उत्तर प्रदेश मेंं एक प्रमुख भावना नोटबंदी से निराशा की है। काफी लोगों को नोटबंदी से जबर्दस्त चोट पहुंची है। लोगों में एक विश्वासघात की भावना है कि मोदी जी ने ये क्या कर दिया है। युवाओं को अपेक्षा थी कि नरेंद्र मोदी जी उनके लिए रोजगार पर बहुत कुछ करके दिखाएंगे। लेकिन वो बेहद निराश हैं। मैं जहां भी जाता हूं युवाओंं से पूछता हूं कि वो क्या करते हैं तो एक ही जवाब मिलता है कि कुछ नहीं। कोई काम नहीं है उनके पास। युवाओं ने मोदी जी पर काफी भरोसा किया था, लेकिन उन्हें लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है।
उत्तर प्रदेश में जब कांग्रेस ने शुरुआत की तो बहुत अच्छा माहौल था। आपने लखनऊ में एक सफल कार्यकर्ता सम्मेलन किया। सोनिया जी का बनारस कार्यक्रम बेहद कामयाब रहा। आपकी किसान यात्रा में खासी भीड़ जुटी। राज्य में कांग्रेस के लिए एक अच्छा वातावरण बना। पार्टी ने मुख्यमंत्री का अपना चेहरा भी सामने कर दिया। फिर अचानक कांग्रेस खामोश हो गई और समझौते में चली गई। आखिर ऐसा क्या हुआ, कौन सा दबाव था कि कांग्रेस का विश्वास डगमगा गया और आपने पूरा राज्य समाजवादी पार्टी के हवाले कर दिया और कांग्रेस सिर्फ 104 सीटों पर सिमट गई?
ऐसी बात नहीं है। कांग्रेस पार्टी का काम अपने लिए जगह बनाने का है। वो काम हमने यात्रा के समय किया। यात्रा के बाद काफी हमारा माहौल बना। राजनीति एक गतिशील चीज है। जड़ नहीं है। मुझे लगा कि एक मौका है कि अखिलेश जी मैं मिलकर उत्तर प्रदेश को बदल सकते हैं। एक नई सोच की सरकार बना सकते हैं। नफरत की राजनीति करने वाली ताकतों को हरा सकते हैं। राजनीति के गतिशील स्वभाव को भी देखना होता है। हमने इस गतिशीलता को समझा और उसके मुताबिक फैसला किया। इसका मतलब ये नहीं कि कांग्रेस ने अपनी जमीन छोड़ दी। कांग्रेस अपनी जमीन कभी नहीं छोड़ेगी। चुनाव के बाद पार्टी और मजबूत होगी।
यह एक सच्चाई है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी पिछले 20-25 सालों से पहली दो पार्टियों में नहीं है। हमें अपने आपको मजबूत करना है। हम कर भी रहे हैं। मेरी किसान यात्रा का एक अच्छा असर भी पड़ा है। आने वाले समय में मेरा मानना है कि कांग्रेस सपा गठबंधन की सरकार बनेगी और कांग्रेस की उसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इससे राज्य में पार्टी मजबूत होगी।
अक्सर प्रधानमंत्री मोदी आपको लेकर मजाक करते हैं। कभी आपको शहजादा कहते हैं। कभी गूगल सर्च में आपके चुटकुलों की बात करते हैं। सोशल मीडिया में भी कई तरह की बातेंं होती हैं। इस पर आपको निजी तौर पर कैसा लगता है। गुस्सा आता है? हंसी आती है या फिर आप उसे अनदेखा कर देते हैं?
हर व्यक्ति का एक चरित्र होता है। एक बोलने का तरीका होता है। उनका अपना ये तरीका है। मेरा तरीका अलग है। लेकिन जो वो कहते हैं उससे मेरे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनका नफरत फैलाने का तरीका है और हमारा मोहब्बत का। बे-सिर पैर की आलोचना से मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता।
राजनीति में नेहरू जी के जमाने से परस्पर राजनीतिक विरोध के बावजूद निजी रिश्ते खराब नहीं होते थे। नेहरू लोहिया इंदिरा जी अटल जी और सोनिया जी व अटल जी केबीच निरंतर संवाद होता रहता था। लेकिन अब राजनीतिक विरोध दुश्मनी जैसा हो गया है। ऐसा क्यों?
