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न्याय चाहिए, मुआवजा नहीं

रोहित वेमुला का जन्मदिन 31 जनवरी को था।  पिछले साल उसे हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से निलंबित कर हॉस्टल  के बाहर ठंड में एक तंबू के नीचे रहने के लिए मजबूर कर दिया गया था। उसे विश्वविद्यालय की कैंटीन में खाना खाने से मना कर दिया गया था। उसकी छात्रवृति कई महीनों से नहीं मिली थी और जनवरी तक तो वह छह महीने से ज्यादा तक की बकाया थी।  फिर भी उसने सोचा था कि वह अपना जन्मदिन मनाएगा।
  उसे उम्मीद थी कि तब तक शायद उसे न्याय मिलेगा। लेकिन अपने जन्मदिन से पहले, न्याय की तमाम उम्मीदें छोड़, बीते वर्ष 17 जनवरी को उसने पंखे से फंदा लगाकर, अपनी मौत का इंतजाम कर लिया। मरने से पहले उसने एक लंबा पत्र लिखा, जिसके हर शब्द से उसकी पीड़ा टपकती है; जिसमें वह कहता है कि उसके तमाम सोचने, करने और सपने देखने के बाद भी उसकी किस्मत का फैसला उसकी दलित जाति में जन्म लेने की घटना ने ही किया। और मरने के बाद वास्तव में रोहित का पुनर्जन्म हुआ। आत्महत्या करने वाला वह पहला दलित छात्र नहीं था, और आखिरी भी नहीं होगा। पर उसकी मौत की परिस्थितियां इस तरह की थीं कि वह हमेशा के लिए जीवित हो गया।  इस साल 17 जनवरी को उसे देश भर में याद किया गया।
 
रोहित को निलंबित इसलिए किया गया था, क्योंकि उसने दलितों के अधिकारों के लिए ही नहीं, तमाम मानवीय अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। इन बातों को लेकर उसके, उसके साथियों और एबीवीपी के समर्थकों के बीच तू-तू-मैं-मैं हुई थी। हैदराबाद के सांसद ने, जो केंद्रीय श्रम मंत्री थे, तत्कालीन मानव-संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी पर रोहित को कड़ी सजा देने का दबाव डाला। उनके हिसाब से रोहित और उनके साथी जातिवादी और राष्ट्रद्रोही थे।

रोहित की मौत पर दुखी होने के बजाय केंद्र सरकार ने यह  प्रचारित किया कि वह जाति का दलित था ही नहीं। जबकि रोहित की मां राधिका दलित हैं। पिछड़ी जाति के पति की प्रताड़ना से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने उसे छोड़ दिया और सिलाई का काम कर अपने तीन बच्चों को पढ़ाया। सर्वोच्च न्यायालय  फैसला दे चुका है कि अगर मां-बाप में एक दलित है, तो बच्चे की जाति उसी के साथ जुड़ेगी, जिसने उसे पाला-पोसा है। रोहित की जाति पर प्रश्नचिह्न लगाकर सरकार ने उसकी पहचान और उसकी नैतिकता, दोनों छीनने की कोशिश की। इसके साथ  उसने अपने मंत्री और विश्वविद्यालय के उपकुलपति को दलित उत्पीड़न कानून की सख्त कार्रवाई से बचाने की भी कोशिश की।

याद रखने वाली बात है कि रोहित की मौत के बाद प्रधानमंत्री ने  कहा था कि भारत माता का एक लाल छिन गया। लेकिन  इस साल रोहित की मृत्यु तिथि से कुछ दिन पहले उन्होंने उस उप कुलपति महोदय को श्रेष्ठ वैज्ञानिक के पदक से नवाजा, जिन पर दूसरे के शोध को अपने नामे से छपवा लेने का आरोप है।

रोहित वेमुला की मां फिर से सिलाई करने लगी हैं।  वह न्याय चाह्ती हैं, मुआवजा नहीं। उन्हें अपमानित करने के लिए क्या नहीं किया गया? प्रशासनिक कार्यालय में  बुलाकर उनसे पूछा गया कि तुमने अपने पति को क्यों छोड़ा? तुमने अपने बच्चों का पेट पालने के लिए कौन-सा पेशा अपनाया? पर वह बहुत ही हिम्मती महिला हैं। सिलाई  मशीन चलाने के साथ वह देश भर में लोगों के सामने अपनी बात रखने भी निकलती हैं। वह कहती हैं कि रोहित और नदीम जैसे बच्चों को बचाना हमारा फर्ज है।

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