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उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने हरीश रावत के फैसले पर चलाई कैची

त्रिवेंद्र सरकार ने हरीश रावत राज के फैसले पलटने शुरू कर दिए हैं। ऐसे फैसले निशाने पर हैं, जिन्हें सरकार अव्यावहारिक मान रही है। साथ ही इनके पीछे जनहित कम और चहेतों के ऐडजस्टमेंट का भाव ज्यादा करार दे रही है। पहला फैसला नगर निकायों के संबंध में किया गया है। नगर निकाय बोर्ड में नामित होने वाले सदस्यों को नियंत्रित करने का फैसला सरकार ने किया है। नगर निगम के संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है। नगर पालिका और पंचायत के संबंध में जल्द अधिसूचना जारी की जा सकती है। दूसरा फैसला, वन विभाग के संबंध में है। वन रक्षकों की भर्ती को सरकार ने राज्य अधीनस्थ चयन आयोग की जगह विभागीय स्तर पर ही कराने का निर्णय लिया है।
 
नगर निकाय बोर्ड : कुल सदस्यों की संख्या के 
नगर निकाय बोर्ड में नामित सदस्यों की संख्या अब किसी भी सूरत में बोर्ड के सदस्यों की कुल संख्या के पांचवें भाग से ज्यादा नहीं हो सकेगी। सरकार ने फिलहाल नगर निगम के संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है। दरअसल, कांग्रेस राज के एक फैसले से कीर्तिनगर, देवप्रयाग, नरेंद्रनगर, नंदप्रयाग और ऊखीमठ जैसे महज चार-चार सदस्यों वाले निकायों में नामित सदस्यों की संख्या सात-सात कर दी गई थी। नगर निगम की तरह, जल्द ही नगर पालिका और नगर पंचायतों के संबंध में भी अधिसूचना जारी की जा सकती है। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने इसकी पुष्टि की है।

2014 में हरीश रावत सरकार ने नगर निगम और नगर पालिका-पंचायतों के एक्ट में संशोधन कर दिया था। इसके बाद नगर निगम में 14, नगर पालिका में नौ और नगर पंचायत में सात सदस्यों को नामित करने की व्यवस्था लागू हो गई। 20-20 सदस्यों वाले रुड़की, काशीपुर और रुदप्रयाग जैसे नगर निगमों में 14-14 नामित सदस्यों के कारण अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई थी। यही हाल कई नगर पालिका परिषदों में भी रहा। हालांकि नामित सदस्यों को वोट करने का अधिकार नहीं है, लेकिन बोर्ड की कार्यवाही में भाग लेने समेत कई अन्य गतिविधियों में उसकी सक्रिय भूमिका से चुने हुए प्रतिनिधियों में खास तौर पर असंतोष रहा। त्रिवेंद्र सरकार ने इस मामले में फोकस किया और एक्ट में संशोधन की कार्रवाई को आगे बढ़ाया। इस संबंध में सरकार अध्यादेश लाई। इस पर अब अधिसूचना जारी कर दी गई है।

नामित सदस्यों की एक सीमित संख्या होने से इस व्यवस्था की गरिमा भी बनी रहती है और कामकाज भी सुचारु ढंग से होते हैं। यही वजह रही है कि नगर निकाय बोर्ड में नामित सदस्यों को लेकर इस तरह का फैसला किया गया है। नगर निगम के संबंध में अधिसूचना हो गई है। नगर पालिका और पंचायतों के संबंध में भी जल्द ये कार्रवाई की जाएगी।

आयोग नहीं, अब विभाग करेगा वन रक्षकों की भर्ती
प्रदेश सरकार वन रक्षकों की भर्ती के लिए पुरानी व्यवस्था लागू करने की तैयारी में है। इसके तहत इनकी भर्ती राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से न कराकर वन विभाग के माध्यम से कराई जाएगी। इसके अलावा वन रक्षकों पर प्रशासनिक नियंत्रण भी वन मुख्यालय (देहरादून) की जगह प्रभागीय स्तर (डीएफओ) का रहेगा।

अक्तूबर-2016 से पहले वन विभाग में वन रक्षकों की भर्ती डीएफओ स्तर से होती थी, लेकिन तत्कालीन हरीश रावत सरकार में इस व्यवस्था में बदलाव करने का फैसला किया गया और उत्तराखंड अधीनस्थ वन सेवा नियमावली बनाई गई। इसमें वन रक्षकों का नियंत्रण सीधे वन मुख्यालय के अधीन हो गया। वहीं भर्ती करने की प्रक्रिया राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के माध्यम से कराने का फैसला लिया गया। नियमावली में वन रक्षकों की भर्ती की आयु और शैक्षिक योग्यता में भी बदलाव कर दिया गया था। इसे लेकर काफी विरोध हुआ तो इस साल अगस्त में आयोग के माध्यम से चल रही 1218 वन रक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया। इसके बाद से वन रक्षकों की भर्ती अटकी हुई थी।

अब प्रदेश सरकार वन रक्षकों की भर्ती में पुरानी व्यवस्था को लागू करने की तैयारी कर रही है। इसके पीछे वन रक्षकों की भर्ती में क्षेत्रीय सुगमता के साथ विभागीय स्तर पर नियंत्रण और सुविधा का तर्क दिया गया है। इस मामले की पैरवी खुद वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत कर रहे हैं। इसे लेकर वन मंत्री की प्रमुख वन संरक्षक राजेंद्र महाजन के साथ वार्ता भी हो चुकी है। प्रमुख वन संरक्षक महाजन के अनुसार इस संबंध में उचित कार्रवाई की जा रही है। वहीं, वन रक्षक भर्ती प्रक्रिया स्थगित होने से पहले 32 हजार अभ्यर्थी आनलाइन आवेदन कर चुके थे। अगर नई व्यवस्था लागू होती है, तो इन आवेदकों का क्या होगा? कब तक परीक्षा होगी? इसे लेकर फिलहाल स्थिति साफ नहीं है।

पिछली कांग्रेस सरकार अचानक उत्तराखंड अधीनस्थ वन सेवा नियमावली-2016 को लेकर आई थी। इससे कई व्यावहारिक दिक्कतें सामने आ रही हैं। वन रक्षक का भी प्रशासनिक नियंत्रण सब कुछ देहरादून में केंद्रित हो गया है। ऐसे में भर्ती से लेकर प्रशासनिक नियंत्रण के लिए पूर्व की व्यवस्था को लागू करने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। वन महकमे के माध्यम से वन रक्षकों की पारदर्शी और त्रुटिहीन भर्ती कराई जाएगी।