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ट्विंकल हत्या कांड: रेपिस्ट का नहीं कोई धर्म, तर्क और सत्य की कसौटी पर कब तक खुद को तौलेंगे?

कुछ लोगों का कहना है कि पुलिस रेप को छिपा रही है. भला यूपी की योगी राज वाली पुलिस बलात्कार को क्यों छुपाएगी? क्या हत्यारे तिलकधारी हिंदू हैं? क्या ट्विंकल के हत्यारे भगवा झंडाधारी हैं? नहीं. हत्यारे तो मुसलमान हैं. और जब हत्यारे मुसलमान हों, चोर मुसलमान हो, अपहरणकर्ता मुसलमान हो तो उसपे तीन चार धाराएं और ठोंकनी वाली पुलिस, भला रेप की धारा क्यों नहीं लगाती?

वह इसलिए कि बच्ची के पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हुई है. मामला था बच्ची के पिता और हत्यारों के बीच मात्र दस हजार रूपए का. लेनदेन की इस लड़ाई में मासूम का क़त्ल हो गया. जल्लाद और जाहिल लोग इस पूरे मामले में राजनीति खोज रहे हैं. धर्म और जाति को गाली दे रहे हैं.

अभी पंद्रह दिन नहीं बीता, इलाहाबाद में एक ओला ड्राइवर जिसकी खुद की वैगनार कार थी, मेरा जानने वाला था, उसे तीन लड़कों ने बुक किया और सरायइनायत थाने के पास गला दबा कर हत्या कर दी. बाद में उसका सर पत्थर से कुचल दिया. तीनों लड़के दो दिन बाद पकड़े गए तो पता चला कि मात्र सात सौ रूपए उनको ड्राइवर की पॉकेट से मिला. हत्यारों का धर्म हिंदू था. मारा गया ड्राइवर मुसलमान. पुलिस ने सबको पकड़ा.

जेल भेज दिया. मैं चाहता तो इसे हिंदू-मुस्लिम का रंग दे सकता था लेकिन नहीं दिया. क्योंकि मारने वाले वहशी थे. लुटेरे थे. ड्राइवर कोई हिंदू भी होता तो उसकी हत्या होती.

न जाने कितने मुसलमानों ने मुसलमान बच्चियों और बच्चों की हत्या की होगी. न जाने कितने हिंदुओं ने हिंदू बच्चे और बच्चियों का क़त्ल किया होगा. फेसबुक और वाट्सएप की कहीं कोई गलती नहीं है. गलती है हमारे और आपके सड़ चुके दिमाग़ की. हम वही देखना और सुनना पसंद करते हैं जिससे हमारी तृष्णा शांत हो.

जिसे पढ़ कर हमारा मन यह कहे कि ‘बिल्कुल सही.’ हमने सच का साथ छोड़, उन्माद का रास्ता चुन लिया है. हम मूतते समय भी धर्म के बारे में सोचते रहते हैं. एक दूसरे को नीचा गिराने की हजारों सालों की यह कुप्रथा आखिर कब समाप्त होगी? कब हम तर्क और सत्य की कसौटी पर खुद को तौलेंगे?