यह बात सही है कि इंदिरा जी के समय नफरत की राजनीति करने वाले थे लेकिन इसके बावजूद निजी रिश्ते सामान्य तौर पर ठीक रहते थे। वाजपेयी जी का व्यवहार भी सोनिया जी के प्रति विरोधी का था और उनके प्रति राजनीतिक नापसंदगी थी। लेकिन इस हद तक नहीं थी जैसी आज है। वाजपेयी जी भी विरोध की राजनीति करते थे, लेकिन उस स्तर तक नहींं जिस स्तर तक आज हमारे प्रधानमंत्री चले गए हैं। शायद वैसे स्तर पर कोई नहीं गया। यह उनका चरित्र है वो उसी के मुताबिक काम करेंगे। हर व्यक्ति अपने चरित्र के मुताबिक ही काम करता है, उससे बाहर नहीं निकल पाता है।
मैने तो किसी के लिए कोई गलत शब्द नहीं कहा। मुझे यही सिखाया गया है और यही मेरा चरित्र है। मेरी यही कोशिश रहती है कि मैंं किसी से नफरत न करूं। मेरे भाषण में सामान्य तौर पर ऐसी कोई बात नहीं निकलती। आम तौर पर नफरत करना या झूठी आलोचना करना मेरे स्वभाव में नहींं है इसलिए मुझसे कोई ऐसी बात नहींं निकलती है जिससे लोगों में नफरत फैले। लेकिन जो लोग सिर्फ नफरत की राजनीति करते हैं वो अक्सर ऐसी भाषा बोलते हैं। मुझे तो सिखाया गया है कि नफरत कमजोरी होती है, ताकत प्यार में होती है।
राजनीति में आपका कौन रोल मॉडल है। गांधी जी, नेहरू जी, इंदिरा जी, राजीव जी या विश्व का कोई अन्य नेता। आप किसके जीवन से प्रेरणा लेते हैं?
हर व्यक्ति में ताकत भी होती है और कमजोरी भी। मेरा कोई एक रोल मॉडल नहीं है। लेकिन में काफी लोगों से प्रेरणा लेता हूं। सबसे कुछ न कुछ सीखता हूं। गांधी जी से काफी प्रेरणा लेता हूं। और भी ऐसे लोग हैं जो खुल कर सोचते हैं, लोगों से नफरत नहीं करते हैं, खुद को असुरक्षित नहीं महसूस करते, जो गुस्से मेंं नहीं फंसे रहते, काफी लोग हैं ऐसे उनकी ओर देखता हूं सीखने के लिए।
आप किस तरह का साहित्य पढऩा पसंद करते हैं। धार्मिक किताबें, उपन्यास, दर्शन, राजनीतिक पुस्तकें? क्या पढ़ना पसंद है?
मेरी आदत है कि जिस किसी विषय में मुझे दिलचस्पी होती है तो मैं उसमें गहराई तक जाता हूं। पूरा समझने की कोशिश करता हूं। जब भी मुझे किसी चीज में रुचि बढ़ती है तो उसके बारे मेंं व्यवस्थित रूप से पढ़ता हूं। कोशिश होती है कि किसी भी विषय के दोनों पक्ष पढ़ूं और समझूं। कोशिश करता हूं कि जिस विषय पर बहस और विमर्श चल रहा है, उससे खुद को जोड़ता हूं और उस पर अध्ययन करता हूं। इतिहास पढ़ता हूं, सामयिक विषय पढ़ता हूं। जो हमारी धार्मिक किताबे हैं उनमें भी रुचि है और उनसे काफी कुछ सीखा है मैंने।
देश के और विशेषकर कांग्रेस नेताओं की बात करें तो उनकी एक खास छवि रही है। मसलन नेहरू जी की चाचा नेहरू, शास्त्री जी की सादगी की, इंदिरा जी की दुर्गा यानी शक्ति और राजीव जी की करिश्माई युवा नेता की छवि रही है। इसमें आपको कौन सी छवि पसंद है?
यह कहना बड़े नेताओं के व्यक्तित्व का अति सरलीकरण है। गांधी जी की सिर्फ बापू या नेहरू जी की सिर्फ चाचा नेहरू की ही छवि नहीं है । सभी बड़े नेताओं का व्यक्तित्व विराट होता है और उनका मूल उद्देश्य होता है देश की सेवा करते हुए अपना जीवन समर्पित करना। उनकी पूरी जिंदगी को सिर्फ एक तरह की छवि में कैद कर देना भी ठीक नहीं है। गांधी जी को सिर्फ एक छवि तक सीमित नहींं किया जा सकता है। उनका व्यक्तित्व इतना विशाल और व्यापक है कि उसे आसानी से परिभाषित करना संभव नहींं है। गांधी जी ने अपनी पूरी जिंदगी मानवता और देश को दे दी।
मेरा सवाल यह है कि राहुल गांधी अपनी कैसी छवि बनाना चाहते हैं लोगोंं के बीच में? एक एंग्री यंगमैन यानी आक्रोशित युवा नेता की या एक ऐसे परिपक्व नेता की जो लोगों की समस्याओं और मुद्दों को लेकर देश की राजनीति में सक्रिय है?
