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“महात्मा” मोहनदास करमचंद गाँधी को चिट्ठी 

बापू तुम रोटी की तलाश में नहीं बल्कि समृद्ध और संपन्न होने के बावजूद साऊथ अफ्रीका से भारत केवल आज़ादी दिलाने आये थे, तुमने बैरिस्टरी कर अंग्रेजों को अंग्रेजी दलीलों से हराया लेकिन त्याग कर एक सूती कपडे में जीवन जीने लगे इस जिद्द के लिए कि आज़ादी मिले भारतवासियों को, तुमने ईस्ट इंडिया कंपनी से आज़ादी दिलाई थी पर अब तो मुल्क को कई बड़ी कंपनियों (पार्टियों) नें कब्ज़ा कर रक्खा है और अब तुम भी नहीं हो सो गुलामी में जी रहे हैं | कभी कांग्रेस कंपनी तो कभी भाजपा कंपनी, कभी सपा कंपनी तो कभी बसपा कंपनी कब्ज़ा किये हुए हैं और अब तो तुम भी नहीं हो आज़ादी दिलानें के लिए, सो गुलामी में जीवन कटेगा ही |
…तुम्हे पढ़ने और जानने के बजाये आज की पीढ़ी गाली दे देती है, दरअसल फेसबुक का ज़माना है और तुम तो हो नहीं फेसबुक पे तो लोग जानेंगे कैसे,  बस इसी सवाल का कोई गोडसे अनुयाई जवाब नहीं देता कि बटवारे पे साइन किये जिन्ना-नेहरु और मार तुम्हे डाला क्यूँ ? हमलोग ठहरे छोटे लोग सो कुछ बताओ भी तो डांट देते हैं, बोलते हैं देशद्रोही कहीं के खामोश रहो, जानते नहीं हमारा राज है | बापू सेहत के लिए ये तो हानिकारक है | 
 आज़ादी मिल गयी है इन कंपनी वालों को राज करने की, अब तुम्हारा न तुम्हारे आदर्श का कोई काम बचा है…आदर्श तो कंपनी की सरकारें अपने स्वादानुसार और सुविधानुसार बना ही लेती हैं, सब “फोटोबाज़” हैं, जब फोटो कैलेण्डर पे छपवानी होती है तो तुम्हारा चरखा है ही चलाके खिचवा लेते हैं, अब तो रुपये की वैल्यू का जिम्मेदार भी तुम्हे ही माना जा रहा है, मानो तुम्हारी फोटो रुपये पे न होती तो डालर हमारे रुपये का चरण स्पर्श करता….खैर बदला कुछ ख़ास नहीं, हाँ बोर्ड ज़रूर बदल गया, बस ब्रटिश सरकार का बोर्ड उतरा है | तुम्हे और तुम्हारे आदर्श को हटानें व् मिटाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है, जब तुम जिंदा थे तो मारकर, जब तुम नहीं हो तो तुम्हारे आदर्श की खिल्ली उड़ाकर कोई चरखा कातते हुए फोटोसेशन में बिजी है तो कोई तुम्हे रुपये से भी मिटाने में लग गया है…. तुम्हे रुपये की पनौती मानते हैं, रुपये से हटा ही दें शायद डालर से मुकाबला कर सकें | वैसे अब तुम चप्पल पे भी छपने लगे हो, एमजोंन बेच रहा है अब वो दिन दूर नहीं जब स्वच्छता अभियान के ब्रांड एम्बेसडर घोषित होके कमोड पे भी छप जाओ….और तो और अब तो वर्त्तमान राष्ट्रवादी तुम्हे अय्यास भी बताते हैं | बापू अब पीड़ा बहुत होने लगी है, केवल चिट्ठी लिखके पीड़ा कम हो नहीं रही पर ये भी समझ नहीं आता कि करें क्या, कुछ सुझाओ | 
 …लेकिन एक बात है तुम इस्तेमाल होने की बढ़िया चीज बन गए हो, लोग तुम्हारे सर पे ठीकरा फोड़ते रहते हैं….बटवारा तुम्हारे सर, गाँधी परिवार तुम्हारे सर, मुस्लिम का रहना भी तुम्हारे सर, रूपया का गिरना भी तुम्हारे सर, खादी की बिक्री कम होना भी तुम्हारे सर, और अब तो नेटोरिया ज्ञान नें तुम्हे खलनायक बताकर तुम्हारे हत्यारे को राष्ट्रवादी बताकर पूजा कर रहे हैं ताकि कुछ जगह मिले राजनीती में दरअसल आजकल त्वरित राष्ट्रवाद शासन  है न इसलिए, जो लोग आज़ादी की लड़ाई के वक्त घर में लूडो खेलते थे उनके वंशज राज कर रहे हैं वैसे ही जैसे अंग्रेज करते थे, वही निति बाटो-राज करो, वही धूर्तता, वही बेह्यापन, वैसा ही लूट मानो सबकुछ ले लो पता नहीं कल मिले न मिले, वही डर जनता के जाग जाने का सो अलग विचार की जगह नहीं और वही दमनात्मक रवैया है |   और तो और कल गुजरात का एक तड़ीपार मुजरिम जो सुलतान का वजीर है तुमको चतुर बनिया बता रहा था |  
…बस शर्मिंदगी हमें ये है कि जिस खुदा को देखा भी नहीं उसे अपशब्द कहने से बलवा हो जाता है, पत्थर की मूरत को कुछ कह भर दे कत्लेआम हो जाये, लेकिन जिसने अपना सब कुछ बलिदान कर आज़ाद भारत को जन्म दिया उस बापू को अभद्र टिपण्णी करनें पे 128 करोण जनता में किसी के जूं भी नहीं रेंगती, दरअसल हम हैं एहसान  फरामोश और मुर्ख तो अव्वल दर्जे के हैं, और बापू ऐसा इसलिए है कि तुम “वोट” दिलाने की चीज़ भी तो नहीं हो जिसके लिए कोई सोचे, तुम भी किसी हिन्दू या मुस्लिम खांचे में बंट गए होते तो तुम्हारी भी कद्र हो जाती पर तुम थे कि बटने बाटने को तैयार न थे….तो लो भुगतो |
…अच्छा अब रात काफी हो गयी है और मन बहुत व्यथित है, फिर आगे हालचाल दूंगा, अब तो ये भी नहीं कह सकता कि अपना ख्याल रखना क्यूंकि आजकल राष्ट्रद्रोही कहलाने का खतरा हमेशा बना रहता है और राष्ट्रवाद कुम्हडी की बतिया हो गई है, ऊँगली दिखाई नहीं कि बता दिया जाता है सूख रही है, राष्ट्रद्रोही कहीं के….खैर …………राम राम
साभार:समाज सेवक प्रताप चंद्रा की फेसबुक वाल से 
(प्रताप चंद्रा EVM से चुनाव चिन्ह हटाने और नोटबंदी के बाद राजनेतिक पार्टियों द्वारा चंदे की जानकारी सार्जनिक करने जैसे मुद्दे उठाते रहे हैं.)

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