न तो उनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर सहमति बन पाई है और न ही प्रत्याशी चयन को लेकर। रामगोपाल और अमर सिंह को लेकर दोनों खेमों के एतराज कायम है।
हारी हुई सीटों के दावेदार बदलेंगे पाला
अखिलेश ने यदि गठबंधन करके चुनाव लड़ा तो हारी हुई अधिकतर सीटें कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल या दूसरे दलों के हिस्से में आएंगी। ऐसी स्थिति में सपा से इन सीटों पर चुनाव लड़ने के दावेदारों में बेचैनी बढ़ेगी।
टिकट की उम्मीद में अभी अखिलेश की जय बोलने वाले कई दावेदार मुलायम खेमे में जा सकते हैं। सीटिंग सीटों पर अखिलेश ने ज्यादातर विधायकों को फिर से मैदान में उतारा है, लेकिन 2012 में हारी हुई सीटों पर उनके सीमित उम्मीदवार रहेंगे
वे अपने काम और छवि के साथ ही भाजपा के विकल्प के तौर पर जनता के बीच जाएंगे। जैसे ही चुनाव आयोग सिम्बल और पार्टी के नाम पर स्थिति साफ करेगा, अखिलेश चुनाव प्रचार के लिए निकलेंगे। अखिलेश खेमा हर परिस्थिति व संभावना को मानते हुए चुनावी तैयारी में जुटा है।
क्या हैं विकल्प:
– पार्टी के कुछ नेता एक बार फिर सुलह की कोशिशें कर सकते हैं ताकि पार्टी व सिम्बल बचा रहे।
– एक विकल्प नई राजनीतिक पार्टी और मोटर साइकिल चुनाव चिह्न पर ल़ड़ने की भी है।
चुनावी मैदान सजने से पहले सपा के दोनों धड़ों की निगाहें चुनाव आयोग पर टिक गई है कि सिम्बल पर क्या फैसला आता है।
दोनों खेमों के दलों के नाम क्या होंगे, चुनाव चिह्न क्या होंगे। आयोग को फैसला 13 जनवरी को आने की संभावना है। माना जा रहा है कि मुलायम अकेले और अखिलेश महागठबंधन बनाकर चुनाव मैदान में उतरेंगे।
साइकिल जब्त हुई तो क्या होगा
– सपा के विवाद पर अंतिम फैसला आने तक चुनाव आयोग पार्टी का साइकिल सिम्बल सीज कर सकता है
– नया सिम्बल और नया नाम उनके पास तब तक रहेंगे, जब तक कि आयोग का निर्णय नहीं आ जाता।
– अखिलेश खेमा कमल मोरारका की अगुवाई वाली सजपा के निशान ‘बरगद’ पर भी चुनाव लड़ सकता है।
– एक विकल्प नई सियासी पार्टी व मोटर साइकिल चुनाव चिह्न पर लड़ने की भी है। बकौल मुलायम उन्होंने (रामगोपाल ने) अखिल भारतीय समाजवादी पार्टी बना ली है।
– मुलायम को दल का नया नाम और सिम्बल तय करना होगा।