सामान्य तौर पर हमारी राजनीति में अगर आप देखें तो बातें तो बहुत होती हैं। मोदी जी ने तमाम वायदे किए। रोजगार दे देंगे। भ्रष्टाचार मिटा देंगे। और न जाने क्या-क्या। लेकिन अगर आप देखें कि ढाई साल हो गए उनके शब्द खोखले से थे। खोखले शब्द मुझे अच्छे नहीं लगते। मुझे लगता है कि शब्दों के साथ उन पर अमल भी होना चाहिए। अगर मैं कुछ कहूं मैं कुछ करूं तो उसमें कुछ ठोस होना चाहिए। जब मैं बोलूं तो मेरे शब्दों में कुछ वजन होना चाहिए। मेरी कोशिश यही है। मैं किसी एक छवि में नहींं बंधना चाहता।
किसानों का या ग्रामीण भारत का सबसे बड़ा मुद्दा उनकी जमीन का है। भट्टा पारसौल से यह मूल मुद्दा हमने (कांग्रेस पार्टी) ने उठाया। हमने कानून बनाया जिसका किसानों को जबर्दस्त फायदा हुआ। लोग भ्रष्टाचार की बात करते हैं। सबसे बड़ा भ्रष्टाचार किसानों की जमीन को लेकर हुआ। औने पौने दामों पर किसानों की जमीन उठा लो फिर उसे अमीरों को दे दो। मायावती जी ने नोएडा में हजारोंं एकड़ किसानों की जमीन दे दी। मोदी जी तो देते ही रहते हैं। किसानों की जमीन और उनके हितों का हमने वहां संरक्षण किया। किसान आज मुश्किल दौर मेंं है। किसान आपसे ज्यादा कुछ नहीं मांगता। पिछले ढाई साल में नरेंद्र मोदी जी ने एक लाख चालीस हजार करोड़ रुपए पचास अमीर परिवारों के माफ किए। किसान ये नहीं कह रहा है कि उनके मत करो। अगर वो देश को फायदा पहुंचाते हैं तो उनके कर्ज माफ करो, लेकिन किसान का कर्ज भी माफ करो वो भी देश को फायदा पहुंचाता है। किसान की मदद करने के लिए इस सरकार की नीयत साफ नहीं है। उनका जो दर्द है, उसे दिल से समझना चाहिए। अगर किसान का दर्द आप दिल से समझ जाएंगे तो उनकी मदद करना कोई बड़ी बात नहींं है। जरूरत उनका दर्द समझने की संवेदनशीलता की है। जो इस सरकार में नहींं है।
आपके मुताबिक सरकार की आर्थिक नीति कैसी होनी चाहिए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि उन्होंने नोटबंदी का फैसला गरीबों के हक में लिया है। साथ ही वो कांग्रेस से पिछले 70 सालों का हिसाब मांगते हैं?
देखिए इस सरकार ने बिना किसी से पूछे, बिना बात को समझे हिंदुस्तान की 86 फीसदी करेंसी को रद कर दिया। शायद दुनिया मेंं इतना बड़ा आर्थिक प्रयोग कभी किसी ने नहींं किया और उम्मीद है कि कभी कोई करेगा भी नहीं। यह आर्थिक पागलपन है। किसी भी अर्थशास्त्री से पूछ लीजिए, किसी छोटे दुकानदार से, किसान से, मजदूर से, किसी महिला से पूछ लीजिए। जो अर्थशास्त्र को नहीं भी समझता है उससे पूछ लीजिए। वो भी बता देगा। एक बच्चा भी बता देगा कि 86 फीसदी करंसी को रद करना कैसी आर्थिक रणनीति है। अरे कौन सी दुनिया में रह रहे हैं आप। फिर कह रहे हैं कि हमने गरीबों के भले के लिए किया। आप प्रधानमंत्री हैें। आप जाइए उत्तर प्रदेश के किसी छोटे दुकान में चले जाइए। पूछिए फायदा हुआ कि नहीं, लोग बता देंगे।