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जान गंवाने के बाद भी देश की सरहदों रक्षा में जुटा है एक फौजी

गंगटोक: क्या कोई सैनिक मौत के बाद भी अपनी ड्यूटी कर सकता है? क्या किसी सैनिक की आत्मा, अपना कर्तव्य निभाते हुए देश की सीमा की रक्षा कर सकती है? आप सब को यह सवाल अजीब से लग सकते हैं, आप सब कह सकते हैं कि भला ऐसा कैसे मुमकिन है? लेकिन, सिक्किम के लोगों और वहां पर तैनात सैनिकों से अगर आप पूछेंगे तो वो कहेंगे कि ऐसा पिछले 48 सालों से लगातार हो रहा है। उन सबका मानना है कि पंजाब रेजिमेंट के जवान हरभजन सिंह की आत्मा पिछले 48 सालों से लगातार देश की सीमा की रक्षा कर रही है। इस सिपाही को अब लोग कैप्टन बाबा हरभजन सिंह के नाम से पुकारते हैं।

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सैनिकों का कहना है कि हरभजन सिंह की आत्मा चीन की तरफ से होने वाले खतरे के बारे में पहले से ही उन्हें बता देती है और यदि भारतीय सैनिकों को चीन के सैनिकों का कोई भी मूवमेंट पसंद नहीं आता है तो उसके बारे में वो चीन के सैनिकों को भी पहले ही बता देते हैं ताकि बात ज्यादा नहीं बिगड़े और मिल-जुल कर बातचीत से उसका हल निकाल लिया जाए।

आप चाहे इस पर यकीं करे या ना करे पर खुद चीनी सैनिक भी इस पर विश्वास करते हैं। चीन के सैनिक भी इस बात को मानते हैं क्योंकि उन्होंने कैप्टन बाबा हरभजन सिंह को मरने के बाद घोड़े पर सवार होकर सरहदों की गश्त करते हुए देखा है इसलिए भारत और चीन के बीच होने वाली हर फ्लैग मीटिंग में हरभजन सिंह के नाम की एक खाली कुर्सी लगाई जाती है ताकि वो मीटिंग में शामिल हो सके।

 

ये हैं जवान हरभजन सिंह

हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को, जिला गुजरावाला जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में है, हुआ था। हरभजन सिंह 24 पंजाब रेजिमेंट के जवान थे जो कि 1966 में आर्मी में शामिल हुए थे। लेकिन, केवल 2 साल की नौकरी करने के बाद 4 अक्टूबर 1968 में सिक्किम के साथ लगती चीन की सीमा के साथ नाथुला पास में गहरी खाई में गिरने से मृत्यु हो गई थी। हुआ यूं कि एक दिन जब वो खच्चर पर बैठ कर नदी पार कर रहे थे तो खच्चर सहित नदी में बह गए। नदी में बह कर उनका शव काफी आगे निकल गया। दो दिन की तलाशी के बाद भी जब उनका शव नहीं मिला तो उन्होंने खुद अपने एक साथी सैनिक प्रीतम सिंह के सपने में आकर अपनी शव की जगह बताई।

सवेरे सैनिकों ने बताई गई जगह से हरभजन का शव बरामद कर अंतिम संस्कार किया। हरभजन सिंह के इस चमत्कार के बाद साथी सैनिकों की उनमें आस्था बढ़ गई और उन्होंने उनके बंकर को एक मंदिर का रूप दे दिया। उन्होंने प्रीतम प्रीतम सिंह से यह भी इच्छा जाहिर की कि उनकी समाधि भी वहीं बनाई जाए। पहले प्रीतम सिंह कि बात का किसी ने विश्वास नहीं कि लेकिन जब उनका शव उसी स्थल पर मिला जहां उन्होंने बताया था तो सेना के अधिकारियों को उनकी बात पर विश्वास हो गया। और सेना के अधिकारियों ने उनकी छोक्या छो नामक स्थान पर उनकी समाधि बना डाली।

   हालांकि, जब बाद में उनके चमत्कार बढ़ने लगे और वो विशाल जन समूह की आस्था का केंद्र हो गए तो उनके लिए एक नए मंदिर का निर्माण किया गया जो की ‘बाबा हरभजन सिंह मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच, 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पुराना बंकर वाला मंदिर इससे 1000 फीट ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर के अंदर बाबा हरभजन सिंह की एक फोटो और उनका सामान रखा है। मंदिर में बाबा का एक कमरा भी है जिसमें प्रतिदिन सफाई करके बिस्तर लगाया जाता है। बाबा की सेना की वर्दी और जूते रखे जाते हैं। कहते हैं कि रोज पुनः सफाई करने पर उनके जूतों में कीचड़ और चादर पर सलवटें पाईं जातीं हैं।

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