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उत्तराखंड में सीएम त्रिवेंद्र सिंह के सामने अफसर खुलेआम उड़ा रहे नियमों की धज्जियां

उत्तराखंड सरकार में शासनादेश की अनदेखी का एक मामला सामने आया है, जिसमें वन विभाग के मुखिया नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. जिस प्रदेश में 2016 से ही यह नियम लागू है कि मुख्यमंत्री से महंगे वाहन में प्रदेश का कोई भी अधिकारी नहीं चल सकता, उस प्रदेश में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से बड़ी और महंगी कार में  खुद वन विभाग के मुखिया चल रहे हैं. ऐसे में बाकी अधिकारियों के बारे में क्या कहा जा सकता है.

हालांकि ये शासनादेश 2016 में तब जारी किया गया था, जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और इसकी कमान हरीश रावत के हाथ में थी. मगर आदेश तो आदेश होता है. अगर निमय-कायदा के खिलाफ कुछ हो रहा है तो उसके लिए मौजूदा सरकार और उसके मुखिया त्रिवेंद्र  सिंह रावत ही जिम्मेदार होंगे.

क्या है पूरा मामला

उत्तराखंड वन विभाग के मुखिया PCCF(HoFF) 20 लाख से भी ज्यादा महंगी इनोवा (क्रिस्टा) कार में चल रहे हैं. यह सीधे-सीधे मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों के खुलेआम अवमानना का मामला है. उत्तराखंड परिवहन विभाग ने 10 मार्च 2016 को मंत्रियों और अधिकारियों के लिए वाहन के संबंध में एक आदेश जारी किया था.  

परिवहन विभाग के आदेश में कहा गया है कि मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री, मुख्य सचिव, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, पुलिस महानिदेशक व वन विभाग के मुखिया सहित प्रमुख वन संरक्षक स्तर के अधिकारी 15 लाख रुपये तक की कार का इस्तेमाल कर सकते हैं.

मगर इस शासनादेश को दरकिनार करते हुए वन विभाग के मुखिया 20 लाख रुपये से भी महंगी इनोवा क्रिस्टा जैसी लग्जरी कार से चल रहे हैं. यह मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों का न केवल अपमान है बल्कि अवमानना का मामला भी बनता है.

मानकों का उल्लंघन

जानकारों की मानें तो उत्तराखंड जायका परियोजना के अंतर्गत उत्तराखंड शासन के इस शासनादेश का उल्लंघन करते हुए मानकों के विपरीत लग्जरी कारों की खरीदारी की गई है. उत्तराखंड सरकार द्वारा एक तरफ खर्च कम करने का ढोल पीटा जा रहा है तो दूसरी ओर वन विभाग के मुखिया इसी ढोल की पोल खोलते हुए नज़र आ रहे हैं.

कार्रवाई का इंतजार

उत्तराखंड के कई विभागों में अधिकारी महंगी कार में चल रहे हैं और परिवहन विभाग के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. ऐसे में शासन द्वारा जारी आदेश का क्या महत्व रह जाता है. उत्तराखंड सरकार के इस शासनादेश के अनुसार एक अधिकारी- एक वाहन का नियम लागू है, लेकिन शासन में लगभग प्रत्येक आईएएस अधिकारियों के पास तीन-तीन कारें हैं. अब ऐसे में जीरो टोरलेंस के नाम पर सत्ता में काबिज भाजपा मुख्यमंत्री को देखना होगा कि वे इन अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई करते हैं.