गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस के संभावित महागठबंधन का जवाब गुजराती अस्मिता से देगी। पार्टी की रणनीति चुनाव प्रचार को गुजराती अस्मिता बनाम गुजरात विरोध का रूप देने की है। इसके अलावा पार्टी ने हाल के कुछ महीनों में अलग-अलग आंदोलनों के जरिए विभिन्न वर्गों का हीरो बन कर उभरे अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल के करीबियों को साध कर इनके संगठन को कमजोर करने की रणनीति बनाई है।दरअसल भाजपा चाहती थी कि कांग्रेस समेत हाल के वर्षों में विभिन्न वर्गों के लिए आंदोलन चला कर चर्चा में आए तीनों युवा नेता, कांग्रेस छोड़ कर जन विकल्प पार्टी बनाने वाले शंकर सिंह वाघेला और आप अलग-अलग चुनाव लड़े। इससे मुकाबला बहुकोणीय होने के कारण उसे सीधा सियासी लाभ मिलेगा।
मगर शनिवार को ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर का कांग्रेस से हाथ मिलने, हार्दिक का कांग्रेस को सशर्त समर्थन देने और जिग्नेश और कांग्रेस के बीच गंभीर बातचीत जारी रहने के कारण भाजपा की चुनौती बढ़ी है। चिंता की एक वजह यह भी है कि अगर कांग्रेस का सबको साध लाने का प्रयोग सफल रहा तो वाघेला और आप की स्थिति कमजोर हो जाएगी।
बदली राजनीतिक परिस्थितियों में पार्टी ने पूरी लड़ाई को गुजराती अस्मिता बनान गुजरात विरोध पर केंद्रित करने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति के तहत पार्टी राज्य से प्रधानमंत्री बनने से गुजरात की प्रतिष्ठा बढ़ने, इस कारण राज्य में विकास का अवसर बढ़ने, गुजरातियों का महाराष्ट्र में व्यवसाय करना आसान होने जैसे मुद्दे को सबसे ज्यादा प्रचारित करेगी।
इसके अलावा पार्टी कांग्रेस उपाध्यक्ष के उन भाषणों की सीडी खंगाल रही है जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री पर पूरे देश के बदले सारा ध्यान गुजरात पर केंद्रित करने और गुजरात को विशेष महत्व देने के आरोप लगाए हैं। इसके जरिए पार्टी की योजना राहुल को गुजरात विरोधी के रूप में प्रचारित करने की है।
गुजरात क्यों है अहम
गुजरात भाजपा और प्रधानमंत्री दोनों के लिए बेहद अहम है। पीएम मोदी विकास के गुजरात मॉडल का प्रचार प्रसार कर ही वर्ष 2014 का चुनाव मैदान फतह कर पाए थे। यह पीएम के अलावा भाजपा अध्यक्ष का भी गृह राज्य है, जहां पार्टी बीते दो दशक से भी अधिक समय से सत्ता पर काबिज है। ऐसे में अगर पार्टी इसी राज्य में हार गई या उसका प्रभाव पहले की तुलना में बेहद कम दिखा तो पार्टी के लिए आगे की राह बेहद मुश्किल हो जाएगी। यही कारण है कि इस चुनाव के लिए खुद प्रधानमंत्री ने अपनी सारी ताकत झोंक दी है। महज 22 दिन में गुजरात की तीसरी यात्रा, जीएसटी के प्रावधानों में कई अहम बदलाव कराने और सभी वरिष्ठ नेताओं को इस सियासी जंग में झोंकना इसी ओर संकेत करता है।