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इन वजहों से राजस्थान-छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से पीछे रह गई बीजेपी, ये रहा X-फैक्टर

राजस्थान-छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा है। इन राज्यों में बीजेपी के डूबते हुए सूरज के पीछे का कारण सत्ता की अंधाधंध चकाचौंध को माना जा रहा है। मोदी लहर के रथ पर सवार बीजेपी पूरा हिंदुस्तान जीतने निकली थी। शुरूआत में काफी दूरी तक का सफर इस पार्टी ने बेहतरीन तरीके से तय भी किया लेकिन फिर शुरू हुआ मनमुताबिक फैसलों का दौर। इन फैसलों से आम आदमी और किसानों को सीधे तौर से न सही तो अप्रत्यक्ष रुप से कहीं न कहीं गहरी चोट पहुंची। मसला चाहे कोई भी हो बीजेपी के कुछ एकपक्षीय फैसलों से आम जनता आहत हुई और बीजेपी के अश्वमेघ यज्ञ का रथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जाकर रुक गया।

अगर बात करें राजस्थान की तो यहां या फिर लगभग पूरे देश में बीजेपी का एक खास वोटबैंक माना जाता है। यह वोट सवर्ण वर्ग से आता है। राजस्थान में एससीएसटी एक्ट की वजह से बीजेपी का ये मूल सवर्ण वोटर ही भाजपा से रुठ गया। यही सवर्ण वोट ही राजस्थान में एक्स फैक्टर साबित हुआ।

हालात कुछ इस कदर बिगड़े कि 2013 में भाजपा ने एससी/एसटी के लिए तय 58 सीटों में से 49 सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार कांग्रेस ने सिर्फ 31 सीटें ही जीतीं। एससी/एसटी एक्ट में केंद्र द्वारा लाए गए बिल से सवर्ण वोटर नाराज हुआ। इस पर हिंसा भी हुई थी। जिससे भाजपा को ही नुकसान हुआ।

वहीं अगर रुख करें गांवों की ओर तो 153 ग्रामीण सीटों में से भाजपा के पास 123 सीटें थीं। जिसके बाद इस बार कांग्रेस 63 सीटों से आगे हो गई। यहां किसान आंदोलन के चलते ग्रामीण वर्ग बीजेपी से नाराज हैं। इस दौरान कांग्रेस की तरफ से किया गया कर्ज माफी का वादा उसके काम आया।

राजस्थान के दो प्रमुख इलाके ढूंढाड और मारवाड़ में भाजपा की 91 सीटें थीं। जसमें से अब सिर्फ 31 बची हैं। यहां आनंदपाल एनकाउंटर और पद्मावत प्रकरण से शेखावाटी में भाजपा की 12 सीटें कम हुईं। जबकि ढूंढाड़ में कांग्रेस नेता सचिन पायलट का असर दिखा। तो वहीं मारवाड़ में अशोक गहलोत की मेहनत रंग लाई। इसके अलावा रही सही कसर मत्स्य क्षेत्र में योगी आदित्यनाथ ने हनुमान जी को दलित बताकर पूरी कर दी। जिसके बाद राजपूत इसके विरोध में आ गए और इसका फायदा कांग्रेस को हुआ।

राजस्थान के बाद अब अगर बात करें छत्तीसगढ़ की तो यहां भी गांव के वोटरों ने ही एक्स फैक्टर की भूमिका निभाई। छत्तीसगढ़ में 53 ग्रामीण सीटों में से 42 कांग्रेस ने जीती, जिसके बल पर ही यहां कांग्रेस के पंजे को मजबूती मिली। यहां अपनी घोषणाओं के चलते कांग्रेस किसानों को रिझाने में कामयाब रही। कांग्रेस ने यहां किसानों का कर्जमाफी समेत धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपए करने का भी ऐलान किया था। जिसका नतीजा यह हुआ कि किसान चुनाव तक धान बेचने ही नहीं पहुंचा और फैसला कांग्रेस के पक्ष में चला गया।

किसानों के बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस महिलाओं को भी अपने पक्ष में करने में कामयाब रही। आंकड़ों को देंखे तो जिन 24 सीटों पर महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा रहा, उनमें से कांग्रेस ने 22 सीटें जीत लीं। इसकी एक प्रमुख वजह यहां कांग्रेस द्वारा राज्य में शराबबंदी का ऐलान किया जाना माना जा रहा है। जिस वजह से महिलाओं ने कांग्रेस की इस नीति को देखते हुए उनके पक्ष में वोट डाला।

इसके बाद अगर बात करें छत्तीसगढ़ में जातिगत आंकड़ों की तो यहां का 51% वोटर ओबीसी हैं। इसे देखते हुए कांग्रेस ने यहां एक बात साफ कर दी थी कि उनका सीएम ओबीसी से ही होगा। दूसरी ओर बीजेपी की तरफ से रमन सिंह थे। जोकि इस बार वोटर्स को लुभाने में नाकामयाब साबित हुए।

ओबीसी के बाद अगर बात करें एससी सीटों की तो इस मामले में यहां भाजपा 9 से 1 पर सिमट गई। वहीं रिजर्व 10 सीटों में से कांग्रेस ने 9 जीतीं।