादकों को अब एक ही टैक्स प्रक्रिया का पालन करना होगा। सबसे बड़ा फायदा छोटे व्यापारियों को दिया गया है। अभी देश के अधिकांश राज्यों में 10 लाख रुपये से ऊपर वाले व्यापारियों को वैट भरना पड़ता है। जीएसटी में विशेष श्रेणी के पहाड़ी इलाकों वाले राज्यों को छोड़कर शेष राज्यों में यह सीमा 20 लाख रुपये कर दी गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि जिस कारोबारी का सालाना कारोबार यानी टर्नओवर 10 लाख से 20 लाख रुपये के दायरे में था उसे भी अब कोई टैक्स नहीं देना होगा और न ही उसके लिए पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। अभी जिनके पास वैट, सेवा कर और एक्साइज नंबर हैं उनमें से अधिकांश लोगों का जीएसटी प्रक्रिया में पंजीकरण हो चुका है।
जीएसटी में प्रत्येक कारोबारी को महीने में एक बार मुख्य रिटर्न भरना होगा और अपनी टैक्स अदायगी दर्शानी होगी। किसी भी वस्तु या सेवा के ऊपर जो भी टैक्स चुकाना है, उसमें से खरीदारी पर लगा जो टैक्स भर दिया गया है उसका पूरा इनपुट टैक्स क्रेडिट प्रत्येक कारोबारी को अपने आप ही मिलेगा। रिटर्न फाइल करने की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है। अगर आप अपने हिसाब-किताब जीएसटीएन द्वारा दी गई एक्सेल शीट में रखेंगे तो हर महीने वही हिसाब-किताब अपने आप ऑफलाइन टूल की मदद से रिटर्न में परिवर्तित हो जाएगा। अगर कोई व्यापारी अपना पूरा सामान सिर्फ खुदरा ग्राहकों को बेचता है यानी वह बीटूसी कारोबार में ही सक्रिय है तो ऐसे कारोबारी के लिए रिटर्न भरने की प्रक्रिया बहुत सरल होगी जिसमें उसे दर के अनुसार टर्नओवर दिखाना होगा। अगर कोई व्यापारी कंपोजिशन योजना का लाभ उठाता है और उसका टर्नओवर 50 लाख रुपये से कम है तो उसे हर महीने नहीं, बल्कि तीन महीने में रिटर्न भरना होगा और उसे अपने कुल टर्नओवर में दिखाना होगा।
जो व्यापारी बिजनेस-टू-बिजनेस यानी बीटूबी वाले थोक कारोबार में सक्रिय हैं उन्हें बिक्री के प्रत्येक बिल का पूरा ब्योरा रिटर्न में देना होगा। ऐसे कारोबारियों को हर महीने की 10 तारीख तक जीएसटी वेबसाइट पर रिटर्न के फॉर्म में जानकारी मुहैया करानी होगी। इसकी पूरी जानकारी उसके खरीदारों को जीएसटी ऑनलाइन अकाउंट यानी जीएसटीआर-2 में अपने आप मिल जाएगी। खरीदार व्यापारी एक क्लिक में उस व्यापारी का पूरा रिकॉर्ड जांच सकता है, क्योंकि कंप्यूटर पर पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी। कारोबारी की कर देनदारी और इनपुट टैक्स क्रेडिट की पूरी विस्तृत जानकारी जीएसटी सिस्टम द्वारा स्वत: तैयार कर शुद्ध कर देनदारी के साथ दिखाई जाएगी। कर देनदारी और इनपुट टैक्स क्रेडिट के बीच के अंतर की भरपाई व्यापारी को करनी होगी। इसके बाद उस कारोबारी को हर महीने की 20 तारीख तक कंप्यूटर द्वारा तैयार अंतिम रिटर्न को जीएसटीआर-3 पर क्लिक कर उसे जमा करना होगा। बिजनेस-टू-बिजनेस लेनदेन में ऐसी व्यवस्था की गई है जिसे हम इनपुट टैक्स क्रेडिट रिवर्सल कहते हैं। इसका अर्थ है इनपुट टैक्स क्रेडिट को वापस लौटाना। इसके बारे में काफी लोगों ने चिंता जताई है, लेकिन पूरी प्रक्रिया समझने पर ये चिंताएं पूरी तरह दूर हो जाएंगी।
जैसा कि पहले समझाया गया है कि आपने जिससे सामान खरीदा है उसने वह लेन-देन अपने मासिक रिटर्न में महीने की 10 तारीख तक दिखा दिया है तो आप को इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा मिल जाएगी। यदि आपको सामान बेचने वाले व्यक्ति ने उस बिल को अपने रिटर्न में नहीं दिखाया है तब भी आपको एक और मौका मिलेगा कि आप उसे अपने जीएसटीआर-2 रिटर्न में महीने की 15 तारीख तक दिखा दें और ऐसा करने से उस महीने में आपके दावे के मुताबिक इनपुट टैक्स क्रेडिट मिल जाएगा। इसके बाद आपको उस व्यापारी से संपर्क कर उसे समझाना है कि वह उस लेन-देन को अपने रिटर्न में दिखाए ताकि आपको जो इनपुट टैक्स क्रेडिट मिल गया है उसे अगले महीने वापस नहीं करना पड़ेगा। इसके लिए आपको पूरे 30 दिन का समय मिलेगा और उसके बावजूद अगर आपको सामान बेचने वाला व्यापारी इस लेन-देन को स्वीकार नहीं करता है और अपने रिटर्न में नहीं दिखाता है तब अगले महीने आपको मिल चुके इनपुट टैक्स क्रेडिट को वापस किया जाएगा। प्रत्येक कारोबारी का यह फर्ज है कि ऐसे ही कारोबारियों के साथ ही लेन-देन करें जो आपसे टैक्स वसूलने के बाद उसे सरकारी खजाने में जमा कराएं। व्यापारियों के व्यवहार और उनके रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें अनुपालन रेटिंग भी दी जाएगी जो सार्वजनिक दायरे में रहेगी जिसे कोई भी व्यापारी देख सकता है ताकि बार-बार गड़बड़ करने वालों से सावधान रहा जा सके और उनके साथ कारोबार करने से बचा जाए।

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