देहरादून : हालांकि फाग में ज्यादा दिन नहीं, लेकिन फिजां में अभी रंग नहीं घुला है। अलसाए दोपहर की शाम सुहानी हैं। खैर, ऐसे मौसम में सियासी दरबारों में ‘रंग’ उड़ने लगें तो ताज्जुब कैसा। मतगणना से पहले के बहस-मुबाहिसों के दौर जारी हैं।
समीकरण भिड़ाए जा रहे हैं, जीत-हार का आंकलन चल रहा है और सागर में जितना गहरा उतर रहे हैं चेहरों का रंग उतना ही उड़ा-उड़ा नजर आ रहा है। राजा हो या ‘रंक’ अभी तो सभी एक रंग में हैं। बदलते सुरों में भी इन रंगों को पहचानना कठिन नहीं है। गुलाल उड़ाने को लेकर बने असमंजस के बीच आखिरी बाजी पर भी विचार मंथन चल रहा है।
दूसरी ओर फाग की तैयारी में जुटा आम भी आने वाले रंग की कल्पना नहीं कर पा रहा। किस पर रंग चढ़ेगा, किसका उड़ेगा मोहल्ले, गलियों और नुक्कड़ पर यही चर्चा है। अब कौन सा ज्यादा वक्त है, तेल भी देख लेंगे और तेल की धार भी।
एक बार फिर ‘अमृत मंथन’
‘अमृत’ को लेकर चली आ रही रार अनादि काल से जारी है। समुद्र मंथन से निकले अमृत को पाने के देव-दानवों के बीच चली जंग जग जाहिर है। बाद में स्वयं भगवान श्रीहरि को मैदान में कूदना पड़ा और झगड़े का निपटारा किया। कई युग बीतने के बाद दून में भी अमृत की बंदरबांट का खुलासा हो गया। खुलासा शब्द इसलिए कि अंदाज तो पहले से था, लेकिन अब सच सामने भी आ गया। इस अमृत को पीने के लिए बेताब है पेयजल निगम। जहां जल संस्थान के नलकूप पानी उगल रहे हैं, निगम वहां नलकूप की योजना स्वीकृत करा नया निर्माण कराने को व्याकुल है। वो तो भला हो महापौर का, जिन्होंने सच का बेपर्दा कर डाला। अब एक बार भी अमृत मंथन शुरू हो गया है।
…और अंत में
त्योहारों का सीजन उत्साह और उमंगों का ही होता है, लेकिन ऐसे मौसम में सरकारी विभागों का जोश देखते ही बनता है। सालभर आम आदमी की सेहत में दुबले हो रहे विभाग एकाएक सड़क पर उतर आते हैं और शुरू होता है सैंपलिंग अभियान। ताबड़तोड़ नमूने भर टेस्ट के लिए भेजे जाते हैं। दिन बीतते ही त्योहार का जोश खत्म और फिर वही दिनचर्या शुरू। खैर, अगला सीजन तक रिपोर्ट आने लगती है। इसके बाद फिर वही जोश। इस चक्रीय क्रम में यह पता नहीं चलता कि आखिर जिस मीठे-खट्टे अथवा नमकीन को हम पचा कर भूल गए, उसमें मिला क्या।